मौलिक अधिकार कितने है

मौलिक अधिकार कितने है

Table of Contents

मौलिक अधिकार कितने है –

मूल अधिकार व कर्त्तव्यः-

प्रत्येक मनुष्य में कुछ अंतनिर्हित शक्तियां होती है जो उसके व्यक्तित्व का विकास करती है

प्रो लास्की के अनुसार

“अधिकार वे बुनियादी परिस्थितियाँ है

जिनके बिना कोई नागरिक अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता

वस्तुतः प्राकृतिक अधिकारों को दूसरा नाम ही मौलिक अधिकार हैं।”

मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं जिसे देश के संविधान में निहित किया गया हो तथा कार्यपालिका और विधायिका जिसका अतिक्रमण न कर सकती हो।

विधायिका साधारण अधिकारो की भांति इसमें परिवर्तन नहीं कर सकती। ग्रामपंचायत से लेकर केन्द्रीय सरकार तक इन्हें मानने के लिए बाध्य है,

इन्हें देश के संविधान में स्थान दिया गया है।

इनके द्वारा भारत की मूल एकता की अभिव्यक्ति होती है

भारत के सभी नागरिक चाहे वे किसी भी धर्म संप्रदाय के अनुयायी हो सभी को एक समान अधिकार दिये गये हैं।

मूल अधिकारों की विशेषताएं (Characteristics of Fundamental Rights):-

1. मूल अधिकार देश के सभी नागरिकों को समान रुप से प्राप्त है।

2. इन अधिकार को संघीय राज्य व स्थानीय सरकार मान्यता देने व लागू करने के लिए बाध्य है।

3. इनको संरक्षक न्यायपालिका है।

4. इन अधिकारों द्वारा सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाई गई है।

5. कुछ अधिकार भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त है चाहे वे भारत के नागरिक हो

या न हो जैसे जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।

दूसरी ओर ऐसे अधिकार हैं जो केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है जैसे मतदान का अधिकार।

6. राष्ट्र की सुरक्षा व समाज के हित में इन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

7. इन्हें भारत की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया गया है।

मूल अधिकारों को देश की सर्वोच्च मूल विधि में स्थान दिया गया है।

मौलिक अधिकार कितने है

मूल अधिकारों के प्रकार (Kinds of Fundamental Rights):-

भारत में मूल अधिकारों को सात भागों में बांटा गया है

कितु अब इनकी संख्या ६ है संविधान के ४४ संशोधन के द्वारा संपत्ति का मूल अधिकार समाप्त कर दिया गया है

अब निम्नलिखित मूल अधिकार रह गये हैं –

1. समानता का अधिकार,

2. स्वतंत्रता का अधिकार,

3. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार,

4. संस्कृति तथा शिक्षा का अधिकार,

5. शोषण के विरुद्ध अधिकार,

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

1. समानता का अधिकार –

संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के द्वारा संविधान प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार प्रदान करता है।

संविधान द्वारा नागरिकों को विभिन्न प्रकार की समानता के अधिकार दिये गये हैं।

1. कानून के समक्ष समानता –

अर्थात् कानून के समक्ष सभी नागरिक एक समान हैं।

कानून सभी नागरिकों पर समान रुप से लागू होगा।

अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा ।

 2. सामाजिक समता की स्थापना –

अनुच्छेद १५ में भारतीय संघ में धर्म, जाति व लिंग के आधार पर विभेद को समाप्त कर दिया गया राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

सार्वजनिक भोजनालाय मनोरंजन के साधनों राज्यनिधि या व्यक्ति निधि से निर्मित सार्वजनिक तालाबों,

कुंडो और घाटों और सड़कों के उपयोग से किसी भी नागरिक को वंचित नहीं किया जायेगा।

स्त्रियों व बच्चों के लिए तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए राज्य विशेष व्यवस्था कर सकता है।

सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता –

संविधान की धारा १६ में कहा गया हैं राज्य आधीन सरकारी नौकरियों के लिए जाति, धर्म, लिंग,

जन्मस्थान आदि के भेदभाव बिना समान अवसर दिये जायेंगे।

इस अनुच्छेद के तीन अपवाद है:-

1. कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान की शर्त लगाई जा सकती है।

2. राज्य की पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था होगी।

3. इसके अंतर्गत किसी ऐसी विधि पर प्रभाव न होगा जो ये व्यवस्था करती हो

कि किसी धार्मिक संस्था के संबंधित पदाधिकारी उसी धर्म के होंगे।

अस्पृश्यता का अंतः-

अनुच्छेद १७ में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अछूत या अस्पृश्य नहीं होगा

