Ardhchalak kya h

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अर्द्धचालक (Semi-Conductors)-

अर्द्धचालक वे पदार्थ होते हैं जिनकी विद्युत् चालकता चालक और विद्युत्ररोधी के मध्य होती है।

जैसे-जर्मेनियम, सिलिकॉन, गेलियम, गेलियम आर्सेनाइड (Ga As), गेलियम फास्फॉइड (Gap) आदि अर्द्धचालक हैं।

ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ जाती है।

अर्द्धचालक में चालन बैण्ड और संयोजकता बैण्ड के मध्य वर्जित ऊर्जा अन्तराल की चौड़ाई बहुत ही कम होती है ।

Ge के लिए वर्जित अन्तराल का मान 0.78 eV तथा Si के लिए 1.17eV होता है।

अर्द्धचालक में ऊर्जा बैण्ड (ardhchalak kya h)

परम शून्य ताप पर अर्द्धचालकों का चालन बैण्ड पूर्णतः रिक्त तथा संयोजकता बैण्ड पूर्णतः भरा हुआ होता है।

अतः परम शून्य ताप पर चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण बाह्य विद्युत् क्षेत्र लगाने पर विद्युत् का प्रवाह नहीं हो पाता।

इस प्रकार निम्न ताप पर अर्द्धचालक विद्युत्रोधी होते हैं।

कमरे के ताप पर संयोजकता बैण्ड के कुछ इलेक्ट्रॉन (Valence Electrons) ऊष्मीय ऊर्जा (Thermal Energy) प्राप्त कर लेते हैं।

यह ऊर्जा वर्जित ऊर्जा अन्तराल Eg से अधिक होती है। अतः वे चालन बैण्ड की ओर चलने लगते हैं।

जहाँ वे अल्प विद्युत् क्षेत्र के प्रभाव में भी गति करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं।

यदि इन इलेक्ट्रॉनों का अंश p हो, तो बोल्ट्जमैन के नियम से,

P ∝ e –Eg/kT

चूँकि Eg का मान कम होता है, इलेक्ट्रॉनों के अंश का मान उपेक्षणीय नहीं होता।

इस P प्रकार जो पदार्थ निम्न तापों पर विद्युत्रोधी होते हैं, कमरे के ताप पर विद्युत् के कुछ चालक हो जाते हैं।

ऐसे पदार्थों को अर्द्धचालक कहते हैं।

ध्यान रहे कि ताप बढ़ाने पर धातुओं का प्रतिरोध बढ़ता है किन्तु अर्द्धचालकों का प्रतिरोध कम होने लगता है।

अर्द्धचालक के प्रकार (Types of Semi-Conductors) –

अर्द्धचालक दो प्रकार के होते हैं—

(i) निज अर्द्धचालक या आन्तरिक अर्द्धचालक या शुद्ध अर्द्धचाल और

(ii) बाह्य अर्द्धचालक या अशुद्ध अर्द्धचालक।

(1) निज अर्द्धचालक या आन्तरिक अर्द्धचालक-

वह पदार्थ जो कि बिना अशुद्धि के , अपने आन्तरिक गुणों के कारण अर्द्धचालक की भाँति व्यवहार करता है निज या आन्तरिक अर्द्धचालक कहलाता है।

जर्मेनियम तथा सिलिकॉन निज अर्द्धचालक के उदाहरण हैं।

निज अर्द्धचालक की क्रिस्टल संरचना

जर्मेनियम (परमाणु क्रमांक 32) और सिलिकॉन (परमाणु क्रमांक 14) के परमाणुओं की बाह्य कक्ष में इलेक्ट्रॉन होते हैं।

इन्हें संयोजी इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

कम ताप पर प्रत्येक परमाणु के चारों संयोजी इलेक्ट्रॉन अपने चारों ओर के चार परमाणुओं के एक-एक इलेक्ट्रॉन से साझेदारी करके सहसंयोजक बन्ध (Covalent Bond) बना लेते हैं

