समान्तर माध्य

समान्तर माध्य (Arithematic mean)

समान्तर माध्य

परिभाषा :-

सामान्तर माध्य चर का वह मान है जो उसके समस्त मानों का योग निकालकर उसकी संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है।

अर्थात अंकगणित मे जिस मान को औसत (Average) कहा जाता है वहीं सांख्यिकी मे समान्तर माध्य या केवल माध्य कहलाता है।

समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधियां :-

1. जब आंकड़े अवर्गीकृत हो :-

यदिचर x के मान x₁ ,x₂ ,x₃ ,……..xₙ हो तो उनका

समान्तर माध्य = पदों का योग / पदों की संख्या

= x₁+x₂+x₃………+xₙ / n = (∑x) / n

जहां ∑x = x₁+x₂+x₃……..+xₙ

2. जब आंकड़े अवर्गीकृत परंतु सारणीबद्ध हो

अर्थात जब चर तथा उनकी संगत आवृत्तियाँ (बारम्बारतायें) दी हुई हो।

यदि चर (variables) x₁ ,x₂ ,x₃ ,……. xₙ तथा उनकी संगत बारम्बारतायें f₁ ,f₂ ,f₃ ,……. fₙ हो तब

समान्तर माध्य = आवृत्ति एवं पद मूल्य के गुणनफल का बीजीय योग / बारम्बारताओं (आवृत्ति) का योग

= f₁x₁+f₂x₂+f₃x₃ ……+ fₙxₙ / f₁+f₂+f₃….+fₙ

समान्तर माध्य = ∑fᵢxᵢ /∑fᵢ = (∑fx) / N

जहां x= चर (अथवा पद ) f= चर x की संगत बारम्बारता तथा N =∑f = बारम्बारताओं का योग

3. जब आंकड़े वर्गीकृत हो :-

इस प्रकार के आंकड़े से समांतर माध्य निकालने के लिए मुख्यतः दो विधियां प्रयोग की जाती हैं :-

(क) प्रत्यक्ष(अथवा साधारण) विधि (Direct Method)

(ख) लघु (कल्पित माध्य) विधि (Short cut Method)

(क) प्रत्यक्ष विधि :-

इस विधि मे सूत्र समान्तर माध्य x=∑fx/∑f का ही प्रयोग होता है परंतु यहां ‘x’ चर का पद न होकर वर्ग-अंतराल (class-interval) का मध्यमान (Mid-value) होता है।

अर्थात यहां ∑fx प्रत्येक वर्ग-अंतराल के मध्यमान तथा उसकी संगत बारम्बारता के गुणनफलो का योगफल होता है और ∑f सभी बारम्बारताओं का योगफल होता है।

(ख) लघु विधि :-

जब पदों की संख्या कम हो और अंक छोटे हो , तो उपरोक्त विधि से समान्तर माध्य का परिकलन करना बहुत सरल होता है। परंतु समानांतर माध्य की संगणना करने की इस विधि में बहुत गणनाएं करनी पड़ती है।

संख्याएं इससें भी बहुत अधिक हो सकती है और उस समय माध्य की संगणना करना बहुत कठिन हो जाता है। इस कठिनाई से बचने के लिए लघु विधि का प्रयोग किया जाता है।

इस विधि में स्वेच्छा से किसी भी संख्या को माध्य मान लेते हैं जिसको कल्पित माध्य कहते है और अस्थायी माध्य से विचारों के विचलनों को ज्ञात किया जाता है। तब –

(1). असमूहित आंकड़ों की दशा में

x = a + (∑d) / n

जबकि , a= अस्थायी माध्य (कल्पित माध्य)

d=a (कल्पित माध्य) से किसी भी विचर का विचलन, d= x-a

n = पदों की संख्या।

(2). समूहित आंकड़ो की दशा में

x = ∑(fd)/∑f

जबकि , a= अस्थायी माध्य (कल्पित माध्य)

d=a से किसी भी विचर का विचलन, अर्थात x-a

f= विचर की संगत बारम्बारता

fd=बारम्बारता और संगत विचलनों का गुणनफल।

लघु विधि से समान्तर माध्य गणना प्रक्रम के पद :-

1. किसी भी संख्या को कल्पित माध्य मान लिजिए कि कोई भी संख्या कल्पित माध्य का कार्य दे सकती है।

परंतु सदैव उस संख्या को कल्पित माध्य मानना अच्छा रहता है जो या तो बीच में स्थित हो या जिसकी बारम्बारता सबसे अधिक हो।

सीमांत मानों को कल्पित माध्य नहीं लेना चाहिए।

2. प्रत्येक विचर का कल्पित माध्य से विचलन d ज्ञात कीजिए अर्थात (x-a)=d

3. प्रत्येक वर्ग के विचलन को संगत बारम्बारताओं से गुणा किजिए, एवं इस गुणनफल का योगफल ज्ञात कीजिए। अर्थात ∑(fd)

