Mahatma Gandhi essay in hindi

Mahatma Gandhi essay in hindi

Mahatma Gandhi essay in hindi –

भारतीय शिक्षा एवं राजनीति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम चिर-परिचित है।

गांधी जी की विचारधारा का ही प्रभाव था कि भारतीयों ने निःशस्त्र होते हुए भी अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

Mahatma Gandhi essay in hindi

जीवन परिचय –

गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर (गुजरात) नामक स्थान पर हुआ था।

इनके पिता श्री करमचंद गांधी, पोरबंदर, राजकोट व बीकानेर के दीवान थे। माताजी का नाम श्रीमती पुतलीबाई था।

वे अत्यंत ही धार्मिक प्रवृत्ति की थी, वे नियमित रुप से उपवास रखती थी, जिनका प्रभाव गांधीजी के विचारों पर भी मिला।

गांधीजी राजा हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थे, उन्हीं की तरह सत्यनिष्ठ बनना चाहते थे।

गांधीजी पढ़ाई में औसत विद्यार्थी थे, घर के कामकाज में सहायता करना, बड़ों की सेवा करना इत्यादि उन्हें पसंद था।

अल्पायु में ही गांधी जी का विवाह कस्तूरबा गांधी से कर दिया गया।

सितम्बर 1888 में वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए, 1891 ई. में गांधी जी बैरिस्टरी पास करके भारत वापस आए।

भारत में बैरिस्टरी का काम कुछ खास नहीं रहा,

वे 1893 ई. से 1914 ई. तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।

दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंगभेद नीति का समीप से अनुभव किया।

जब वे रेलगाड़ी में प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे तो उन्हें केवल काला होने के कारण प्रथम श्रेणी के डब्बे से उतार दिया गया था,

यहां तक कि उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बाद भी उन्हें तृतीय श्रेणी में यात्रा करनी पड़ी।

दक्षिण अफ्रीका में काले लोगों के साथ बहुत अधिक भेदभाव किया जाता था,

उन्हें कई होटलों में भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।

गांधी जी पर दक्षिण अफ्रीका प्रवास का व्यापक प्रभाव देखने मिला।

वहां की भेदभाव की नीति के कारण वे राजनीति में आए ताकि भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव को मिटा सके।

दक्षिण अफ्रीका में ही गांधी जी के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।

वे वहां अनेक प्रकार के राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में सक्रिय थे,

प्रवास के दौरान 1899 के एंग्लो बोयर युद्ध के समय गांधी जी ने एक स्वास्थ्य कर्मी के रुप में कार्य किया,

तथा वहां पर युद्ध में होने वाली जनहानि को देखा और निर्णय लिया कि कभी भी वह हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएंगे तथा गांधीजी ने हिंसा के स्थान पर अनशन एवं सत्याग्रह का प्रयोग किया।

गांधीजी ने अश्वेत की लड़ाई में साथ देते हुए सन् 1904 में डरबन के निकट फिनिक्स आश्रम तथा 1910 में टॉलस्टॉय आश्रम की स्थापना की।

जिसमें शिक्षा संबंधी प्रयोग भी किए गए।

गांधी जी ने बुनियादी दस्तकारी तथा स्वावलंबन की अवधारणा का विकास यहीं से किया।

जिसे आगे चलकर भारत में विस्तार दिया।

दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने ‘इंडियन ओपिनियन‘ नामक पत्रिका का भी प्रकाशन किया।

गांधी जी ने सन् 1909 में ‘हिंद स्वराज्य‘ लिखा, जिसमें स्वराज की अवधारणा को स्पष्ट किया।

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जनवरी 1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए तथा आते ही भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गए।

प्रमुख घटना –

गांधी जी के जीवन के प्रमुख घटनाओं को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया गया है-

1. सन् 1915 में सक्रिय भारतीय राजनीति में गांधी जी का प्रवेश।

2. सन् 1916 में गांधीजी ने अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की गई।

3. सन् 1917 में गांधी जी ने पहला सत्याग्रह किया, जो सफल रहा।

चंपारण सत्याग्रह नील की खेती के विरोध में चलाया गया था, इसी आंदोलन के दौरान गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी को ‘महात्मा’ कहा था।

