प्रकाश का ध्रुवण (Polarisation of Light) :-

प्रकाश का ध्रुवण :-

हम जानते हैं कि यांत्रिक तरंगें दो प्रकार की होती है – (प्रकाश का ध्रुवण)

1.अनुदैर्घ्य तरंग

2. अनुप्रस्थ तरंग।

अनुदैर्घ्य तरंग में माध्यम के कण तरंग संचरण के अनुदिश ही कम्पन करते हैं

किन्तु अनुप्रस्थ तरंग में माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं।

दोनों ही तरंगों में परावर्तन , अपवर्तन, व्यतिकरण और विवर्तन की घटनायें होती है।

अतः इन गुणों के आधार पर इन दोनों तरंगों में विभेद कर पाना सम्भव नहीं।

ध्रुवण, प्रकाश सम्बन्धी ऐसी घटना है जो अनुदैर्घ्य तरंग और अनुप्रस्थ तरंग में अन्तर स्पष्ट करता है।

अनुदैर्घ्य तरंग में ध्रुवण की घटना नही होती , जबकि अनुप्रस्थ तरंग में ध्रुवण की घटना होती है।

प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती है। अनुप्रस्थ तरंगों के कम्पन तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होते हैं।

उदाहरणार्थ :-

यदि प्रकाश तरंग कागज के तल के लम्बवत् दिशा में गमन करती है

तो उसके कम्पन कागज के तल में होंगे।

प्रकाश एक विद्युत् चुम्बकीय तरंग भी है।

विद्युत् चुम्बकीय तरंग को संचरित होने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।

 तरंग में वैद्युत वेक्टर (अर्थात् विद्युत् क्षेत्र) और चुम्बकीय वेक्टर (अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र) प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तलों में एक दूसरे के लम्बवत् दोलन करते हैं।

प्रकाश तरंगों का प्रकाशकीय प्रभाव केवल वाली वैद्युत् वेक्टरों के कारण होता है।

साधारण प्रकाश में वैद्युत् वेक्टर के कम्पन (अनुप्रस्थ कम्पन) प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में प्रत्येक दिशा में समान रूप से अथवा

सममित रूप से होते हैं। ऐसे प्रकाश को अध्रुवित प्रकाश (Unpolarised Light) कहते हैं।

प्रकाश स्त्रोतों जैसे – विद्युत् बल्ब , मोमबत्ती , ट्यूब लाइट आदि से उत्सर्जित प्रकाश अध्रुवित प्रकाश होते हैं।

यदि प्रकाश तरंग के अनुप्रस्थ कम्पन (वैद्युत् वेक्टर के कम्पन) प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में एक ही दिशा में हों ,

प्रत्येक दिशा में सममित न हों तो इस प्रकाश को समतल ध्रुवित प्रकाश (Plane Polarised Light) कहते हैं।

प्रकाश सम्बन्धी यह घटना ध्रुवण (Polarisation) कहलाती है।

समतल ध्रुवित प्रकाश को रेखीय ध्रुवित प्रकाश (Library Polarised Light) भी कहते हैं।

ध्रुवण की परिभाषा :-

इस प्रकार प्रकाश तरंग द्वारा प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् चारों ओर सममिति की कमी को प्रदर्शित करना का ध्रुवण कहलाता है।

यांत्रिक तरंगों में ध्रुवण का प्रदर्शन (Demonstration of Polarisation in Mechanical Sabes)

ध्रुवण की घटना केवल अनुप्रस्थ तरंगों में होती है , अनुदैर्घ्य तरंगों में नहीं।

इसका प्रदर्शन निम्न प्रयोग के द्वारा किया जा सकता है –

चित्र में S₁ और S₂ दो स्लिट हैं जो गत्ते के दो टुकड़ों से काटकर बनाये गये हैं।

PQ एक डोरी है जो दोनों स्लिटों से होकर जाती है।

डोरी का एक सिरा Q दृढ़ आधार से जुड़ा है तथा दूसरे सिरे P को हाथ से पकड़कर हिलाया जा सकता है।

ध्रुवण का प्रदर्शन

डोरी के सिरे P को हाथ से पकड़कर ऊर्ध्वाधर दिशा में हिलाते हैं।

जिससे उसमें अनुप्रस्थ कम्पन होने लगता है।

यदि दोनों स्लिट S₁ और S₂ एक दूसरे के समान्तर ऊर्ध्वाधर तल.में हैं तथा अनुप्रस्थ कम्पन स्लिटों की लम्बाई के समान्तर है तो ये कम्पन दोनों स्लिटों से होकर ज्यों के त्यों गुजर जाते हैं।

अब यदि S₁ को स्थिर रखकर S₂ को क्रमशः घुमाते जायें , तो S₂ में से होकर निकलने वाले कम्पनों का आयाम कम होने लगता है और जब S₂ समकोण से घूम जाता है

