समतल पारगमन ग्रेटिंग :-
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समतल पारगमन एक ऐसी युक्ति है , जिसमें अत्यधिक संख्या में समान दूरियों पर समान चौड़ाई के स्लिट होते हैं।(समतल-पारगमन-ग्रेटिंग-)
प्रत्येक दो क्रमागत स्लिटों के बीच समान चौड़ाई के अपारदर्शी अन्तराल होते हैं।
जब कोई तरंगाग्र समतल पारगमन ग्रेटिंग पर आपतित होता है तो प्रकाश स्लिटों से पारगमित हो जाता है ,
परन्तु अपारदर्शी भागों से रुक जाता है।समतल पारगमन ग्रेटिंग बहुल स्लिटों द्वारा विवर्तन के सिद्धांत पर काफी करती है
या दूसरे शब्दों में प्रायोगिक रूप से ग्रेटिंग द्वारा बहुल स्लिटों द्वारा विवर्तन के सिद्धांत की पुष्टि होता है।
बनावट :-
सभतल पारगमन ग्रेटिंग बनाने के लिए एक समतल शीशे की प्लेट ली जाती है और इसमें हीरे की नोंक से समान दूरियों पर समानांतर रेखाएँ खींची जाती हैं।
यह समतल पारगमन ग्रेटिंग की तरह कार्य करता है , जिसमें खींची गयी रेखा प्रकाश के लिए अपारदर्शी होता है
तथा दो क्रमागत रेखाओं के बीच के स्थान से प्रकाश पारगमित हो जाता है , जो स्लिट की भाँति कार्य करता है। यह मूल ग्रेटिंग कहलाता है।
ग्रेटिंग द्वारा दृश्य क्षेत्र के स्पेक्ट्रम का अध्ययन करने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले ग्रेटिंग में 10,000 रेखाएँ प्रति सेमी होता है।
प्रायोगिक कार्यों के लिए इस मूल ग्रेटिंग से अनेक समतल पारगमन ग्रेटिंग का निर्माण निम्नानुसार किया जाता है-
मूल ग्रेटिंग का वह पृष्ठ जिसमें रेखाएँ खींची गी हैं पर कोलोडियन घोल की पतली पर्त डालकर सुखा ली जाती है।
अब इस सूखे हुए कोलोडियन के पर्त को मूल ग्रेटिंग से अलग कर लेते हैं।
इस प्रकार सूखे हुए कोलोडियन की पर्त दो अन्य काँच की समतल प्लेटों के बीच जमा दी जाती है।
यह एक समतल पारगमन ग्रेटिंग का कार्य करती है। इसी प्रक्रिया के अनुसार अनेक समतल पारगमन ग्रेटिंग का निर्माण कर सकते हैं।
सिद्धांत :-
चित्र में एक समतल पारगमन ग्रेटिंग G₁G₂ प्रदर्शित किया गया है , जिसका पृष्ठ कागज के तल के लम्ब रूप है।
YY’ पर्दा है जिस पर विवर्तन प्रतिरूप प्राप्त होता है। इसका भी तल कागज के तल के लम्ब रूप है।
चित्र में AB=a प्रत्येक स्लिट की चौड़ाई तथा BC =b अपारदर्शी भाग की चौड़ाई है।
(a+b) को ग्रेटिंग अन्तराल (Grating element) कहा जाता है।
यदि 1इंच में 15,000 रेखाएं खीची गयीं हों तो ग्रेटिंग अन्तराल का मान होगा –
(a+b) = 2.54 / 15,000 सेमी …..(1)
माना λ तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश की समानान्तर किरणें ग्रेटिंग पर आपतित होती हैं तो लेन्स L द्वारा पर्दा के बिन्दु P₀ पर फोकस हो जाता है ,
चूँकि बिन्दु P₀ के लिए विवर्तन कोण शून्य है। अतएव यहां पर केंद्रीय मुख्य उच्चिष्ठ प्राप्त होगा।
चित्र में θ विवर्तन कोण से विवर्तित समानांतर किरणों को लेंस L द्वारा बिन्दु P₁ पर फोकस किया गया है।
इसके लिए लेंस को प्रारंभिक स्थिति से θकोण पर घुमाया जाता है।
अब बिन्दु P₁ पर तीव्रता स्लिट AB तथा स्लिट BC से विवर्तित किरणों के बीच पथान्तर पर निर्भर करेगा।
इन दोनों किरणों के बीच पथान्तर AD द्वारा व्यक्त होता है जो निम्न प्रकार से व्यक्त होगा –
AD = (a+b) sin θ …..(2)
समतल पारगमन ग्रेटिंग का सिद्धांत बहुल स्लिट विवर्तन (N- स्लिट) के सिद्धांत पर आधारित है।
1. मुख्य उच्चिष्ठों की स्थितियाँ :-
विभिन्न क्रमों की मुख्य उच्चिष्ठों की स्थितियाँ निम्न व्यंजक के आधार पर प्राप्त होती है –
(a+b) sin θ = +- nλ ….(3)
जहाँ n = 0 , 1 , 2 , 3 , …… इत्यादि।
यदि n =0 हो तो इसे केंद्रीय मुख्य उच्चिष्ठ कहते हैं ,
जो θ = 0 अर्थात् पर्दा के बिन्दु P₀ पर प्राप्त होता है।
इस केन्द्रीय मुख्य उच्चिष्ठ के दोनों ओर विभिन्न क्रमों के मुख्य उच्चिष्ठ स्थित रहते हैं।
2. निम्नष्ठों की स्थितियाँ :-
विभिन्न क्रमों के निम्नष्ठों की स्थितियाँ निम्न व्यंजक के आधार पर प्राप्त होती हैं –
(a+b) sin θ = +- m /N λ,
[जहाँ m /N ≠ n] ……..(4)
जहाँ m. निम्निष्ठ के क्रमों को तथा N ग्रेटिंग में कुल स्लिटों की संख्या को व्यक्त करता है।