वायु प्रदूषण , प्रभाव व उपाय

वायु प्रदूषण

Table of Contents

जानें, वायु प्रदूषण क्या है –

वायु प्रदूषण का सामान्य अर्थ एवं परिभाषा (General Meaning and Definition of Air Pollution)

हमारी पृथ्वी चारों ओर से वायुमण्डल द्वारा ढकी हुई है।

वायुमण्डल विभिन्न गैसों के मिश्रण से निर्मित है।

इन गैसों का वायुमण्डल में एक निश्चित अनुपात होता है।

जैसे- नाइट्रोजन (78.08%), ऑक्सीजन (20.94%), ऑर्गन (0.934%), कार्बनडाइऑक्साइड (0.032%) तथा अन्य (0.002%)।

विभिन्न भौगोलिक कारणों से ये गैसें वायु के रूप में धरातल पर संचरण करती रहती है।

इन वायुमण्डलीय गैसों में अपनी मात्रा (निश्चित अनुपात) को सन्तुलित रखने की एक प्राकृतिक व्यवस्था है परन्तु यदि किन्हीं कारणों से किसी भी स्तर पर इनके निश्चित अनुपात में संतुलन बदलता है तो इस स्थिति को वायु प्रदूषण कहते हैं।

पर्यावरणविदों एवं विभिन्न संगठनों ने वायु प्रदूषण को अपने अनुसार परिभाषित किया है।

इनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित है:-

हैस्केथ के अनुसारः-

“वायु में ऐसे बाह्य तत्वों की उपस्थिति जो मनुष्य के स्वास्थ्य अथवा कल्याण हेतु हानिकारक हो तो इस स्थिति को वायु प्रदूषण कहते हैं।”

प्रो. जगदीश सिंह के अनुसार,

“वायु प्रदूषण, वायु में भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में ऐसे अवांछित परिर्वतन का द्योतक है जिसके द्वारा मनुष्य एवं अन्य जीवों की जीवन दशाओं पर कुप्रभाव पड़े।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार,

“वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बाहा वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्व सघन रूप में संकेन्द्रित हो जाते हैं।”

वायु प्रदूषक के सामान्य रूप

सामान्यतया वायु प्रदूषक गैसीय या वाष्पीय कणों के रूप में वायुमण्डल में उपस्थित रहते हैं।

वायुमण्डल में पाई जाने वाली रासायनिक वाष्प उन पदार्थों से उत्पन्न होती है जिनका क्वथनांक 200°C होता है।

प्रमुख वायु प्रदूषक इस प्रकार हैं-

वायु प्रदूषक

क) गैसें और रासायनिक वाष्प

(1) अकार्बनिक (Inorganic)

1. कार्बन के ऑक्साइड; जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)।

2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड; जैसे- नाइट्रिक ऑक्साइड (NO),

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2),

3. सल्फर के ऑक्साइड;

जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂). सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO3)

(2) कार्बनिक (Organic)

1. साधारण हाइड्रोकार्बन ।

2. एलीफेटिक-

एल्केन; जैसे-एथेन, मेथेन।

एल्कीन; जैसे- एथीन, प्रोपीन।

एल्काइलीन; जैसे- एसीटिलीन।

3. एरोमैटिक; जैसे- बेंजीन, टॉलुईन,

ब)विविक्त कण

1. ठोस कण जैसे; गन्धीय धुआँ,

2. द्रवीय कणिकाएँ जैसे; धूल धुआँ, कोहरा, धुंध आदि।

Air Pollution , वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण तथा स्त्रोत

सामान्यतः वायु प्रदूषण के कारणों या स्त्रोतों को हम दो वर्गों में बाँटते हैं :-

(अ). प्राकृतिक कारण/स्त्रोत,

(ब) मानवीय कारण/स्त्रोत। इन दोनों ही कारणों/ स्त्रोतों से वायुमण्डल में दो प्रकार के तत्व (गैसें एवं कणीय पदार्थ) निसृत्त किए जाते हैं।