तब से वे महात्मा गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

4. सन् 1918 में खेड़ा का किसान आंदोलन चलाया गया जो कि किसानों पर लगाए जाने वाले ‘कर’ (Tax) के विरुद्ध था।

5. सन् 1920 में असहयोग आंदोलन चलाया गया, जिसमें विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई,

इसी दौरान गुजरात विद्यापीठ, जामिया मिलिया, काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ की स्थापना हुई तथा चरखे का चलन बढ़ा।

लेकिन इस आंदोलन के दौरान चौरी-चौरा कांड तथा व्यापक पैमाने पर हिंसा होने के कारण इसे बीच में ही बंद कर दिया गया।

6. 12 मार्च सन् 1930 में नमक कानून तोड़ने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया,

इस आंदोलन में साबरमती आश्रम से 200 किमी दूर गुजरात के समुद्र तट पर स्थित गांव दांडी तक मार्च किया गया।

तथा 6 अप्रेल 1930 को सांकेतिक रुप से नमक बनाकर अंग्रेजी नमक कानून तोड़ा गया।

7. सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। जिसमें गांधी जी ने ‘करो या मरो का नारा दिया।

महात्मा गांधी को सर्वप्रथम ‘राष्ट्रपिता‘ सुभाष चन्द्र बोस ने एक रेडियो प्रसारण के दौरान कहा था,

जिसके बाद महात्मा गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रुप में जाने गए।

गांधी जी, अन्य राजनेताओं एवं क्रांतिकारियों के संघर्ष एवं बलिदान के कारण दिनांक 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो सका।

गांधी जी का निधन –

30 जनवरी, सन् 1948 को नाथूराम – गोडसे नाम के व्यक्ति ने गांधी जी की गोली मार कर हत्या कर दी।

गांधी जी का भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

गांधीजी केवल राजनेता ही नहीं थे, वे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे,

गांधी जी ने हरिजन उद्धार, छूआछूत की समाप्ति जैसे अनेक पुनीत कार्य किए हैं।

गांधीजी के योगदान को भारतीय जगत कभी भुला नहीं सकता।

गांधी जी के शिक्षा सम्बन्धित विचारों का उल्लेख उनके द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘यंग इंडिया एवं हरिजन’ में मिलता है।

गांधीवादी विचार एवं दर्शन (Gandhian thought and philosophy)

अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से गांधीवादी विचार एवं दर्शन को मुख्यतः दो भागों में विभक्त कर प्रस्तुत किया जा रहा है-

1. गांधी जी का जीवन दर्शन,

2. गांधी जी का शिक्षा दर्शन।

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गांधी जी का जीवन दर्शन (Life philosophy of Gandhi)

गांधी जी ने अपने जीवन दर्शन में अनेक मूल्यों का प्रतिपादन किया तथा उन मूल्यों पर चलने का संकल्प लेते हुए, सभी को चलने हेतु प्रेरित किया।

ये मूल्य क्रमशः है – सत्य, अहिंसा, निर्भयता, सत्याग्रह, आत्मज्ञान, धार्मिक भावना-धर्म को महत्व, भारतीय संस्कृति पर अधिक बल इत्यादि ।

आंइस्टीन ने गांधी जी के विषय में कहा था कि

“आने वाली पीढ़ियां इस बात पर शायद ही विश्वास करें कि हाड़-मांस का ऐसा पुतला धरती पर रहा था

जिसने बगैर हथियार उठाए अपने देश को आजाद कराया और संसार को सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया।”

आचार्य कृपलानी के अनुसार

“जब हम ठीक होते हैं उससे महात्मा जी उस समय भी जब वे गलत होते हैं हमसे अधिक ठीक होते हैं।

हममें से अधिक लोग अपनी छोटी-छोटी शुद्धियों में ही अपने आपको ठीक मानकर अपनी तुच्छता का प्रदर्शन करते हैं

महात्मा जी बहुत सी छोटी-छोटी बातों में गलत होकर भी पूर्ण योग में ठीक होते थे और विसंगतियों में भी महान थे।

अंत में सदैव ठीक होते थे।”

रविन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार –

“गांधी एक राजनीतिज्ञ, संगठनकर्ता, नेता और नैतिक सुधारक के रुप में महान हैं,

परन्तु वह मनुष्य के रुप में उससे भी अधिक महान हैं क्योंकि ये सभी पक्ष उनकी महानता को सीमित नहीं करते।