यदि कोई व्यक्ति किसी को अछूत मानकर व्यवहार करेगा

तो वह दंडित किया जायेगा इसके लिए 100 रु से 1000 रु तक जुर्माना तथा एक वर्ष के लिए सश्रम कारावास की सजा निर्धारित है।

उपाधियों का अन्तः-

अनुच्छेद 18 के अनुसार विशेष योग्यता शिक्षा व सेना की उपाधियों के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की उपाधि प्राप्त नहीं की जा सकती।

राष्ट्रमंडल के किसी देश व भारत सरकार द्वार प्रदत्त उपाधियां स्वीकार की जा सकती है।

2. स्वतंत्रता का अधिकारः-

भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए सावधान में १९ से २२ प्रकार तक निम्न स्वतंत्रताओं का उल्लेख किया गया है –

1. विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताः-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९(१) क में प्रत्येक नागरिक को भाषण, लेखन व मुद्रण और अन्य साधनों द्वारा अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता दी गई है।

समाचार पत्रों को भी ४४ वे संशोधन के अनुसार संसद व विधान मंडलों की कार्यवाही छापने की स्वतंत्रता दी गई है।

2. शांतिपूर्ण बिना हथियार सभा करने की स्वतंत्रता :-

भारतीय संविधान की धारा १९(१) ख में बिना हथियार शांतिपूर्ण तरीकों से विभिन्न लक्ष्यों की पूर्ति के लिए एकत्रित होने,

सभा करने व जूलूस निकालने की स्वतंत्रता दी गई है।

इसमें नागरिक अपने विचार भी प्रकट कर सकते हैं।

3. संघ समुदाय बनाने की स्वतंत्रताः-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)ग में नागरिकों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे आवश्यकतानुसार संघ व समुदाय बना सकते हैं।

4. निवास की स्वतंत्रताः-

भारतीय संविधान की धारा १९ (१) के ड में भारतीय नागरिकों को भारत के किसी भी क्षेत्र में (जम्मू कश्मीर को छोड़कर) रहने या स्थायी रुप से बस जाने की स्वतंत्रता है।

5. व्यवसाय की स्वतंत्रताः-

अनुच्छेद १९ (१) छ के अंतर्गत नागरिकों को अपने इच्छानुसार व्यवसाय करने की स्वतंत्रता या आजीविका चुनने की स्वतंत्रता होगी।

6. भ्रमण की स्वतंत्रताः-

अनुच्छेद १९ (१) घ के अनुसार सभी नागरिकों को भारतीय क्षेत्र में एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने के लिए आज्ञा पत्र लेने की आवश्यकता नहीं होगी

वे पूरे देश में भ्रमण कर सकते है।

3. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार :-

संविधान अनुच्छेद २६ में प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म निवाहने की पूर्ण स्वतंत्रता है।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं।

अर्थात भारत का कोई राजधर्म नही है सभी व्यक्तियों नागरिकों व विदेशियों को किसी भी धर्म में विश्वास करने धार्मिक कार्य करने तथा धर्म प्रचार की स्वतंत्रता है

धर्म व्यक्ति का निजी मामला हैं।

किन्तु विशेष परिस्थितियों में सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता व सार्वभौमिक स्वास्थ्य की सीमाओं में राज्य द्वारा इसे सीमित किया जाएगा

साधारण स्थिति में राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा

राज्य की तिथि से चलनेवाली शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त

या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं द्वारा किसी व्यक्ति की धर्म विशेष की शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा।

4. शोषण के विरुद्ध अधिकारः-

संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार देश के समस्त व्यक्यिों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक क्षेत्रों में उचित स्थान दिलाने के लिए व न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान किये गये हैं

इस अधिकार के अंतर्गत विभिन्न अधिकार आते हैं।

१. मनुष्य के क्रय विक्रय पर प्रतिबंध।

२. बेगार व बलपूर्वक कार्य करने पर प्रतिबंध।

३ बालश्रम पर प्रतिबंध ।

४. स्त्रियों को शोषण से मुक्ति।

५ मानव क्रय-विक्रय पर रोक ।

5. संस्कृति व शिक्षा संबंधी अधिकार :-

इस अधिकार का उल्लेख अनुच्छेद 29, 30 में है।

भारत विभिन्न धर्मों व संस्कृतियों का देश है अतः संविधान में अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा की व्यवस्था की गई है।

प्रत्येक अल्पसंख्यक को अपनी भाषा, लिपि संस्कृति की सुरक्षा करने एवं क्षति से बचाने का अधिकार प्रदान किया गया है।