जिससे प्रत्येक परमाणु स्थायी विन्यास प्राप्त कर लेता है ।

फलस्वरूप एक भी स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन शेष नहीं रह पाता।

अत: अर्द्धचालकों में से विद्युत् प्रवाह नहीं हो पाता।

साधारण ताप पर ऊष्मीय प्रक्षोभ (Thermal Agitation) के कारण कुछ सहसंयोजक बन्ध टूट जाते हैं, जिससे कुछ इलेक्ट्रॉन स्वतन्त्र हो जाते हैं।

ताप बढ़ाने पर अधिक सहसंयोजक बन्धों के टूट जाने के कारण स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ जाती है।

अतः जब ऐसे अर्द्धचालकों के सिरों के बीच विद्युत् विभवान्तर लगाया जाता है तो इलेक्ट्रॉन धन सिरे की ओर गति करने लगते हैं।

जब स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन अपनी जगह को छोड़कर गति में आ जाते हैं तो रिक्त स्थान छोड़ जाते हैं।

इन रिक्त स्थानों को कोटरा होल (Holes) कहते हैं।

ये होल अपने पास के सहसंयोजक बन्धों से एक-एक इलेक्ट्रॉन आकर्षित कर लेते हैं जिससे वहाँ नये होल उत्पन्न हो जाते हैं।

यही क्रिया आगे जारी रहती है।

होल धनावेश वाहक (Positive Charge Carrier) की भाँति कार्य करते हैं।

अतः ये होल इलेक्ट्रॉनों विपरीत ऋण सिरे की ओर गति करने लगते हैं।

इस प्रकार अर्द्धचालक में विद्युत् का प्रवाह होने लगता है।

स्पष्ट है कि निज अर्द्धचालक में विद्युत् प्रवाह धनावेश वाहक (होल) और ऋणावेश वाहक (इलेक्ट्रॉन) दोनों की गति के कारण होता है।

ध्यान रहे कि बाह्य संबंधित तारों में विद्युत् प्रवाह केवल मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा होता है।

300K ताप पर शुद्ध जर्मेनियम में 2.5×1010 इलेक्ट्रॉन-होल युग्म प्रति मीटर’ होते हैं। इस ताप पर जर्मेनियम की प्रतिरोधकता 0.5 ओम-मीटर होती है।

ऊर्जा बैण्ड के आधार पर निज अर्द्धचालक की व्याख्या-

कमरे के ताप पर संयोजकता बैण्ड के कु इलेक्ट्रॉन तापीय ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं।

जब तापीय ऊर्जा वर्जित ऊर्जा अन्तराल से अधिक होती है तो ये इलेक संयोजकता बैण्ड को छोड़कर चालन बैण्ड में जाने लगते हैं जिससे संयोजकता बैण्ड में खाली स्थान बच हैं।

इन्हें होल कहते हैं।

ये धनावेश वाहक की भाँति कार्य करते हैं।

अत: जब अर्द्धचालक के सिरों के बीच विद्युत विभवान्तर लगाया जाता है तो इलेक्ट्रॉन धन सिरे की ओर तथा होल ऋण सिरे की ओर चलने लगते हैं।

निज अर्द्धचालक में ऊर्जा बैण्ड ( ardhchalak kya h)

इस प्रकार अर्द्धचालक में दो प्रकार के विद्युत् वाहक होते हैं- इलेक्ट्रॉन और होल।

निज अर्द्धचालक में चालन इलेक्ट्रॉनों की संख्या सदैव होलों की संख्या के बराबर होती है।

सूत्र के रूप में, किसी भी निज अर्द्धचालक में

nn = np = ni

जहाँ,

nn  = चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉन घनत्व

और np = संयोजकता बैंड में होल घनत्व

और ni  =  निज वाहक सान्द्रता ( Instrinsic Carrier Concentration)

ध्यान रहे कि चालन इलेक्ट्रॉन चालन बैण्ड में तथा होल केवल संयोजकता बैण्ड में होते हैं।

