दिष्ट धारा किसे कहते हैं
Table of Contents
दिष्ट धारा किसे कहते हैं
किसी चालक में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत् धारा कहते हैं। विद्युत् धारा दो प्रकार की होती है
(1) दिष्ट-धारा
(2) प्रत्यावर्ती धारा।
(1) दिष्ट-धारा-
वह धारा जिसकी दिशा समय के साथ अपरिवर्तित रहती है, परिमाण परिवर्तित हो या न हो, दिष्ट-धारा कहलाती है। दिष्ट-धारा दो प्रकार की होती है
(i) एकसमान दिष्ट-धारा-
वह दिष्ट-धारा जिसका परिमाण समय के साथ अपरिवर्तित रहता है, एकसमान दिष्ट-धारा कहलाती है।
(ii) असमान या परिवर्ती दिष्ट धारा-
वह दिष्ट-धारा जिसका परिमाण समय के साथ परिवर्तित होता है, असमान या परिवर्ती दिष्ट-धारा कहलाती है।
प्रश्न 1. प्रत्यावर्ती धारा, चुम्बकीय और रासायनिक प्रभाव प्रदर्शित नहीं करती, क्यों ?
या
प्रत्यावर्ती धारा से वैद्युत अपघटन सम्भव नहीं होता है, क्यों ?
उत्तर- प्रत्यावर्ती धारा आधे चक्र में एक दिशा में तथा शेष आधे चक्र में विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है।
अतः पूर्ण चक्र में धारा का औसत मान शून्य होता है।
इसी कारण प्रत्यावर्ती धारा चुम्बकीय प्रभाव या रासायनिक प्रभाव प्रदर्शित नहीं करती।
प्रश्न 2. संधारित्र दिष्ट-धारा को रोक देता है, क्यों ?
उत्तर– प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में संधारित्र द्वारा आरोपित प्रतिरोध अर्थात् धारिता-प्रतिघात
Xc= 1/ωC
=1/2πυC
दिष्ट-धारा के लिए,
υ = 0
अतः दिष्ट धारा परिपथ में संधारित्र द्वारा आरोपित प्रतिरोध
= 1/2π. 0.C = 1/0= ∞(अनंत)
अतः संधारित्र दिष्ट धारा को रोक देता है
प्रश्न 3. फ्लोरोसेण्ट ट्यूबलाइट में धारा को नियन्त्रित करने के लिए बहुधा प्रेरकत्व प्रयुक्त किया जाता है, प्रतिरोध नहीं क्यों ?
उत्तर- इसका कारण यह है कि प्रेरकत्व में शक्ति व्यय बहुत ही कम होता है,
जबकि प्रतिरोध में शक्ति व्यय अधिक होता है।
प्रश्न 4. किसी विद्युत् बल्ब में विद्युत् धारा प्रवाहित हो रही है। यह धारा दिष्ट-धारा है या प्रत्यावर्ती धारा, इसका पता आप कैसे लगायेंगे ?
उत्तर- यदि एक शक्तिशाली चुम्बक को जलते हुए विद्युत् बल्ब के पास लाने पर बल्ब का तन्तु कम्पन करने लगता है तथा तन्तु की आकृति धुँधली हो जाती है,
तो उसमें बहने वाली धारा प्रत्यावर्ती धारा होगी, किन्तु यदि तन्तु एक ओर केवल थोड़ा-सा विक्षेपित होता है और उसकी आकृति स्पष्ट बनी रहती है
तो उसमें बहने वाली धारा दिष्ट-धारा होगी।
प्रश्न 5. नागरिक विद्युत् वितरण में धारा प्रत्यावर्ती धारा के रूप में दी जाती है, दिष्ट-धारा के रूप में नहीं। क्यों ?
उत्तर- इसका कारण यह है कि प्रत्यावर्ती धारा में ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग करके इसकी प्रबलता को घटाकर बिना ऊर्जा क्षय के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जा सकता है।
दिष्ट धारा में यह सम्भव नहीं है।
प्रश्न 6. एक ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती धारा विद्युत् संभरण पर कार्य करता है, परन्तु दिष्ट-धारा पर नहीं। क्यों ?
उत्तर- इसका कारण यह है कि ट्रान्सफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करने वाला संयंत्र है।
प्राथमिक कुण्डली में बहने वाली धारा प्रत्यावर्ती होने पर उसकी दिशा बार-बार बदलती है।
अतः द्वितीयक कुण्डली में भी प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न हो जाती है, जबकि दिष्ट-धारा से यह सम्भव नहीं है।
प्रश्न 7. ट्रान्सफॉर्मर में भँवर-धाराओं का प्रभाव किस प्रकार कम किया जाता है ? अथवा
ट्रान्सफॉर्मर की क्रोड पटलित क्यों बनाई जाती है ?
उत्तर- ट्रान्सफॉर्मर में क्रोड को पटलित बनाकर भँवर-धाराओं के प्रभाव को कम किया जाता है।
क्रोड के पटलित होने से उसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है।
अत: उत्पन्न भँवर-धाराओं की प्रबलता बहुत ही कम हो जाती है।
इस प्रकार विद्युत् ऊर्जा का ऊष्मीय ऊर्जा में अपव्यय नहीं हो पाता।
I really liked your post.Much thanks again. Cool.
Hey very nice site!! Man .. Excellent .. Wonderful .. I’ll bookmark your site and take the feeds also…I am happy to search out so many helpful info here in the put up, we want work out more strategies on this regard, thank you for sharing. . . . . .