पाउली का अपवर्जन सिद्धांत किसे कहते हैं

पाउली का अपवर्जन सिद्धांत किसे कहते हैं ( Pauli’s Exclusion Principle)

क्वाण्टम संख्याओं के अध्ययन के पश्चात् सन् 1925 में जर्मन भौतिक विज्ञानी पाउली ने एक सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे पाउली का अपवर्जन सिद्धांत कहा गया।

इसके अनुसार ” किसी परमाणु में कोई दो इलेक्ट्रानो की चारों क्वाण्टम संख्याएं एक-समान नहीं हो सकती। “

किन्हीं दो इलेक्ट्रानो के लिए तीन क्वाण्टम संख्याएं (मुख्य, दिगंशी, चुम्बकीय) एकसमान हों सकती है।

परन्तु चौथीं क्वाण्टम संख्या का मान निश्चित रूप से अलग होगा।

उदाहरण के लिए प्रथम कोश के 2 इलेक्ट्रॉनो के लिए –

प्रथम इलेक्ट्रॉन हेतु-

 n=1, l=0, m=0, s=+1/2

द्वितीय इलेक्ट्रॉन हेतु –

n=1,l=0,m=0,s=-1/2

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि

1. किसी कक्षक में 2 इलेक्ट्रॉन नहीं हो सकते।

2. एक कक्षक में 2 इलेक्ट्रॉन जो जगह लेते हैं उनके चक्रण विपरीत होते हैं अर्थात् यदि एक का चक्रण दक्षिणावर्त है तो दूसरे का चक्रण वामावर्त रहता है।

इसके आधार पर पाउली के अपवर्जन सिद्धांत को इस रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है कि ” किसी एक आॅर्बिटल में अधिकतम 2 ही इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं और दोनों के चक्रण विपरीत होते हैं।”

चूंकि यह सिद्धांत किसी आॅर्बिटल में दो से अधिक इलेक्ट्रॉन होने की संभावना को समाप्त करता है, इसी कारण इसे अपवर्जन सिद्धांत ( Exclusion Principle) कहते हैं।

परमाणु संरचना की खोज (Descover of Atomic structure)

‘परमाणु’ शब्द का उपयोग सर्वप्रथम भारतीय दार्शनिक “महार्षि कणाद” ने 1400 ई. पूर्व में किया था।

उनके अनुसार परमाणु पदार्थ का अतिसूक्ष्म एवं अविभाज्य कण है।

इसके कई शताब्दियों पश्चात् सन् 1804 में जाॅन डाॅल्टन ने परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसके अनुसार भी पदार्थ को छोटे छोटे अविभाज्य कणों से मिलकर बना हुआ माना गया था।

किन्तु 19 वीं शताब्दी के अंत में सर जे.जे. थॉमसन एवं अन्य वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि यह प्रमुख रूप से इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्राॅनो से मिलकर बना होता है।

रदरफोर्ड एवं बोर ने यह बताया कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते रहते हैं।

अब क्वाण्टम यांत्रिकी के द्वारा इलेक्ट्रॉन के कण एवं तरंग जैसे दोहरे व्यवहार की पुष्टि की जा चुकी है।

हाइजेनबर्ग अनिश्चितता के सिद्धांत एवं श्रोडिन्जर समीकरण की सहायता से इलेक्ट्रॉन की स्थिति को कक्ष के स्थान पर कक्षक में पाये जाने की अवधारणा का जन्म हुआ

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