
मूली खाने के फायदे
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मूली खाने के फायदे –
प्रकृति ने हमें जो कुछ भी खाने-पीने योग्य दिया है, उन सभी में कुछ न कुछ गुण अवश्य मौजूद हैं।
दुनिया भर में पाई जाने वाली सब्जियों में मूली का विशेष स्थान है।
कहते हैं, यदि प्रातः बेला में कोई एक हजार रुपये भी एक मूली की कीमत मांगे तो भी उसे सस्ता समझकर खरीद लेना चाहिए।
क्योंकि सुबह-सुबह इसकी तासीर अमृत के समान मानी गयी है।
मूली जमीन के अन्दर बढ़ती है।
यह कई स्वादों वाली होती है।
कुछ मीठी तो कुछ तीखी या फीकी पर फायदेमन्द सभी हैं।
मूली भोजन को पचाने वाली तथा उदर विकार को नष्ट करने वाली होती है, परन्तु यह स्वयं बहुत देर से पचती है।
तासीर –
मूली की तासीर ठंडी होती है।
पेट के लिए मूली बहुत लाभदायक है।
जिगर, तिल्ली, गुर्दा तथा पीलिया आदि में मूली का सेवन लाभकारी है।
आंत के रोग से पीड़ित मरीजों के लिए भी इसका सेवन अत्यन्त लाभकारी है।
मूली पर काला नमक डालकर भोजन के साथ इसका सेवन करने से कष्ट दूर होता है।
गर्मी के प्रभाव से अगर खट्टी डकारें आती हों, तो मूली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
पीलिया के रोगी को रोज प्रातः उठते ही कच्ची मूली के खानी चाहिएं।
इससे पीलिया ठीक हो जाता है इसके अतिरिक्त मूली के पत्तों के 125 ग्राम रसं में 30 ग्राम चीनी मिलाकर यदि इसे पियें तो इसके रोग से जल्दी छुटकारा मिलता है।
पेट में यदि दर्द महसूस हो, तो मूली के रस में नमक, काली मिर्च डालकर पीने से बहुत जल्द आराम मिलता है।
खूनी बवासीर में –
खूनी बवासीर में एक कप मूली के रस में एक चम्मच देसी घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम पीने से फौरन फायदा होता है।
मूली क्योंकि देर से पचती है, इसलिए इसके खाने के बाद गुड़ का सेवन आवश्यक है।
ऐसा करने से डकार में मूली की गंध नहीं आती।
मूली उगाने के लिए जरूरी नहीं है कि लंबी-चौड़ी खेती की जाये। यह आसानी से घरों के किचन गार्डन में उगाई जा सकती है।
इसे यदि खेत की गुड़ाई कर मेड़ों की कतार बनाकर उसमें बोया जाये तो मूली की मोटाई और लम्बाई दोनों पर अनुकूल असर पड़ता है।
यदि जमीन की बहुत दिक्कत हो तो अन्य खेतों के मेड़ों पर भी अमूमन मूली के बीज बो देते हैं, जो लगभग एक से दो माह के बीच बढ़कर तैयार हो जाती है।
वैसे कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिन्हें गर्मियों में भी उगा सकते हैं।
कुछ भी हो प्रकृति द्वारा प्रदत्त सम्पदाओं में मूली अवश्य ही एक अनमोल हीरा है।
खाने की मेज पर सलाद के रूप में प्याज और टमाटर के साथ अमूमन मूली की विभिन्न आकृतियां देखी जा सकती हैं।
कुछ लोग भी मूली के पत्ते को भी सलाद के साथ इस तरह सजा देते हैं कि यह न सिर्फ आगन्तुकों को आकर्षित करती है, बल्कि लोग इसका सेवन बड़े चाव से करते हैं।
वैद्यों का अनन्य साथी, डाइनिंग टेबल की शान मूली वास्तव में प्रकृति की अनूठी देन है।
दाद के लिए-
मूली के बीज गंधक आमलामार, गुगल 20-20 ग्राम, नीला तूतिया 1 ग्राम सबको बारीक करके आधा पाव चीनी में घिस कर रख लें दाद पर लगायें। कुछ दिन के बाद दाद ठीक होगा।
पेशाब के लिए-
मूली का अचार जिसमें नमक और काली मिर्च हो रोजाना खाने से तिल्ली और पेशाब लगकर और कतरा आने को फायदा करता है।
बवासीर-
रसौत 20 ग्राम मूली खोखली करके उसमें भरकर मुंह बंद करके उपलों की आग पर भस्म कर लें।
दूसरे दिन रसौत निकाल कर मूली के रस में मोटे बेर के बराबर गोलियां बनायें।
एक गोली सुबह एक शाम को पानी से खाने से मुफीद है। गर्म चीज का परहेज करें।