ये गैसें एवं कणीय पदार्थ ही वायुमण्डल में व्याप्त गैसों में मिश्रित होकर प्रदूषण फैलाते हैं।

(अ) प्राकृतिक कारण (Natural Causes)-

प्रकृति में उत्पन्न असंतुलित व्यवहार प्रदूषण का मुख्य कारण होता है।

इस असंतुलित व्यवहार के लिए भी काफी सीमा तक मनुष्य ही जिम्मेदार होता है।

इनके अन्तर्गत प्राकृतिक असंतुलन से उत्पन्न हुए प्रदूषकों को शामिल किया जाता है।

इनमें से मुख्य निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. दावाग्नि (Forest fire):-

दावाग्नि अर्थात् जंगल में लगने वाली आग भी उस क्षेत्र विशेष के वायुमण्डल को दूषित करने का एक कारण है।

इससे तापमान में वृद्धि होने के साथ-साथ अत्यधिक मात्रा में निकलने वाला धुआँ तथा राख के कण वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं।

 2. कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों का जैविक अपघटन (Biological decay of organic and inorganic):-

मृत जीवों (जन्तुओं एवं पादपों) के जैविक अपघटन के फलस्वरूप भी विभिन्न गैसों (H₂S, SO2, CH₁) उत्पन्न होती हैं जो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं।

3. ज्वालामुखी उद्‌गार (Volcanic eruptions):-

विश्व में 400 से अधिक जीवित ज्वालामुखी हैं।

इन ज्वालामुखियों से लगातार धूल, राख के कण, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂),

अन्य विषैली गैसें, ठोस धातुओं के कण लावा आदि उत्पन्न होते हैं जो वायुमण्डल में पहुँच कर उसे दूषित कर देते हैं।

Volcano , air pollution causes , ज्वालामुखी

(ब) मानवीय कारण (Human Causes):-

वर्तमान युग में प्राकृतिक कारणों की तुलना में मानवीय कारण स्त्रोत वायु प्रदूषण में प्रमुख हैं।

जैसे- मानवीय गतिविधियाँ एवं क्रिया-कलाप बढ़ रहे हैं उसी के अनुसार प्रदूषक तत्वो में भी वृहद वृद्धि हो रही है,

वायु प्रदूषण भी इसी का एक दुष्परिणाम है। उदाहरण के लिए-

(1) दहन प्रक्रिया (Combustion process):-

वायु की उपस्थिति में किसी पदार्थ के जलने को उसका दहन कहते हैं।

विभिन्न पदार्थों के दहन से तरह तरह की गैसें, धुआँ, राख आदि निर्मित होते हैं जो वायुमण्डल को दूषित करते हैं।

दहन प्रक्रम निम्नलिखित क्षेत्रो में किया जाता है-

(i) वहनों में दहन (Combustion in automobiles) :-

चलते वाहन जैसे- ट्रक, बस, स्कूटर, कार, वायुयान, आदि पेट्रोल, या डीजल से चलते हैं।

इन वाहनो के इंजन में ईधन (पेट्रोल, डीजल) के विभिन्न चरणों में दहन के फलस्वरूप उत्पन्न कार्बन मोनोऑक्साइड (77.2%), नाइट्रोजन ऑक्साइड (7.7%),

एवं अन्य हाइड्रोकार्बन्स (13.7%) वायुमण्डल में फैलते हैं तथा उसे प्रदूषित करते हैं।

इन गैसों के साथ-साथ सीसा जैसी धातु के कण भी मुक्त होते हैं।

(ii) घरेलू कार्यों में दहन (Combustion in domestic work) :-

भोजन बानाने, पानी गर्म करने, आदि घरेलू कार्यों में प्राचीन काल से ही प्रतिदिन लकड़ी, कंडे, मिट्टी का तेल, कोयला जैसे परम्परागत ईधनों का दहन किया जाता रहा है।

इनके दहन से अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बनिक कण उत्पन्न होते हैं जो वायुमण्डल में निस्तारित होकर उसे दूषित करते हैं।