राज्य द्वारा चलाई जाने वाली अथवा राज्य से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में किसी व्यक्ति को धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश पाने से रोका नहीं जाएगा

इस संदर्भ में किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।

सभी अल्पसंख्यक वर्ग चाहे वे धर्म पर आधारित हो या भाषा पर अपनी पंसद की शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबंध करने का अधिकार है।

शिक्षा संस्थाओं को अनुदान देते समय राज्य इस आधार पर कोई संस्था विशेष, धर्म, भाषा या अल्पसंख्यक वर्ग से हैं कोई भेदभाव नहीं करेगा।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार :-

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की गांरटी व रक्षा के रूप में इस अधिकार की व्यवस्था की गई है, यह संविधान की आत्मा कहलाता है।

अनुच्छेद ३२ के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न लेख जारी कर सकता है तथा अनुच्छेद २२६ के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को इन अधिकारों की रक्षा का भार सौंपा गया है।

यह एक विशेष अधिकार है।

इस अधिकार के द्वारा न्यायालयों की सहायता से सरकार द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध किये गये कार्यों पर नागरिक न्याय व उपचार प्राप्त कर सकते हैं

और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं

अवैध रुप से नजरबंद व्यक्ति अपनी रिहाई की मांग कर सकता है

यदि न्यायालयों को विश्वास हो जाये कि गिरफ्तारी अनुचित है तो वह विशेष आदेश जारी कर सकता है,

इसे रिट्स या लेख कहते हैं।

जारी कर सकते हैं ये लेख निम्नानुसार है-

क. बंदी प्रत्यक्षी करण:-

इसका अर्थ है सशरीर सामने पेश करना।

इस आदेश के अंतर्गत न्यायालय को अधिकार है कि वह बंदी बनाये गये किसी व्यक्ति को अपने सामने प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।

ख. परमादेश:-

इसका अर्थ हैं हम आदेश देते हैं।

परमादेश न्यायालय का ऐसा आदेश है जिसके द्वारा न्यायालय किसी सार्वजनिक निकाय को उनके निर्दिष्ट कार्य संपादन के लिए कह सकता है।

ग. प्रतिषेधः-

यह लेख उच्च न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालयों को जारी किया जाता है।

प्रतिषेध का अर्थ है यदि कोई अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करे तो,

उसे आदेश के द्वारा रोका जा सकता है।

घ. अधिकार पृच्छा:-

यह लेख तब जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो कानूनी दृष्टि से करने का अधिकार नहीं रखता है,

अधिकार पृच्छा का अर्थ है किस अधिकार से।

ड. उत्प्रेषण:-

उत्प्रेषण का अर्थ है पूरी तरह सूचित कीजिए।

इस लेख के द्वारा न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से अभिलेख मंगवा सकता है।

मूल अधिकारों का स्थगनः-

विशेष स्थितियों में मौलिक अधिकार कुछ समय के लिए स्थगित किये जा सकते हैं।

सब प्रकार की स्वतंत्रताएँ स्थगित की जा सकती है।

1. जीवन स्वतंत्रता छोड़कर।

२. राष्ट्रपति संवैधानिक उपचारों के अधिकार को स्थगित कर सकता है।

३. धार्मिक स्वतंत्रता में भी सुरक्षा, नैतिकता, स्वास्थ्य व समाजहित में रोक लगाई जाती है।

उपरोक्त स्थगन के कारण यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान एक हाथ से अधिकार देता है

तो दूसरे से छीन भी लेता है सार्वजनिक हित में शोषण के विरूद्ध राष्ट्र सार्वजनिक सेवा हेतु अनिवार्य कार्य लिये जा सकते हैं।

मूल अधिकारों का महत्व (Importance of Fundamental Rights)

मौलिक अधिकार संविधान की आत्मा होने के साथ-साथ व्यक्ति व लोकतंत्र की सफलता का आधार भी होते हैं इनके महत्व को निम्न शीर्षक में दर्शाया जा सकता है।

1. लोकतंत्र की सफलता का आधारः-

भारत में लोकतंत्र शासन प्रणाली को अपनाया गया है स्वतंत्रता व समानता लोकतंत्र के दो आधारभूत सिद्धांत है इन दोनों को मूल अधिकार में स्थान दिया गया है।

लोकतंत्र में जनता निवार्चन के द्वारा अपने शासकों को शासन करने का अधिकार सौंपती है।

निर्वाचन द्वारा उन्हें हटा भी सकती है अतः निवार्चन में खड़े होने, प्रचार करने, मत देने का सभी को समान अधिकार होता है