वास्तव में सभी को इससे शक्ति मिलती है।

यद्यपि वह असाध्यरुप से आदर्शवादी थे और अपने निश्चित मानदण्डों द्वारा ही प्रत्येक कार्य को मापते थे,

फिर भी वह मानव-प्रेमी हैं न कि खोखले विचारों के प्रेमी।”

अर्नाल्ड टॉयनबी के अनुसार –

“मैं जिस पीढ़ी में उत्पन्न हुआ वह पीढ़ी पश्चिम में केवल हिटलर अथवा स्टालिन की ही पीढ़ी नहीं थी

अपितु भारत में गांधी की पीढ़ी भी थी।

हम कुछ निश्चयपूर्वक यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि मानव इतिहास पर गांधी का प्रभाव हिटलर और स्टालिन के प्रभाव से अधिक चिरस्थायी होगा।”

गांधी जी के विचारों का ही प्रभाव है कि आज इन्हें सम्पूर्ण विश्व में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है तथा इनके विचार आज भी महत्वपूर्ण हैं।

गांधी जी के विचारों के कारण ही इन्हें अहिंसावादी, महात्मा, बापू तथा राष्ट्रपिता के नाम से जाना जाता है।

इनके जीवन दर्शन को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

1. सत्याग्रह (Satyagrah) –

गांधी जी सत्याग्रह को विशेष महत्व देते थे,

अपनी मांगों को मनवाने के लिए वे सत्याग्रह का सहारा लेते थे।

सत्याग्रह अर्थात ‘सत्य के प्रति आग्रह सत्याग्रह में निष्क्रिय प्रतिरोध न होकर सक्रिय प्रतिरोध होता था।

सक्रिय प्रतिरोध जिसमें प्रेम, विश्वास और आत्मत्याग सम्मिलित होता है।

2. सत्य (Truth) –

गांधी जी पर राजा हरिश्चन्द्र नाटक का व्यापक प्रभाव पड़ा।

जिससे वे सत्यनिष्ठ हो गए, गांधी जी कहते थे कि सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है और ईश्वर (मानवता का) प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है।

गांधी जी कहते थे कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असम्भव है।

3. अहिंसा (Non-violence) –

गांधी जी ने यंग इंडिया पत्रिका में लिखा था कि “जिन ऋषियों ने हिंसा के बीच अहिंसा के सिद्धान्त को खोज निकाला, वे न्यूटन से अधिक प्रखर बुद्धि वाले लोग थे,

वे स्वयं वैलिंगटन से अधिक वीर योद्धा थे।

स्वयं हथियारों का प्रयोग जानते हुए भी उन्होंने इसकी व्यर्थता का अनुभव किया और उन्होंने युद्ध से दुःखी संसार को बतलाया कि इसकी मुक्ति हिंसा द्वारा नहीं अपितु अहिंसा द्वारा ही है।”

अहिंसा का अर्थ है मन, वाणी अथवा कर्म से किसी का आहत या क्षति न पहुँचाना।

अहिंसा का अर्थ अन्यायी के आगे चुपचाप झुक जाना नहीं है, अपितु अपनी आत्मा को अन्यायी की इच्छा के विरुद्ध लड़ना है।

उसके प्रति घृणा नहीं, प्रेम, अहिंसा तथा दया की भावना से, जिससे उसकी आत्मा प्रभावित हो जाए और उसका मन ही बदल जाए।

गांधी जी का विश्वास था कि मानव प्रकृति मूलतः अच्छी है और एक अन्यायकारी का मन, सत्याग्रहियों के आत्म बलिदान से बदल जाएगा और अंत में न्याय की ही विजय होगी।

गांधी जी कहते हैं कि “मैं जानता हूं कि हिंसा की अपेक्षा अहिंसा कई गुनी अच्छी है।

यह भी जानता हूं कि दंड की अपेक्षा क्षमा अधिक शक्तिशाली है।

क्षमा सैनिक की शोभा है लेकिन क्षमा तभी सार्थक है, जब शक्ति होते हुए भी दंड नहीं दिया जाता।

जो कमजोर है, उसकी क्षमा बेमानी है।

वास्तविक शक्ति शरीर बल में नहीं होती, होती है अदम्य मन में।

अन्याय के प्रति ‘भले आदमी की तरह आत्मसमर्पण का नाम अहिंसा नहीं है।

अत्याचारी की प्रबल इच्छा के विरुद्ध अहिंसा केवल आत्मिक शक्ति से टिकती है।”