अर्थात् S₂ की लम्बाई S₁ की लम्बाई के लम्बवत् हो जाती है , तो S₂ में से कम्पन बाहर नहीं निकल पाते अर्थात् कम्पन का आयाम शून्य हो जाता है।

यदि S₂ को और घुमाते जायें तो कम्पन का आयाम बढ़ने लगता है और जब S₂ की लम्बाई S₁ की लम्बाई के समान्तर हो जाती है ,

तो S₂ से निकलने वाले कम्पन के आयाम पूर्ववत् हो जाते हैं।

अब यदि डोरी को उसकी लम्बाई के अनुदिश बार बार खींचें और ढीला करें , तो उसमें अनुदैर्घ्य कम्पन होने लगते हैं।

स्लिट S₂ को स्लिट S₁ के सापेक्ष किसी भी कोण से घुमायें , अनुदैर्घ्य कम्पन सदैव S₂ से होकर निकल जाते हैं।

उपर्युक्त प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि अनुप्रस्थ कम्पन स्लिट S₂ से ज्यों के त्यों तभी निकल पाते हैं जब उसकी लम्बाई स्लिट S₁ की लम्बाई के समान्तर हो।

लेकिन अनुदैर्घ्य कम्पन प्रत्येक स्थिति में स्लिट S₂ से निकल जाते हैं।

स्पष्ट है कि केवल अनुप्रस्थ तरंगों में ही सममिति की कमी होती है , अनुदैर्घ्य तरंगों में नहीं।

अतः ध्रुवण की घटना केवल अनुप्रस्थ तरंगों में होती है , अनुदैर्घ्य तरंगों में नहीं।

प्रकाश के ध्रुवण का प्रायोगिक प्रदर्शन (Experimental Demonstration of Polarisation of Light)

प्रकाश के ध्रुवण के प्रायोगिक प्रदर्शित के लिए टूरमैलिन (Tourmaline Crystal) प्रयुक्त किया जाता है।

प्रकाश के ध्रुवण की व्याख्या

यह देखा गया है कि टूरमैलिन क्रिस्टल का क्रिस्टलीय अक्ष (Crystallographic Axis) प्रकाश किरणों के लिए एक स्लिट की भाँति कार्य करता है।

टूरमैलिन का एक क्रिस्टल लेकर उसे इस प्रकार काटते हैं कि उसका अक्ष उसके धरातल में ही हों।

अब यदि साधारण प्रकाश को इस क्रिस्टल पर लम्बवत् डाला जाये तो इससे निर्गत प्रकाश में प्रकाश तरंग के अनुप्रस्थ कम्पन (वैद्युत वेक्टर के कम्पन) प्रकाश के संचरण के लम्बवत् तल में एक ही दिशा में सीमित हो जाते हैं

अर्थात् इस क्रिस्टल से गुजरने के बाद प्रकाश ध्रुवित हो जाता है।

क्रिस्टल A और आँख के बीच दूसरा क्रिस्टल B इस प्रकार रखते हैं कि दोनों क्रिस्टलों के अक्ष एक दूसरे के समान्तर हों।

इस स्थिति में B से देखने पर निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है।

अब क्रिस्टल A को स्थिर रखकर क्रिस्टल B को उसके ही तल में क्रमशः घुमाते जाते हैं।

ऐसा करने से निर्गत प्रकाश की तीव्रता क्रमशः कम होने लगती है और जब क्रिस्टल B का अक्ष क्रिस्टल A के अक्ष के लम्बवत् हो जाता है ,

तो निर्गत प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम हो जाती है जिससे लगभग अँधेरा छा जाता है।

इसके आगे क्रिस्टल B को और घुमाने पर प्रकाश की तीव्रता क्रमशः बढ़ने लगती है तथा जब उसका अक्ष A के अक्ष के समान्तर हो जाता है ,

तो निर्गत प्रकाश की तीव्रता पुनः अधिकतम हो जाती है।

इससे यह सिद्ध होता है कि प्रकाश तरंगों में अनुप्रस्थ कम्पन होते हैं।

यदि प्रकाश तरंगों में अनुदैर्घ्य कम्पन होते , तो निश्चित रूप से क्रिस्टल B को घुमाते पर प्रकाश की तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता।

इस प्रकार प्रकाश तरंग अनुप्रस्थ तरंग होती है।

टूरमैलिन प्रयोग की व्याख्या :-

साधारण प्रकाश में उसके अनुप्रस्थ कम्पन (वैद्युत वेक्टरों के कम्पन) प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में प्रत्येक दिशा में सममित होते हैं।