तभी लोकतंत्रीय परम्पराओं का विकास हो सकेगा।

2. शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुशः-

लोकहित में यह आवश्यक है कि कुछ ऐसे अधिकारों व नियमों का उल्लेख संविधान में हो

जिनका शासन अतिक्रमण न करें तथा नागरिक विकास के लिए कार्य पालिका व व्यवस्थापिका नीति निर्धारण में इनका ध्यान रखे

ये अधिकार शासन को निरंकुश होने से रोकने हेतु बनाये गये हैं।

3. समाज में अल्पसंख्यकों व सामान्यजनों का कल्याण:-

अल्पसंख्यकों अछूतों के हित संरक्षण पर अधिक बल दिया गया है।

समाज में मानव महत्ता की स्थापना करने के उद्देश्य से भारत की पिछड़ी जातियों के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखा गया,

साथ ही इस बात का भी प्रयास है कि सभी सामान्य जन अपना समुचित विकास कर सकें।

4. लोकहित में मूल अधिकारों पर प्रतिबंध:-

मूल अधिकारों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है इसके असीमित उपयोग पर रोक लगाई जा सकती है।

लोकहित में सभी मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं।

मौलिक अधिकारों को जहाँ एक ओर न्यायपालिका द्वारा संरक्षण दिया गया है वहीं दूसरी ओर इनके अनुचित प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है।

उपरोक्त नियंत्रण के बावजूद भी मौलिक अधिकार संविधान का महत्वपूर्ण अंग है

एवं हमारे संविधान निर्माताओं के व्यापक दृष्टिकोण का परिचायक है।

( मौलिक अधिकार कितने है )

मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)

अधिकारों व कर्तव्यों में पारस्परिक निर्भरता है । अतः एक के बिना दूसरा अपूर्ण है।

कर्तव्य दो प्रकार के होते हैं।

प्रथमः-

समाज व देश के प्रति कर्तव्य,

दूसरा:-

अन्य व्यक्यिों के प्रति कर्त्तव्य।

जो व्यक्ति अन्य नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करते वह स्वयं भी अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पायेगा

क्योंकि अन्य नागरिक उसके अधिकारों का सम्मान नही करेंगे कर्तव्यों का पालन समस्त समाज व देश के हित में है।

(मौलिक अधिकार कितने है )

कर्त्तव्यों के उद्देश्य व महत्व

भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का समावेश १९७६ में संविधान संशोधन द्वारा किया गया।

प्रायः यह देखा जाता हैं कि चतुर व चालाक व्यक्ति मौलिक अधिकारों की आड़ में कानूनी संरक्षण प्राप्त कर अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे थे

तथा लोकहितकारी कार्य संपादन में व्यवधान उपस्थित कर रहे थे।

कभी-कभी सरकार को नागरिक जीवन और सुरक्षा को बनाये रखने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था।

देश की अखंडता प्रभुसत्ता राष्ट्रीय जीवन के उच्च आदशों की स्थापना में अनके बाधाएँ आर रही थी

अतः मौलिक अधिकारों के उपयोग को सहज व सरल बनाने के लिए मूल कर्तव्यों का समावेश संविधान में किया गया है।

( मौलिक अधिकार कितने है )

नागरिकों के मूल कर्त्तव्य निम्नानुसार है :-

1. भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह संविधान का आदर करें,

एवं पालन करें तथा आदर्श संस्थाओं, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान का सम्मान करें ।

2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोकर रखें और उनका पालन करें।

3. भारत की प्रभुसत्ता व अखण्डता की रक्षा करें।

4. देश की रक्षा करें तथा आह्वान करने पर रक्षा करने के लिए तत्पर रहें।

5. भारत के लिए सभी लोगों में समरसता व समान भ्रातृत्व भावना का विकास करें जो धर्म,

भाषा, प्रदेश व वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्री सम्मान के प्रतिकूल हो।

6. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा को समझें एवं उसका संरक्षण करें।

7. प्रकृति पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी एवं वन्यजीव भी है उनका रक्षण करें संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावनाओं का विकास करें ।

9. सार्वजनिक संपत्ती की रक्षा करें व हिंसा से दूर रहें।

10. व्यक्तिगत व सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें,

जिससे निरन्तर नवीन उपलब्धियों व ऊचाईयों को छू सकें।

( मौलिक अधिकार कितने है )

आधुनिक काल की विशेषताएँ

संयुक्त राष्ट्र संघ

भारत की विदेश नीति

महिला सशक्तिकरण

भारतीय संविधान

( मौलिक अधिकार कितने है )

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Author: educationallof

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