4. इस योगफल को कुल बारम्बारता ∑f से भाग दीजिए और इस परिणाम मे कल्पित माध्य को जोड़ियें।

इस प्रकार प्राप्त संख्या अभीष्ट माध्य होगी।

पद विचलन विधि (Step deviation method) :-

समान वर्ग अंतराल की दशा में विचलनों मे से वर्ग अंतराल के परिमाण को उभयनिष्ठ निकालकर गणना को और अधिक सरल किया जा सकता है।

यहां पर प्रयोग में लाया गया सूत्र निम्नलिखित हैं :-

समान्तर माध्य x = a + (∑fd′/∑f) ⨯ i

जबकि कल्पित माध्य से पद विचलन d′ = x – a / i और i = वर्ग अंतराल का परिमाप

समान्तर माध्य के गुण :-

1.समान्तर माध्य दृढतः परिभाषित होता है अर्थात परिभाषा स्पष्ट होती है।

2. यह सभी प्रेक्षकों पर आधारित होती है।

3. दिए आंकड़ों से इसकी गणना बड़ी सरलता से हो सकती है।

4. इसकी व्यापक प्रकृति आसानी सू समझी जा सकती हैं। सम्पूर्ण एवं इसके भागों में सरल संबंध होता है।

5.इसका बीजीय प्रतिपादन सरलता से किया जा सकता है अर्थात दो या अधिक श्रेणियों का माध्य भिन्न भिन्न श्रेणियों के माध्यों से प्राप्त किया जा सकता है।

6. यदि केवल पदों की संख्या व उनका योगफल ज्ञात हो तो माध्य को ज्ञात किया जा सकता है।

7. यह कभी अनिश्चित नहीं होता है।

8. इसमें सामग्री की किसी विशेष क्रम में रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती जैसा कि मध्यिका एवं बहुलक के लिए आवश्यक है।

समान्तर माध्य के दोष :-

1.यह सम्भव हैं कि समान्तर माध्य वास्तविक आंकड़ों में न हो। जैसे किसी होटल में आने वाले व्यक्ति का समान्तर माध्य 20.45 हो सकता है।

किंतु इनके आंकड़े मे ऐसा कभी नहीं हो सकता जहां से माध्य की गणना की गई है।

2. यह बड़े पदों को अधिक महत्व देता है। जैसे एक कस्बे में रहने वाले अरबपति की आय से उस कस्बे में रहने वाले व्यक्तियों की माध्य बहुत ऊंची हो जायेगी जबकि वहां कम वेतन भोगी व्यक्ति भी रहते हैं।

अतः इससे प्राप्त माध्य वास्तविकता से दूर हो जायेगा।

3. इसे आंकड़ों के निरीक्षण मात्र से निर्धारित नहीं नहीं किया जा सकता जबकि मध्यिका व बहुलक को किया जा सकता है।

4. एक भी पद के छोड़े जाने पर इसकी शुद्धता मे कमी आ सकती है।

5. इसे बुद्धि प्रखरता, ईमानदारी जैसी मापें जाने वाले गुणों के लिए ठीक – ठीक प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।

6. यदि वास्तविक संख्या जिनसे यह निकाला गया है जो न दी गयी हो , तो गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं।

दो विद्यार्थियों A और B तीन परीक्षाओं मे निम्न अंक प्राप्त करते हैं।

दोनों के अंको का औसत (माध्य) 50% है किन्तु A की उन्नति धनात्मक है जबकि B की ऋणात्मक है।

7. यदि चरम वर्ग संवृत्त (Open) हो जैसे 5 से नीचें या 70 से ऊपर तो इसकी गणना नहीं की जा सकती।

समान्तर माध्य के उपयोग :-

1.इसका उपयोग आर्थिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक आदि के अध्ययन में होता है।

जैसे औसत आय , औसत पैदावार, औसत भार , औसत मूल्य ज्ञात करने में इसका उपयोग किया जाता है।

2.इसका प्रयोग अन्य मापें जैसे विचरणो गुणांक सहसंबंध गुणांक आदि की गणना मे किया जाता है।

समान्तर माध्य की विशेषताएं :-

1.दिये गए विचरणो के प्रत्येक पद मे k जोड़ने या घटाने से नये विचरणो का माध्य पहले विचरणो के समान्तर माध्य मे k जोड़ने या घटाने से प्राप्त किया जा सकता है।

2. दिए गए विचरणो के प्रत्येक पद मे k का गुणा या भाग देने से प्राप्त नये विचरणो का समान्तर माध्य पुराने विचरणो के माध्य मे k का गुणा या भाग देने से प्राप्त किया जा सकता है।

गोला और वृत्त में अन्तर

गोला से सम्बंधित सूत्र

माध्यिका (Median) किसे कहते हैं ?

लघु विधि

दोलन चुम्बकत्वमापी (Vibration Magnetometer)

चुम्बकीय प्रवृत्ति (Magnetic susceptibility)

क्वाण्टम संख्याएँ

कक्षा और कक्षक में अंंतरगोला और वृत्त में अन्तर

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