(ii) बाह्य अर्द्धचालक (Extrinsic Semi-Conductor)–

यदि शुद्ध जर्मेनियम में पंच संयोजी या त्रिसंयोजी पदार्थ मिला दिया जाय तो जर्मेनियम की विद्युत् चालकता बढ़ जाती है।

अशुद्धियाँ युक्त अर्द्धचालक को बाह्य अर्द्धचालक कहते हैं।

इसे अशुद्ध अर्द्धचालक भी कहते हैं।

शुद्ध जर्मेनियम क्रिस्टल में अशुद्धियाँ मिलाने की क्रिया को डोपिंग (Doping) कहते हैं। (लगभग 107 जर्मेनियम परमाणु में 1अशुद्ध परमाणु मिलाया जाता है।)

बाहा अर्द्धचालक दो प्रकार के होते हैं

(a) N- प्रकार के अर्द्धचालक और

(b) P- प्रकार के अर्द्धचालक।

 N-प्रकार के अर्द्धचालक (N-Type Semi-Conductors)

जब शुद्ध जर्मेनियम क्रिस्टल में पंच संयोजी परमाणु (ऐन्टीमनी, आर्सेनिक, फॉस्फोरस आदि) की अशुद्धि मिलायी जाती है

तो इस प्रकार के अर्द्धचालक को N-प्रकार का या दाता (Donar) अर्द्धचालक कहते हैं।

ऐन्टीमनी परमाणु के अन्तिम कक्ष में पाँच संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं।

जब ऐन्टीमनी को जर्मेनियम में मिलाया जाता है तो ऐन्टीमनी परमाणु के पाँच संयोजी इलेक्ट्रॉनों में से चार इलेक्ट्रॉन जर्मेनियम परमाणु के चार संयोजी इलेक्ट्रॉन के साथ सह संयोजक बंध बना लेते हैं ।

ऐन्टीमनी परमाणु के पाँचवें संयोजी इलेक्ट्रॉन को सह-संयोजक बंध रचना में कोई स्थान नहीं मिल पाता

अत: यह पाँचवाँ इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल में इधर-उधर घुमने के लिए स्वतन्त्र रहता है।

इस प्रकार के स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन N-प्रकार के अर्द्धचालक में विद्युत्धारा वाहक (Carrier) का कार्य करते हैं।

चूँकि अशुद्ध परमाणु शुद्ध जर्मेनियम को इलेक्ट्रॉन (जिसमें ऋणावेश होता है) देता है,

इस प्रकार के अर्द्धचालक को N-प्रकार के अर्द्धचालक या दाता अर्द्धचालक कहते हैं।

N प्रकार का अर्द्धचालक (ardhchalak kya h)

ऊष्मीय प्रक्षीभों के कारण जर्मेनियम में पहले से ही कुछ इलेक्ट्रॉन तथा होल उपस्थित रहते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि N-प्रकार के अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉनों की संख्या होल की संख्या से सदैव अधिक होती है।

अत: N-प्रकार के अर्द्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक आवेश वाहक होल होते हैं।

ऊर्जा बैण्ड के पदों में N-प्रकार के चालक की व्याख्या-

जर्मेनियम क्रिस्टल में ऐन्टीमनी परमाणुओं की अशुद्धियाँ मिलाने पर प्रति अशुद्ध परमाणु अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन प्राप्त होते हैं।

इन इलेक्ट्रॉनों ऊर्जा चालन बैण्ड के इलेक्ट्रॉनों से कम तथा संयोजकता बैण्ड के इलेक्ट्रॉनों से अधिक होती है।

अत: ये इलेक्ट्रॉन चालन बैण्ड के नीचे विशिष्ट ऊर्जा स्तर बनाते हैं जिन्हें दाता ऊर्जा स्तर (Donar Energy Level) कहते है

न्यूनतम दाता ऊर्जा स्तर चालन बैण्ड के लगभग 0.01 eV नीचे होता है।

N प्रकार के अर्द्धचालक में ऊर्जा बैण्ड

ये इलेक्ट्रॉन ऊष्मीय ऊर्जा प्राप्त कर आसानी से उत्तेजित होकर चालन बैण्ड में जा सकते हैं।