रसोईघर में प्रयोग की जाने वाली रसोई गैस (Liquid Petroleum Gas LPG) के दहन से भी नाइट्रोजन मोनो ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती है।

(iii) ताप विद्युत गृहों में दहन (Combustion in thermal power stations):-

भारत में विद्युत उत्पादन मुख्य रूप से कोयले को जलाकर किया जाता है।

यह वायु प्रदूषण का एक स्त्रोत है।

ताप विद्युत गृहों में कोयले को जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड व अन्य गैसें उत्पन्न होती हैं

जिसके कारण वायु प्रदूषण होता है और इसके दुष्प्रभाव प्रारंभ हो जाते हैं।

(2) विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों की उत्पादन इकाईयाँ (Production units of various industrial establishment): –

वर्तमान औद्योगिक युग में सभी राष्ट्र एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में लगे हैं।

इस कारण सभी राष्ट्रों में बड़े-बड़े औद्योगिक नगर स्थापित हो चुके हैं।

इन उद्योगों के उत्पादन इकाईयों से प्रतिदिन अत्यधिक मात्रा में विषैली गैसें जैसे- CO, SO2, NO, H₂S तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों के कण वायुमण्डल में मिलते जाते हैं।

जिससे वायुमण्डल प्रदूषित होता जा रहा है।

(3) कृषि सम्बन्धी क्रियाकलाप (Agricultural Activities) :-

आधुनिक युग में बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए कृषि कार्य में उच्च तकनीक का सहारा लिया जा रहा है।

फसलों को कीट पतंगों से बचाने तथा खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए विभिन्न कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों का कृषि भूमि पर अत्याधुनिक ढंग से छिड़काव किया जा रहा है

जिससे वातावरण में कार्बनिक फास्फेटों, क्लोरीनीकृत हाइड्रोकार्बन्स, सीसा तथा पारे के कण आदि विषाक्तता फैलाते हैं।

(4) विलायकों का प्रयोग (Solvent Usage):-

वाहनों, फर्नीचरों, खिड़कियों, दरवाजों, उपकरणों, दीवारों के रखरखाव के लिए विभिन्न प्रकार के रंजको, वार्निशो, तारपीन का तेल इत्यादि विलायकों का प्रयोग किया जाता है।

इन विलायको में विभिन्न वाष्पशील हाइड्रोकार्बन तथा अन्य वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिनकी वाष्प वायुमण्डल में पहुँचकर इसे प्रदूषित करते हैं।

इसी प्रकार विरजन किया तथा रेशमी, ऊनी वस्त्रों आदि की शुष्क धुलाई में वाष्पशील विलायकों (पेट्रोल, बेन्जीन, एल्कोहल, स्प्रिट इत्यादि) का प्रयोग किया जाता है इनके वाष्प भी वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं।

(5) अयस्कों का खनन एवं परिष्करण (Mining and purifications of ores):-

विभिन्न धातुओं के अयस्कों के खनन एवं सान्द्रण के विभिन्न चरणों से वायुमण्डल प्रदूषित होता है।

धातु अयस्को के उत्खनन में धातु कणों की धूल के साथ विभिन्न हानिकारक रेडियोधर्मी पदार्थ के कण भी पर्याप्त मात्रा में वायुमण्डल में विसरित हो जाते हैं

जो जीवधारियों के शरीर में पहुँचकर अपना हानिकारक प्रभाव वर्षों तक दर्शाते हैं।

(6) परमाण्विक परियोजनाएँ (Atomic Projects):-

आज विश्व भर में विभिन्न परमाण्विक परियोजनाओं में उष्मा से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थों (U235, U218) का विखण्डन कराया जाता है।

इस प्रक्रम में रेडियोधर्मी अपशिष्ट पदार्थों के कण उत्सर्जित होते हैं जो वायुमण्डल में अपना अस्तित्व कई सौ वर्षों तक बनाए रखते हैं।

(7) सामाजिक क्रियाकलाप (Social Activities):-

हमारे समाज के विभिन्न रीति-रिवाज जैसे मृत्युपरान्त शवों का दहन, विभिन्न त्योहारों तथा शादी-ब्याह में होने वाली ‘आतिशबाजी से विभिन्न प्रकार की विषैली गैसें

