दोलन चुम्बकत्वमापी
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दोलन चुम्बकत्वमापी
इस उपकरण में चुंबक को दोलन कराकर चुंबकीय मापन किया जाता है। अतः इसे दोलन चुम्बकत्वमापी कहते हैं।
उपकरण का वर्णन –
दोलन चुम्बकत्वमापी चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
इसमें लकड़ी का एक आयताकार बॉक्स B होता है, जिसकी आमने-सामने की भुजाएं खिसकने वाले कांच की बनी होती है ।
इस बॉक्स की छत पर बीचोंबीच एक छिद्र होता है, जिसको घेरे हुए कांच की नली T होती है,
जिसके ऊपरी सिरे पर धातु की टोपी C लगी होती है, जिसे मरोड़ टोपी ( Torsion head ) कहते हैं।
इसमें ऐठन रहित रेशम का धागा ( या घोड़े की पूंछ का बाल) बंधा होता है।
इस धागे के दूसरे सिरे पर हल्के तथा अअचुंबकीय पदार्थ (एलुमिनियम) का बना रकाब S बंधा होता है जो बॉक्स के अंदर होता है ।
रकाब में चुंबक को रखकर क्षैतिज तल में दोलन कराया जाता है।
बॉक्स के अंदर नीचे के तल पर एक समतल दर्पण M लगा रहता है, जिसके मध्य में लंबाई के समांतर एक रेखा खींची होती है।
यह रेखा निर्देश रेखा कहलाती है ।
बॉक्स की छत पर निर्देश रेखा के समांतर दो खिड़कियां S1 और S2 बनी होती है।
उसके ऊपर आँख को रखकर चुंबक के दोलन गिने जाते हैं।
उपकरण के आधार पर तीन समतलकारी पेंच लगे होते हैं, जिसकी सहायता से आधार को क्षैतिज किया जाता है।
दोलन चुंबकत्वमापी का समायोजन –
सर्वप्रथम स्पिरिट तलदर्शी और समतलदर्शी पेंचों की सहायता से उपकरण के आधार को क्षैतिज कर लेते हैं।
अब एक दिक्सूची निर्देश रेखा पर रखकर बॉक्स को इतना घूमाते हैं कि निर्देश रेखा सुई के समांतर आ जाए।
ऐसा करने से दोलन चुंबकत्व मापी चुंबकीय याम्योत्तर में समायोजित हो जाता है ।
जिसके पश्चात दिक सूची को हटाकर रकाब में पीतल की छड़ रखते हैं और मरोड़ टोपी की सहायता से उसे निर्देश रेखा के समांतर ले आते हैं, जिसे धागा ऐंठन समाप्त हो जाता है।
अब पीतल की छड़ को हटाकर उसके स्थान पर प्रायोगिक दंड चुंबक को इस प्रकार रखते हैं कि उसका उत्तरी ध्रुव उत्तर की ओर रहे ।
एक अन्य चुंबक के N ध्रूव को बाहर से रकाब में रखे चुंबक के N ध्रुव के पास धीरे से लाकर हटा देते हैं, जिससे चुंबक निर्देश रेखा के दोनों ओर सरल आवर्त गति करने लगता है।
सिद्धांत –
किसी चुंबक को पृथ्वी के क्षेत्र में स्वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर वह कुछ समय पश्चात चुंबकीय याम्योत्तर में स्थिर हो जाता है।
इस स्थिति में चुम्बक को θ कोण से विस्थापित करने पर उस पर प्रत्यानयन बलयुग्म (mH , mH) कार्य करने लगता है,
जिसका आघूर्ण MH sin θ होता है जहां M चुंबक का ध्रुव प्रॉबल्य , M चुंबकीय आघूर्ण तथा H पृथ्वी की क्षैतिज तीव्रता है ।
यह प्रत्यानयन बल युग्म उसे माध्य स्थिति में ले आता है, किंतु चुंबक में गति होने के कारण वह मध्य स्थिति में नहीं रुकता, अपितु विपरीत दिशा में चला जाता है।