N-प्रकार के अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉनों का घनत्व ne दाता परमाणुओं के घनत्व nd के लगभग बराबर होता है, किन्तु होलों के घनत्व np  से बहुत अधिक होता है।

सूत्र के रूप में,

(ne≈nd>>np)

N-प्रकार के अर्द्धचालक के लिए निम्न सूत्र को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है

ne.np = ni²

जहाँ = निज अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉनों या होलों का घनत्व ।

(Ardhchalak kya h)

 P-प्रकार के अर्द्धचालक (P-Type Semi-Conductors)

जब शुद्ध जर्मेनियम क्रिस्टल में त्रिसंयोजी परमाणु (बोरॉन, ऐल्युमिनियम, इण्डीयम आदि) की अशुद्धि मिलायी जाती है (Ardhchalak kya h)

तो इस प्रकार के क्रिस्टल को P-प्रकार का अर्द्धचालक या ग्राही (Acceptor)अर्द्धचालक कहते हैं।

बोरॉन की अन्तिम कक्षा में तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं।

जब बोरॉन को शुद्ध जर्मेनियम क्रिस्टल में मिलाया जाता है तो बोरॉन परमाणु और जर्मेनियम परमाणुओं के द्वारा बनाये गये सह-संयोजक बंध में एक इलेक्ट्रॉन की कमी रह जाती है।

इलेक्ट्रॉन की इस कमी को होल (Hole) कहते हैं ।

अशुद्ध परमाणु के निकट उत्पन्न होल तुरन्त ही पास वाले सह-संयोजक बंध को तोड़कर एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है।

अब इस बंध में होल उत्पन्न हो जाता है।

इस होल में इलेक्ट्रॉन की पूर्ति पुनः वाले दूसरे बंध से की जाती है।

इस प्रकार यह होल क्रिस्टल में गति करने लगता है, चूँकि होल इलेक्ट्रॉन को करता है।

यह एक धनावेशित कण की भाँति कार्य करता है।

स्पष्ट है कि इस प्रकार के अर्द्धचालक में होल विद्युत् धारा वाहक का कार्य करते हैं।

P प्रकार का अर्द्धचालक (archchalak kya h )

अतंः इस प्रकार के अर्द्धचालक को P- प्रकार का अर्द्धचालक कहते हैं, चूँकि अशुद्ध परमाणु इलेक्ट्रॉन लेता है, अतः इसे ग्राही अर्द्धचालक भी कहते हैं।

चूँकि ऊष्मीय प्रक्षोभों के कारण शुद्ध जर्मेनियम में कुछ इलेक्ट्रॉन और कुछ होल पहले से ही उपस्थित रहते हैं,

P-प्रकार के अर्द्धचालक में होल की संख्या इलेक्ट्रॉनों की संख्या से सदैव अधिक होती है।

इस प्रकार P-प्रकार के अर्द्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक होल तथा अल्पसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं।

ऊर्जा बैण्ड के पदों में P-प्रकार के अर्द्धचालक की व्याख्या-

जर्मेनियम क्रिस्टल में त्रिसंयोजी परमाणु की अशुद्धि मिलाने पर होल (इलेक्ट्रॉनों की कमी) प्राप्त होते हैं।

ये होल संयोजकता बैण्ड के ऊपर विशिष्ट ऊर्जा स्तर बनाते हैं जिन्हें ग्राही ऊर्जा स्तर कहते हैं ।

ऊष्मीय प्रक्षोभों के कारण संयोजकता बैण्ड के इलेक्ट्रॉन ऊष्मीय ऊर्जा प्राप्त करके आसानी से उत्तेजित होकर ग्राही ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं

जिससे संयोजकता बैण्ड में होल उत्पन्न हो जाते हैं।

ये होल धनावेशित कणों की भारत कार्य करते हैं।

नोट– कमरे के ताप पर अर्द्धचालकों के चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉन तथा संयोजकता बैण्ड में होल मौजूद होते हैं।(Ardhchalak kya h)

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Author: educationallof

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