तथा हानिकारक विकिरण (CO2, CO, कार्बनिक कण, राख, गन्धक, पोटाश, शीशा) वायुमण्डल में उत्सर्जित होते हैं जिससे वायुमण्डल प्रदूषित होता है।

(8) व्यक्तिगत आदतें (Individual habits): –

सिगरेट, बीडी, स्मैक, हीरोइन इत्यादि पीने से वायुमण्डल में कार्बन मोनो ऑक्साइड, जैसे हानिकारक पदार्थ उत्सर्जित होते हैं जो स्वयं उस व्यक्ति विशेष के साथ-साथ आस-पास के लोगों पर भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं।

वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air pollution)

वायु प्रदूषण के प्रभाव को निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

(क) तात्कालिक प्रभाव (Immediate effects)

(ख) दीर्घ कालिक प्रभाव (Long term effects)

(क) तात्कालिक प्रभाव (Immediate effects):-

इसका आशय ऐसे प्रभावों से है जो किसी कारण से प्रयुक्त होते ही अपने लक्षण प्रदर्शित करते हैं:

जैसे-वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले धुएँ युक्त वातावरण में श्वास लेने पर गले तथा आँखों में जलन होना आदि।

(ख) दीर्घ कालिक प्रभाव (Long-term effects):-

इसमें ऐसे प्रभाव आते हैं जो शीघ्र ही दिखाई नहीं देते अपितु कुछ समय पश्चात् अपने लक्षण प्रदर्शित करते हैं।

उदाहरणस्वरूप वायुमण्डल के निचले स्तर में गैसों की संरचना में परिवर्तन वायुमण्डल की निचली परत में विभिन्न प्रदूषक तत्वों एवं कणों का एकत्रीकरण एवं वायु भार में परिवर्तन।

वायु प्रदूषण के प्रभावों को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है :-

(1) मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects on human health):-

वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

इससे श्वसन-सम्बन्धी बहुत-से रोगः जैसे फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग हो जाते हैं।

वायु में वितरित बहुत-सी धातुओं के कण बहुत से रोग उत्पन्न करते हैं।

सीसे के कण विशेष रुप से नाडी-मण्डल (nervous-system) में रोग उत्पन्न करते है।

नाइट्रोजन ऑक्साइड से फेफड़ों, हृदय और आँखों में बहुत से विकार उत्पन्न होते हैं।

ओजोन भी आँखों के रोग, खाँसी व सीने में दर्द उत्पन्न करती है।

चातावरण में कार्बन मोनो ऑक्साइड की उपस्थिति होने से मनुष्य के रक्त में हीमोग्लोबीन के अणु ऑक्सीजन की तुलना में 200 गुना अधिक तेजी से कार्बन डाइऑक्साइड के अणुओं से जुड़ने लगते हैं

जिससे श्वसन में घुटन महसूस होने लगती है।

अधिक समय तक इस परिस्थिति में रहने पर दम घुटने से मृत्यु तक हो जाती है।

रासायनिक गैस संयन्त्रों तथा नाभिकीय परियोजनाओं से वायुमण्डल में निस्तारित होने वाले विभिन्न विषैले रासायनिक एवं रेडियोधर्मी पदार्थ अपना दीर्घकालिक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर छोड़ते हैं।

उदाहरणस्वरूप- 1984 को भारत में हुए भोपाल गैस त्रासदी में मिथाईल आइसोसाइनेट के रिसाव के कारण अनेक लोग मारे गए थे

जबकि इस गैस के प्रभाव के कारण अनेक गर्भवती महिलाओं के गर्भस्थ शिशु मरे हुए पैदा हुए थे।

इसी प्रकार हिरोशिमा व नागासाकी पर द्वितीय विश्व युद्ध में गिराए गए अणु बमों के विकिरणों के प्रभाव से आज भी वहाँ बहुत-से शिशु अपंग तथा मानसिक रुप से विक्षिप्त पैदा होते हैं।