पहले की भांति इस पर पुनः प्रत्यानयन बल युग्म कार्य करने लगता है, जो उसे पुनः माध्य स्थिति की ओर ले आता है।
इस प्रकार चुंबक माध्य स्थिति के दोनों सरल आवर्त गति करने लगता है।
चित्र के अनुसार, मान लो किशि क्षण पर दोलन करते हुए चुम्बक का माध्य स्थिति से विक्षेप θ तथा इस स्थिति में चुंबक का कोणीय त्वरण α है।
यदि दोलन अक्ष के परितः चुंबक का जड़त्व आघूर्ण I हो, तो
चुम्बक पर विक्षेपक बलयुग्म का आघूर्ण =I α
किन्तु प्रत्यानयन बलयुग्म का आघूर्ण = MH sin θ
चुम्बक के स्वतंत्र दोलनों के लिए दोनों आघूर्ण बराबर तथा विपरीत होने चाहिए।
∴ I α = – MH sin θ
या α = -( MH / I ) sin θ
यदि θ का मान बहुत कम है , तो sin θ = θ
α = -( MH / I ) θ ………(1)
α = – μ θ ……..(2)
μ = MH / I = एक नियतांक
अतः α ∝ – θ
इस प्रकार चुंबक का कोणीय त्वरण कोणीय विक्षेप के अनुक्रमानुपाती है तथा उसकी स्थिति माध्य स्थिति की ओर है। अतः चुंबक की गति सरल आवर्त गति होगी।
सरल आवर्त गति में आवर्तकाल T = 2 π √ विस्थापन /त्वरण
या T =2 π √θ/α
परन्तु θ/α = I /MH
∴ T = 2 π √I /MH ……(3)
यही दोलन चुंबकत्व मापी में रखे चुम्बक के दोलन काल का व्यंजक है।
आयताकार छड़ चुम्बक के लिए ,
I = W ( l2 + b2 /12)
जहाँ W = छड़ चुम्बक का द्रव्यमान ,
l = लम्बाई तथा b = चौड़ाई
बेलनाकार छड़ चुम्बक के लिए ,
I = W ( l2 / 12 + r2 / 4 )
जहाँ W = छड़ चुम्बक का द्रव्यमान ,
l = लम्बाई तथा r = त्रिज्या।
चुंबक के दोलन काल की निर्भरता –
समीकरण 2 से स्पष्ट है कि किसी चुंबक का दोलन काल निम्न कारकों पर निर्भर करता है –
(1) . चुंबक के जड़त्व आघूर्ण पर –
यदि M व H नियत हो तो T ∝√ I अर्थात किसी चुंबक का दोलन काल उसके जड़त्व आघूर्ण के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती होता है ।
इस प्रकार जड़त्व आघूर्ण अधिक होने पर चुंबक का दोलन काल अधिक होता है।
(2). चुंबकीय आघूर्ण पर –
यदि I व H नियत हो , तो T ∝ 1 / √M अर्थात किसी चुम्बक का दोलन काल उसके चुंबकीय आघूर्ण के वर्गमूल के व्यत्क्रमानुपाती होता है ।
इस प्रकार चुंबकीय आघूर्ण अधिक होने पर चुंबक का दोलन काल कम होता है ।
(3).पृथ्वी की क्षैतिज तीव्रता पर –
यदि I व M नियत हों , तो T ∝ 1 / √ M अर्थात किसी चुंबक का दोलनकाल उस स्थान पर पृथ्वी की क्षैतिज तीव्रता के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
नोट-
(1). ध्यान रहे कि रकाब को तार से नहीं लटका सकते , क्योंकि तार भारहीन नहीं होता तथा इस पर भार लटकाने से उसकी लंबाई बढ़ सकती है ।
(2). समीकरण (3) तभी लागू होगा जबकि धागा ऐठन रहित हो , क्षेत्र एक समान हो तथा चुंबक का कोणीय विस्थापन छोटा हो।
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