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4. निर्भीकता (Boldness) –

निर्भीकता को सत्याग्रह का आवश्यक अंग माना गया है, गांधीजी कहते हैं कि “यदि मुझे कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा को चुनना पसंद करूंगा।

दूसरों को न मारकर स्वयं ही मरने की जो धीरतापूर्ण साहस है, मैं उसी की साधना करता हूं।”

5. सर्वधर्म समभाव (All religion equanimity)-

काका कालेलकर की दृष्टि में गांधी जी सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे।

गांधी जी सभी धर्मो के आदर करने पर बल देते थे।

वे कहते थे कि संसार के सभी धर्म हमें सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं,

तथा व्यक्ति को अपने धर्म के साथ-साथ अन्य सभी धर्मों का भी आदर करना चाहिए।

इसीलिए गांधी जी सर्वधर्म प्रार्थना करते थे,

उनका सर्वाधिक प्रिय भजन ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान था।

6. शाकाहार (Vegiterion) –

गांधी जी ने बाल्यावस्था में मांस खाया था,

लेकिन जब वे पढ़ाई के लिए लंदन जा रहे थे तो अपनी माता जी से प्रण किया था कि वे कभी मांस एवं मदिरा का सेवन नहीं करेंगे तथा नियमित रुप से उपवास करेंगे।

जैसे-जैसे गांधीजी वयस्क होते गए, वे पूर्णतः शाकाहारी हो गए। वे नियमित रुप से फलाहार करते थे,

वे कहते थे कि शाकाहारी भोजन शारीरिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम है।

शाकाहारी भोजन को मांसाहार की तुलना में सस्ता मानते थे तथा सभी से शाकाहार अपनाने का आग्रह करते थे।

वे कभी भी दुग्ध उत्पाद का सेवन नहीं करते थे, वे कहते थे कि दूध मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं है।

लेकिन चिकित्सक की सलाह पर वे अंतिम दिनों में बकरी के दूध का सेवन करने लगे।

7. ब्रह्मचर्य (Brahmcharya) –

गांधी जी ब्रह्मचर्य की अवधारणा को स्वीकार करते थे, ब्रह्मचर्य से तात्पर्य अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण करने से है।

गांधी जी कहते हैं कि “अविवाहित अवस्था ब्रह्मचर्य का संकुचित अर्थ है।

मूल अर्थ विद्यार्थी-जीवन या अवस्था है।

इसका अर्थ है इंन्द्रियों का नियंत्रण।’

गांधी जी ब्रह्मचर्य को व्यापक अर्थ प्रदान करते हुए कहते हैं कि जो अपने विकारों और वासनाओं को जवानी में बेलगाम छोड़ देता है,

वह उन्हें कभी काबू में नहीं रख सकता।

मैं यह नहीं चाहता कि आप खेलें-कूदें नहीं और अपनी कोठरी में बंद रहें।

परन्तु आपके सारे काम और खेल का ऊँचा आदर्श संयमी जीवन होना चाहिए।

वे आपको ईश्वर के निकट ले जाने वाला हों।

ब्रह्मचर्य को व्यक्तिगत शुद्धता से जोड़ते हैं।

ब्रह्मचर्य के बिना स्त्री या पुरुष का नाश हो जाता है।

इन्द्रियों को वश में न रखना ऐसा ही है, जैसे किसी बिना पतवार के जहाज में सफर करना,

जो पहली ही चट्टान से टकराने पर अवश्य चूर-चूर हो जाएगा।

इसीलिए मैं सदा ब्रह्मचर्य पर जोर देता हूं।’

8. यौन शिक्षा (Sex education) –

गांधी जी यौन शिक्षा के समर्थक थे,

वे कहते थे कि “छोटी उम्र के विद्यार्थियों को जननेन्द्रिय के कार्य और उपयोग के बारे में ज्ञान देना वांछनीय है या नहीं, उत्तर देना रह ही जाता है।

मेरे ख्याल से एक हद तक इस प्रकार का ज्ञान देना जरूरी है।

अभी तो वें जैसे-तैसे इधर-उधर से यह ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।