जब यह प्रकाश क्रिस्टल A पर आपतित होता है तो क्रिस्टल A से होकर केवल वे ही कम्पन गुजर पाते हैं जो क्रिस्टल के अक्ष के समान्तर होते हैं ,

शेष कम्पन रोक दिये जाते हैं।

इस प्रकार क्रिस्टल A से निर्गत प्रकाश में अनुप्रस्थ कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में एक ही दिशा में सीमित हो जाते हैं ,

पहले की भाँति सभी दिशा में सममित नहीं हो पाते।

स्पष्ट है कि क्रिस्टल A से निर्गत प्रकाश ध्रुवित प्रकाश होता है।

जब क्रिस्टल A से निर्गत ध्रुवित प्रकाश को क्रिस्टल B पर डाला जाता है और जब B का अक्ष A के अक्ष के समान्तर होता है ,

तो अनुप्रस्थ कम्पन क्रिस्टल B से भी निकल जाते हैं जिससे प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है ,

किन्तु जब क्रिस्टल B को घुमाने पर उसका अक्ष क्रिस्टल A के अक्ष के लम्बवत् हो जाता है ,

तो क्रिस्टल B भी अनुप्रस्थ कम्पनों को रोक देता है जिससे निर्गत प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम हो जाती है।

फलस्वरूप अँधेरा छा जाता है।

इस स्थिति में दोनों क्रिस्टल परस्पर क्रॉसित कहलाते हैं।

वास्तव में क्रिस्टल B से निर्गत प्रकाश की दोनों क्रिस्टलों के अक्षों के बीच के कोण पर निर्भर करती है।

टूरमैलिन के पहले क्रिस्टल A को , जो साधारण प्रकाश को ध्रुवित करता है , ध्रुवक (Polariser) कहते हैं।

दूसरे क्रिस्टल B को ,जिसके द्वारा पहले क्रिस्टल से निर्गत प्रकाश के ध्रुवित होने या न होने की जाँच की जाती है , विश्लेषक (Analyser) कहते हैं।

ध्रुवित और अध्रुवित प्रकाशों का निरूपण (Representation of polarised and Unpolarised Light)

अध्रुवित प्रकाश :-

अध्रुवित प्रकाश में अनुप्रस्थ कम्पन या वैद्युत वेक्टरों के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में होते हैं।

अतः अध्रुवित प्रकाश को तारे द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

अध्रुवित और ध्रुवित प्रकाश का निरूपण

अध्रुवित प्रकाश के कम्पनों को दो लम्बवत् दिशाओं में वियोजित किया जा सकता है –

1. कागज के तल के समान्तर और

2. कागज के तल के लम्बवत्।

अतः अध्रुवित प्रकाश को तीरों और बिन्दुओं के द्वारा भी प्रदर्शित किया जाता है।

तीर कागज के तल के समान्तर कम्पनों को तथा बिन्दु कागज के तल के लम्बवत् कम्पनों को प्रदर्शित करते हैं।

समतल ध्रुवित प्रकाश या रेखा ध्रुवित प्रकाश :-

ध्रुवित प्रकाश में अनुप्रस्थ कम्पन या वैद्युत वेक्टरों के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में एक ही रेखा के अनुदिश होते हैं।

यदि ये कम्पन कागज के तल के समान्तर हैं , तो तीर द्वारा प्रदर्शित किये जाते हैं।

और यदि कागज के तल के लम्बवत् हैं , तो ये बिन्दुओं द्वारा निरूपित किये जाते हैं।

कम्पन तल (Plane of Vibration) :-

समतल ध्रुवित प्रकाश में वह तल , जिसमें वैद्युत वेक्टर के कम्पन (अनुप्रस्थ कम्पन ) तथा प्रकाश के संचरण की दिशा दोनों ही स्थित होते हैं , कम्पन तल कहलाता है। चित्र में PQ प्रकाश के संचरण की दिशा तथा ABCD कम्पन तल है।

ध्रुवण तल (Plane of Polarisation) :-

ध्रुवित प्रकाश में वह तल , जिसमें प्रकाश के संचरण की दिशा स्थित हो तथा कम्पन तल के लम्बवत् हो ,

ध्रुवण तल कहलाता है।

कम्पन और ध्रुवण

चित्र में EFGH ध्रुवण तल है।

ध्रुवण तल में वैद्युत वेक्टरों के कम्पन नहीं होते।

समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं –

(I) परावर्तन

(II). अपवर्तन

(III). द्वि-अपवर्तन

(IV). द्ववर्णता

(V). प्रकीर्णन।

विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :-

 एकल स्लिट द्वारा प्रकाश का विवर्तन :-

चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता :-

कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग-नियम:-

विद्युत शक्ति की परिभाषा , मात्रक एवं विमीय सूत्र:-

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Author: educationallof

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