(2) अन्य प्राणी जातियों पर प्रभाव (Effects on other animal species):-

मनुष्य के समान ही वायु प्रदूषण अन्य प्रणियों में भी श्वसन सम्बन्धी विकार उत्पन्न करता है।

वायु में उपस्थित अत्यधिक कीटनाशकों व अन्य विषैले रसायनों के कारण सबसे अधिक वन्य प्राणी जातियाँ प्रभावित होती है।

वायुमण्ल में उपस्थित क्लोराइड यौगिकों के जन्तुओं के चारे (घास, जंगली पेड़-पौधे) पर अवपात के फलस्वरूप पशुओं के शरीर में प्रवेश कर हड्डियों में विकार उत्पन्न करते हैं।

इसी प्रकार सल्फर डाइऑक्साइड की उपस्थिति से मृदा में उपस्थित जीवाणुओं की सक्रियता अत्यधिक प्रभावित होती है जिसका सीधा प्रभाव वनस्पतियों पर पड़ता है।

(3) वनस्पतियों पर प्रभाव (Effects on vegetations):-

वायु प्रदूषण का वनस्पति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन, सल्फर डाइऑक्सइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि वायु प्रदूषकों की उपस्थिति से ओजोन की कमी तथा वायुमण्डल के हरित गृह प्रभाव में वृद्धि होती है

जिसके कारण वायुमण्डल के ताप में वृद्धि होने से वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती है।

वायुमण्डल में अत्यधिक विविक्त कणों तथा प्रकाश- रसायनिक कोहरे के कारण पृथ्वी पर पहुँचने वाले सूर्य के प्रकाश में कमी आती है।

जिसके कारण पौधों की भोजन निर्माण क्रिया (प्रकाश संश्लेषण) बाधित होती है।

जिसका प्रत्यक्ष व प्रतिकूल प्रभाव इनकी वृद्धि पर पड़ता है।

धूल, धुआँ तथा अन्य कणिकाएँ वनस्पतियों की पत्तियों की सतह पर जम जाते हैं,

जिससे इनके पर्ण रन्ध बन्द हो जाने से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में व्यवधान पड़ता है।

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4) पदार्थों पर प्रभाव (Effects on materials):-

वायु प्रदूषण करने वाले वायु प्रदूषक जीव जन्तुओं वनस्पतियों को प्रभावित करने के साथ-साथ विभिन्न पदार्थों पर भी अपना दुष्प्रभाव डालते हैं।

वायुमण्डल में सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर ट्राइऑक्साइड तथा जल रासायनिक क्रिया करके सल्फयूरिक अम्ल (H₂SO₄) बनाते हैं

जो अम्लीय वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरता है।

धात्विक सतहें (लोहा, ताँबा, एल्यूमिनियम, जस्ता) अम्ल वर्षा के संम्पर्क में आने पर क्षयित हो जाती है और अपना ही सल्फेट यौगिक बना लेती है।

चूना पत्थर तथा संगमरमर से बनी विभिन्न इमारतें एवं भवन अम्लीय वर्षा के संपर्क में आने के कारण अपनी चमक के साथ सामर्थ्य को भी खो देती है।

उदाहरण के लिए विश्वप्रसिद्ध आगरा का ताजमहल अम्लीय वर्षा के कारण अपनी चमक खोता जा रहा है।

इसी प्रकार रंजकों (paints) में उपस्थित सीसा हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S) से किया करके सीसा सल्फाइड (Pbs) बनता है

जिससे पेन्ट की हुई सतह का भूरा रंग, काला पड़ जाता है।

(6) मौसम एवं जलवायु पर प्रभाव (Effects on Weather and climate):-

वायु प्रदूषण की प्रकिया के अनवरत रूप से चलते रहने से उस क्षेत्र विशेष के मौसम में वायु प्रदूषकों का हस्तक्षेप होना कोई आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना नहीं है।

इस तरह की घटना होना उस समय ही निश्चित हो जाता है जब वायुमण्डल में प्रदूषक पदार्थों की सान्द्रता में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है।