नतीजा यह होता है कि पथभ्रष्ट होकर वे कुछ बुरी आदतें सीख लेते हैं।

हम काम-विकार पर उसकी ओर से आंखें बंद कर लेने से ठीक तरह नियंत्रण प्राप्त नहीं कर सकते।

इसलिए मैं जोर के साथ इस पक्ष में हूं कि नौजवान लड़के-लड़कियों को उनकी जननेन्द्रियों का महत्व और उचित उपयोग सिखाया जाय।

जिस काम शिक्षा के पक्ष में मैं हूं उसका लक्ष्य यही होना चाहिए कि इस विकार पर विजय प्राप्त की जाए और उसका सदुपयोग हो। यह सच्चा काम-विज्ञान कौन सिखाये?

स्पष्ट है कि वही सिखाये जिन्होंने इसका अध्ययन किया है, जिसने अपने विकारों पर प्रभुत्व पा लिया है।

9. सादा जीवन, उच्च विचार (Simple life high thought) –

गांधी जी सादगी पर जोर देते थे, वे पश्चिमी जीवन शैली जिसमें भौतिकवादित्ता मुख्य थी,

का त्याग कर साधारण जीवन जीने पर बल देते थे।

वे अनावश्यक खर्च तथा दिखावटीपन का पूर्ण विरोध करते थे,

गांधी जी कहते थे कि व्यक्ति को अपने अधिकांश कार्य जहां तक सम्भव हो, स्वयं करने चाहिए।

वे स्वयं भी कम से कम कपड़े पहनते थे जिससे आम भारतीयों को कपडे उपलब्ध हो सके।

वे तड़क-भड़क वाले वस्त्रों के स्थान पर घर पर बने हुए खादी के वस्त्र पहनने पर बल देते थे।

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10. त्याग (Secrifice) –

गांधी जी ने त्याग को मनुष्य का प्रमुख अंग माना है।

प्रत्येक व्यक्ति में त्याग का गुण अथवा मूल्य होना चाहिए।

गांधी जी निःस्वार्थ त्याग पर बल देते हैं, गांधी जी कहते हैं कि “त्याग से प्रसन्नता न हो तो वह किसी काम का नहीं।

त्याग करने और मुंह फुलाने का मेल नहीं बैठता।

वह मानवता का घटिया नमूना होगा, जिसे अपने त्याग के लिए सहानुभूति की जरुरत हो। वे आगे कहते हैं कि

“जिस त्याग से पीड़ा होती है उसका पर्वित्र स्वरुप नष्ट हो जाता है और जोर पड़ने पर वह टूट जाता है।

त्याग को मानवता का आभूषण माना गया है।

11. सच्चरित्र पर बल (Emphasis on good character) –

गांधी जी ने अच्छे चरित्र पर बल दिया है।

वे कहते हैं है कि चरित्र ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण होता है।

“विद्यार्थियों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपने व्यक्तिगत चरित्र की देखभाल करनी चाहिए।

समस्त ज्ञान का उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए।’

वीर बालक सदा अपना मन पवित्र, आंखें सीधी और हाथ पवित्र रखेगा।

जीवन की ये बुनियादी शिक्षाएं ग्रहण करने के लिए आपको किसी स्कूल में जाने की आवश्यकता नहीं है;

और यदि आपमें यह त्रिविध चरित्र है, तो आपका निर्माण ठोस बुनियाद पर होगा।

विद्यार्थी को सदाचारी, माता-पिता की सेवा करने वाला, मद्यपान एवं धूम्रपान से दूर रहने वाला, इत्यादि होना चाहिए।

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12. सर्वोदय की अवधारणा (Concept of Sarvodaya) –

सर्वोदय की अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम गांधीजी ने किया था,

जिसे आगे चलकर विनोबा भावे ने आगे बढ़ाया तथा सर्वोदय आंदोलन की नींव रखी।

सर्वोदय अर्थात सर्व और उदय, इसमें सबका उदय और सब प्रकार से उदय की अवधारणा निहित है।

गांधी जी सर्वोदय की अवधारणा के माध्यम से समस्त प्राणियों के विकास पर बल देते हैं।

समाज से ऊँच-नीच, अमीर-गरीब इत्यादि को दूर करना।

समाज में सभी वर्गों में समानता स्थापित करना तथा वर्गभेद को दूर करना सर्वोदय की अवधारणा में निहित है।

