आवेश उत्पत्ति का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त

आवेश उत्पत्ति का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त (Electronic Theory of Origin of Charge)

आवेश उत्पत्ति का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त

हम जानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है।

प्रत्येक अणु एक या एक से अधिक परमाणुओं से मिलकर बना होता है।

प्रत्येक परमाणु का समस्त भार उसके केन्द्रीय भाग में केन्द्रित होता है,

जिसे नाभिक (Nucleus) कहते हैं।

नाभिक में दो प्रकार के कण होते हैं–

(i) प्रोटॉन (Proton) और (ii) न्यूट्रॉन(Neutron)।

प्रोटॉनों में धनावेश होता है, जबकि न्यूट्रॉनों में किसी प्रकार का आवेश नहीं होता।

नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन (Electrons) विभिन्न स्थिर कक्ष (Fixed Orbits) में चक्कर लगाते रहते हैं।

इलेक्ट्रॉनों में इसका मतलब यह हुआ ऋणावेश होता है।

प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का ऋणावेश परिमाण में प्रत्येक प्रोटॉन के धनावेश के बराबर होता है।

इसके अतिरिक्त प्रत्येक परमाणु में प्रोटॉनों की संख्या इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती

कि प्रत्येक परमाणु में धनावेश की कुल मात्रा ऋणावेश की कुल मात्रा के बराबर होती है।

अतः परमाणु दो विपरीत प्रकार के आवेशित कणों के विद्यमान होने के बावजूद विद्युत् रूपेण उदासीन होता है।

जो इलेक्ट्रॉन नाभिक के निकट कक्षाओं में परिभ्रमण करते रहते हैं, उन्हें बद्ध इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

ये नाभिक से दृढ़ता पूर्वक बँधे होते हैं, क्योंकि नाभिक और इन इलेक्ट्रॉनों के मध्य लगने वाला आकर्षण बल बहुत प्रबल होता है।

ज्यों-ज्यों इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी बढ़ती जाती है, आकर्षण बल का मान कम होता जाता है।

अन्तिम कक्षा में इलेक्ट्रॉनों पर आकर्षण बल का मान बहुत कम होता है,

अतः बाह्य ऊर्जा की सूक्ष्म मात्रा से इलेक्ट्रॉन अपने नाभिक से मुक्त होकर पृष्ठ पर गति करते रहते हैं।

इन इलेक्ट्रॉनों को मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

यही मुक्त इलेक्ट्रॉन वस्तुओं के आवेशित या विद्युत्मय होने के लिये जिम्मेदार होते हैं।

घर्षण-विद्युत् की व्याख्या–

जब दो पदार्थों को आपस में रगड़ा जाता है तो एक पदार्थ में से इलेक्ट्रॉन (जो दूसरे पदार्थ की अपेक्षा कम बल से बद्ध होते हैं) निकलकर दूसरे पदार्थ में चले जाते हैं।

इस प्रकार पहले पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाती है और दूसरे पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता हो जाती है।

अत: पहला पदार्थ धनावेशित तथा दूसरा पदार्थ ऋणावेशित हो जाता है।

उदाहरण-

(i) जब काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ा जाता है तो काँच से इलेक्ट्रॉन निकलकर रेशम में चले जाते हैं।

अतः काँच की छड़ धनावेशित तथा रेशम का कपड़ा ऋणावेशित हो जाता है।

(ii) जब एबोनाइट की छड़ को ऊनी कपड़े से रगड़ा जाता है, तो ऊनी कपड़े से इलेक्ट्रॉन निकलकर एबोनाइट में चले जाते हैं।

अत: एबोनाइट की छड़ ऋणावेशित तथा ऊनी कपड़ा धनावेशित हो जाता है।

ध्यान रहे कि रगड़ने की इस क्रिया में एक पदार्थ में जितना धनावेश उत्पन्न होता है दूसरे पदार्थ में ठीक उतना ही ऋणावेश भी उत्पन्न होता है।

नोट: इलेक्ट्रॉनों की कमी के कारण (अर्थात् इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने के कारण) पदार्थ धनावेशित हो जाता है। चूँकि इलेक्ट्रॉन में द्रव्यमान होता है, धनावेशित पदार्थ का द्रव्यमान कुछ कम हो जाता है।

इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण (अर्थात् और इलेक्ट्रॉनों के प्रवेश कर जाने के कारण) पदार्थ ऋणावेशित हो जाता है। अतः ऋणावेशित पदार्थ का द्रव्यमान कुछ बढ़ जाता है। इस प्रकार किसी पदार्थ को आवेशित करने पर उसका द्रव्यमान परिवर्तित हो जाता है।

व्यतिकरण किसे कहते हैं ?

यंग का द्वि स्लिट प्रयोग

ब्रूस्टर का नियम (Brewester’s law )

अनुदैर्ध्य तरंग में ध्रुवण क्यों नहीं होता ?

आवेशों का संरक्षण किसे कहते हैं

नदियों के समुद्र में मिलने पर डेल्टा बनता है,समझाइये।

educationallof
Author: educationallof

FacebookTwitterWhatsAppTelegramPinterestEmailLinkedInShare

2 thoughts on “आवेश उत्पत्ति का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त

Comments are closed.

FacebookTwitterWhatsAppTelegramPinterestEmailLinkedInShare
error: Content is protected !!
Exit mobile version