औद्योगिक नगरों में होने वाली असमय वर्षा तापमान में वृद्धि तथा प्रकाश की मात्रा में कमी तथा धुन्ध एवं कोहरे का छाया रहना आदि वायु प्रदूषण की ही देन है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (MEASURES TO CONTROL AIR POLLUTION)

वायु प्रदूषण आज एक विकराल रूप धारण कर चुका है यदि इसे जल्दी नियंत्रित नहीं किया गया तो यह सम्पूर्ण जैवमण्डल को फिर से आदि-स्वरूप में पहुँचा देगा।

अतः वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

(अ) घरेलू प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय (Measures to Control Domestic Pollution) :-

1. घरों में धुआँ-रहित ईंधनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चहिए। लकड़ी कोयला, उपले इत्यादि पारम्परिक ईंधनों के स्थान पर विद्युत हीटर, कुकिंग गैस, सौर ऊर्जा से चालित उपकरण इत्यादि का प्रयोग वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करता है।

2. घरेलू कूड़े-करकट (फलों, सब्जियों के छिलके आदि) को खुले स्थानों पर फेककर मिट्टी के गहरे गढ्ढे खोदकर उनमें दबा देना चाहिए।

इससे उनके सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन से जैवीय खाद (bio-fertilizer) का निर्माण हो जाए तथा इनके अपघटन के दौरान उठने वाली दुर्गन्ध से भी बचा जा सकता है।

3. कच्चे कोयले व कच्ची लकड़ी के जलने पर प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि उससे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा कार्बन कण उत्सर्जित होते हैं।

4. घर में खिड़की, दरवाजों तथा रोशनदारों का समुचित प्रबंध होना चाहिए तथा रसोईघरों में चिमनी की व्यवस्था करनी चाहिए।

(ब) वाहनिक प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय (Measures to Control Vehicular Pollution) :-

1. वाहन निर्माण करने वाली कंपनियों को ऐसे आन्तरिक दहन इंजनों का निर्माण करना चाहिए जिससे

वाहनों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन का सम्पूर्ण दहन हो जाए तथा प्रदूषक पदार्थ कम मात्रा में उत्सर्जित हों।

2. सीसा-रहित पेट्रोल तथा डीजल में संयोजी पदार्थों का मिलाकर वाहनों में प्रयोग करने से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

3. डीजल रेल के इंजनों के स्थान पर विद्युत चालित रेल इंजनों का उपयोग किया जाना चाहिए।

4. अत्यधिक वायु प्रदूषणकारी वाहनों पर पाबंदी तथा अन्य वाहनों से उत्पन्न धुएँ का मानकीकरण से अधिक स्तर होने पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए।

5. बैटरी चालित वाहनों का अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए।

(स) औद्योगिक प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय (Measures to Control Industrial Pollution)

1. जिन उद्योगों में दहन प्रक्रम प्रयुक्त होता है उनकी निर्माणक इकाइयों में पर्याप्त ऊँची चिमनियों की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

2. औद्योगिक प्रतिष्ठानों से उत्सर्जित होने वाले कणिकीय प्रदूषकों के निस्तारण के लिए बैग फिल्टर को चिमनियों से जोड़ना चाहिए।

फैब्रिक फिल्टर या हाई एनर्जी स्क्रेबर उपकरणों का प्रयोग करके धुएँ से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

3. निर्माणक इकाइयों में दुर्घटना से बचने तथा नियंत्रण के लिए सम्पूर्ण प्रबंध होना चाहिए।

4. उद्योगों में उच्च कोटि के तथा कम प्रदूषणकारी कच्चे माल को ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए।

(द) अन्य उपाय (Other Measures):-

1. परमाण्विक परियोजनाओं से निकले रेडियोधर्मी पदार्थों को शीघ्र ही विघटनीय पदार्थ में बदल देना चाहिए।

2. परमाणु बमों तथा अन्य हानिकारक नाभिकीय परीक्षणों का सीमांकन करना चाहिए।

3. रासायनिक उर्वरकों से कीटनाशकों का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए।

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