मानलो AB , d चौड़ाई का एक संकीर्ण स्लिट है। उस पर λ तरंगदैर्घ्य का समतल तरंगाग्र WW₁ अभिलम्बवत् आपतित होता है।
यदि प्रकाश पूर्णतः (Strictly) सरल रेखा में गमन करता तो पर्दे XY पर स्लिट का चमकीला प्रतिबिम्ब बनता , जिसका आकार और आकृति स्लिट के समान ही होता ,
लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता।
पर्दे पर विवर्तन चित्र दिखाई पड़ता है जिसमें केंद्रीय प्रधान उच्चिष्ठ के दोनों ओर निम्निष्ठ और द्वितीयक उच्चिष्ठ प्राप्त होते हैं। यह पाया गया है कि –
1. केन्द्रीय उच्चिष्ठ की चौड़ाई , द्वितीयक उच्चिष्ठों की चौड़ाई की दुगुनी होती है।
2. द्वितीयक उच्चिष्ठों की तीव्रता क्रमशः कम होती जाती है।
3. स्लिट की चौड़ाई अत्यंत कम होने पर ही विवर्तन चित्र दिखाई देता है।

मानलो स्लिट AB को अनेक भागों में विभाजित किया गया है। तब हाइगन के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक भाग से द्वितीयक तरंगिकाएँ निकलेंगी।
ये द्वितीयक तरंगिकाएँ प्रारम्भ में समान कला में होती हैं और सभी दिशाओं में फैल जाती है। इन द्वितीयक तरंगिकाओं के व्यतिकरण के कारण प्रकाश का विवर्तन हो जाता है।
विवर्तित किरणों के मार्ग में एक उत्तल लेंस L₂ रखा जाता है , जो इसके फोकस तल पर रखे पर्दे XY पर विवर्तन चित्र बनाता है।
केन्द्रीय उच्चिष्ठ (Central maximum) :-
मानलो पर्दे XY पर O एक बिन्दु है जो स्लिट AB के मध्य बिन्दु C के ठीक विपरीत ओर है , चूँकि स्लिट और पर्दे के बीच की दूरी स्लिट की चौड़ाई की तुलना में बहुत अधिक होती है ,
सभी तरंगिकाएँ बिन्दु O पर समान दूरी तय करके समान कला में पहुँचती हैं।
अतः ये तरंगिकाएँ एक दूसरे को प्रबलित (Rainforce) करती हैं। फलस्वरूप बिन्दु O पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है। इसे केन्द्रीय उच्चिष्ठ कहते हैं।
उच्चिष्ठों की तीव्रता (Intensities of maxima) :-
1. केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता सर्वाधिक होती है क्योंकि उसकी तीव्रता स्लिट के प्रत्येक भाग से आने वाली समस्त तरंगिकाओं के कारण होती है।
2. प्रथम द्वितीयक उच्चिष्ठ की तीव्रता केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता से कम होती है , क्योंकि उसकी तीव्रता तीसरे भाग से आने वाली तरंगिकाओं के कारण होती है।
प्रथम दो भागों से आने वाली तरंगिकाएँ विपरीत कला में पहुँचती हैं। अतः एक दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देती है।
3. द्वितीय द्वितीयक उच्चिष्ठ की तीव्रता और कम होती है , क्योंकि उसकी तीव्रता पाँचवें भाग से आने वाली तरंगिकाओं के कारण होती है।
प्रथम चार भागों से आने वाली तरंगिकाएँ एक दूसरे के प्रभाव को समाप्त कर देती है।इस प्रकार द्वितीयक उच्चिष्ठों की तीव्रता क्रमशः कम होने लगती है।
श्वेत प्रकाश प्रयुक्त करने पर :-
जब स्लिट पर श्वेत प्रकाश आपतित होता है तो रंगीन विवर्तन चित्र प्राप्त होता है। केंद्रीय उच्चिष्ठ श्वेत तथा अन्य द्वितीयक उच्चिष्ठ रंगीन होते हैं। चूँकि द्वितीयक उच्चिष्ठों की चौड़ाई λ के अनुक्रमानुपाती होती है ,
अतः लाल रंग के द्वितीयक उच्चिष्ठ की चौड़ाई बैंगनी रंग के द्वितीयक उच्चिष्ठ की चौड़ाई से अधिक होती है।
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