लेंसों का संयोजन कैसे होता है ?

लेंसों का संयोजन (Combination of Lenses)

लेंसों का संयोजन –

दो या दो से अधिक लेंसों को एक दूसरे के सम्पर्क में इस प्रकार रखा जाये कि सभी लेंसों का मुख्य अक्ष उभयनिष्ठ हों ,

तो इस संयोजन को लेंसों का संयोजन कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त निकाय को लेंस तंत्र कहते हैं।

लेंसों का संयोजन कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है ;

जैसे – प्रतिबिम्ब को आवर्धित करने के लिए , इसे प्रतिलोम (Erect) करने के लिए या प्रतिबिम्ब के विभिन्न दोषों को दूर करने के लिए।

अंतिम प्रतिबिम्ब की स्थिति , आकार या प्रकृति का निर्धारण करने के लिए लेंस सूत्र या किरण पथ का प्रयोग करते हैं।

इन दोनों विधियों में सर्वप्रथम पहले लेंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब का निर्धारण करते हैं।

यह प्रतिबिम्ब दूसरे लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है और पुनः इसका प्रतिबिम्ब दूसरे लेंस द्वारा बनता है।

यदि लेंस दो से अधिक है , तो इस विधि को जारी रखते हैं।

इन लेंसों के संयोजन में प्रत्येक लेंस अपने पहले वाले लेंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब को आवर्धित करता जाता है।

अतः कुल आवर्धन प्रत्येक लेंस के आवर्धन के गुणनफल के बराबर होता है।

यदि m₁ ,m₂ , m₃ , ……क्रमशः विभिन्न लेंसों के आवर्धन हों , तो कुल आवर्धन
m = m₁ x m₂ x m₃ x …..

अर्थात लेंस तंत्र का परिणामी आवर्धन अलग अलग लेंसों के आवर्धन के गुणनफल के तुल्य होता है।

सम्पर्क में रखे दो पतले लेंसों की संयुक्त फोकस-दूरी (Focal Length of two Lenses in Contact ) :-

मानलो L₁ और L₂ दो लेंस हैं जिनकी फोकस दूरियाँ क्रमशः f₁ और f₂ हैं।

दोनों लेंस सम्पर्क में रखे गये हैं। मुख्य अक्ष पर बिन्दु आकार की कोई वस्तु O रखी हुई है।

लेंस L₁ द्वारा वस्तु O का प्रतिबिम्ब I₁ पर बनता है। I₁ दूसरे लेंस L₂ के लिए वस्तु का कार्य करता है।

इस प्रकार अन्तिम प्रतिबिम्ब i पर बनता है।

मानलो लेंस से वस्तु O की दूरी = u , प्रतिबिम्ब I₁ की दूरी = v₁ तथा प्रतिबिम्ब I की दूरी = v लेंस L₁ के द्वारा O का प्रतिबिम्ब I₁ पर बनता है।

लेंसों का संयोजन

अतः लेंस सूत्र. 1/f = 1/v – 1/u से ,

1/f₁ = 1/v₁ – 1/u ……(1)

दूसरे लेंस L₂ द्वारा I₁ का प्रतिबिम्ब I पर बनता है। अतः

1/f₂ = 1/v – 1/v₁ ………..(2)

समी. (1) और (2) को जोड़ने से ,

1/f₁ + 1/f₂ = 1/v – 1/u ………..(3)

परन्तु संयुक्त लेंस द्वारा O का प्रतिबिम्ब I पर बनता है।

1/F = 1/v – 1/u ……..(4)

जहां F = संयुक्त लेंस की फोकस दूरी।

समी. (3) और (4) से ,

1/F = 1/f₁ + 1/f₂ ………..(5)

यही अभीष्ट व्यंजक है।

समीकरण (5) का उपयोग करते समय ज्ञात राशियों के मान चिन्ह सहित रखना चाहिए।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष :-

1. समीकरण (5) से स्पष्ट है कि यदि दोनों लेंस उत्तल लेंस हैं , तो संयुक्त लेंस भी उत्तल लेंस होगा और यदि दोनों लेंस अवतल लेंस हैं , तो संयुक्त लेंस भी अवतल लेंस होगा।


2. यदि L₁ उत्तल लेंस तथा L₂ अवतल लेंस हो , तो 1/F = 1/f₁ – 1/f₂ (उचित चिन्हों का प्रयोग करने पर )
स्पष्ट है कि (१) यदि f₁ < f₂ ,तो F धनात्मक होगा

अर्थात यदि कम फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस को उससे अधिक फोकस दूरी वाले अवतल लेंस के सम्पर्क में रखा जाये तो संयुक्त लेंस उत्तल लेंस की तरह कार्य करेगा।

(२) f₂ < f₁ , तो F ऋणात्मक होगा अर्थात यदि कम फोकस दूरी वाले अवतल लेंस को अधिक फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस के सम्पर्क में रखा जाये तो संयुक्त लेंस अवतल लेंस की तरह कार्य करेगा।

(३) यदि f ₁= f₂ हो , तो 1/ F = 0 या F = ∞
अर्थात यदि समान फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस और अवतल लेंस को सम्पर्क में रखा जाये तो यह संयोजन एक समतल काँच की प्लेट की तरह कार्य करेगा।

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