13. स्वावलम्बन (Self-dependency) –

गांधी जी प्रत्येक व्यक्ति को स्वावलम्बी होने पर बल देते थे।

व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं अपने संसाधन से करनी चाहिए,

किसी को भी अन्य व्यक्तियों पर किसी भी रुप में आश्रित या निर्भर नहीं होना चाहिए।

Mahatma Gandhi

स्वावलम्बन की अवधारणा के मूल में शारीरिक श्रम एवं आत्मनिर्भरता का मूल्य विद्यमान है।

गांधी जी बच्चों को भी शिक्षा के नाध्यम से स्वावलम्बी बनाना चाहते थे।

14. श्रम के प्रति सम्मान (Honour to labour) –

गांधीवादी दर्शन श्रम को महत्वपूर्ण स्थान तथा सम्मान प्रदान करते हैं।

गांधी जी कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने सभी कार्य स्वयं करने चाहिए तथा किसी भी प्रकार के श्रम को हेय की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।

गांधीजी स्वयं भी अपने शौचालय इत्यादि को साफ करते थे।

गांधी जी सभी कार्य को एक समान महत्व प्रदान करते हैं।

15. स्वदेशी पर बल (Emphasis on Indigenous) –

गांधीवादी विचार एवं दर्शन स्वदेशी की अवधारणा का समर्थन करती थी।

गांधी जी विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने तथा स्वदेशी वस्तुओं के अधिक से अधिक उपयोग पर बल देते थे।

गांधीजी हाथ से बने स्वदेशी वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग करने का आग्रह करते थे।

गांधी जी कहते थे कि “स्वदेशी वस्तुएं एवं हाथ से बनी वस्तुएं तुलनात्मक रुप से मंहगी हो सकती है, लेकिन देश के लिए व्यक्ति इतना सहन कर सकता है।”

गांधी जी के विचार तात्कालिक अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध भी थे।

जिससे अंग्रेजी सरकार की नींव धीरे-धीरे कमजोर हो जाए।

स्वदेशी की अवधारणा के कारण ही गांधी जी देशी भाषाओं को अंग्रेजी भाषा की तुलना में अधिक महत्व देते थे तथा शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को बनाने पर बल दिया।

Mahatma Gandhi essay in hindi

गांधी जी का शिक्षा दर्शन (Educational philosophy of Gandhi)

गांधीजी ने शिक्षा के सम्बन्ध में अत्यंत ही विस्तृत विचार प्रस्तुत किया है,

गांधी जी के अनुसार शिक्षा को बालक के सर्वांगीण विकास करने योग्य होना चाहिए।

गांधीजी तात्कालिक अंग्रेजी शिक्षा से अत्यंत दुखी थे,

गांधी जी हरिजन पत्रिका के एक लेख में अंग्रेजी शिक्षा की आलोचना करते हुए कहते है कि

“यह विदेशी संस्कृति पर आधारि है और भारतीय संस्कृति को इसने पूर्णतया बहिष्कृत कर दिया है।

इसका एक मात्र उद्देश्य मानसिक विकास करना है।

इसका हृदय पर कोई प्रभाव नही पड़ता है और इसमें हाथ के कार्य का कोई स्थान नहीं है।

इसमें शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है और वास्तविक शिक्षा विदेशी माध्यम के द्वारा असम्भव है।

गांधी जी अंग्रेजी शिक्षा के विरोधी रहे हैं।

गांधी जी के अनुसार शिक्षा का अर्थ (Meaning of education according to Gandhi)

गांधीजी साक्षरता को शिक्षा नही मानते थे।

गांधी जी के शब्दों में साक्षरता न तो शिक्षा का अंत है और न प्रारम्भ।

यह केवल एक साधन है, जिसके द्वारा पुरुष और स्त्री को शिक्षित किया जा सकता है।

“Literacy is not the end of education and not even the begining.

It is only one means where by men and women can be educated.”

गांधीजी के शब्दों में: “शिक्षा से मेरा अभिप्राय है कि बालक और मनुष्य के शरीर मष्तिष्क और आत्मा पाए जाने वाले सर्वोत्तम गुणों का चतुर्मुखी विकास ।”

“By education, I mean an all-round drawing out the best in child and man body and spirit.”

(Mahatma Gandhi essay in hindi)

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Author: educationallof

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