चालक और विद्युतरोधी

चालक और विद्युतरोधी (Conductor and Insulators)

जानिए , चालक और विद्युतरोधी (Conductor and Insulators)

चालक–

चालक वे पदार्थ होते हैं जो बाह्य विद्युत् क्षेत्र लगाये जाने पर अपने में से विद्युत् धारा को बहने देते हैं।

चालकों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अत्यधिक होती है।

अतः बाह्य विद्युत् क्षेत्र लगने पर ये इलेक्ट्रॉन गतिशील हो जाते हैं, फलस्वरूप विद्युत् का प्रवाह होने लगता है।

ताँबा, चाँदी, सोना आदि धातु विद्युत् के अच्छे चालक होते हैं।

(Insulator) विद्युत्रोधी–

विद्युत्रोधी वे पदार्थ होते हैं जो बाह्य विद्युत् क्षेत्र लगाये जाने पर अपने में से विद्युत् धारा को बहने नहीं देते।

विद्युत्रोधी में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अभाव रहता है।

Insulator के इलेक्ट्रॉन मूल नाभिक से दृढतापूर्वक बँधे रहते हैं।

अत: बाह्य विद्युत् क्षेत्र लगाने पर गतिशील नहीं हो पाते।

लकड़ी, रबर, काँच आदि विद्युत्रोधी हैं।

जब किसी चालक को रगड़ा जाता है, तो रगड़ने से उत्पन्न आवेश शरीर से होता हुआ पृथ्वी में चला जाता है।

अत: चालक को रगड़ने पर उसमें कोई आवेश उपस्थित नहीं रहता।

फलस्वरूप 18वीं शताब्दी के पहले चालकों को अविद्युतीय (Non-Electric) कहा जाता था।

इसके विपरीत जब विद्युत्रोधी को रगड़ा जाता है तो रगड़ने से उत्पन्न आवेश उसमें विद्यमान रहता है।

अतः विद्युत्रोधी पदार्थों को परावैद्युत (Dielectric) कहा जाता था।(चालक और विद्युतरोधी)

 चालक में मुक्त तथा बद्ध आवेश (Free and Bound Charges in Conductor)

जब किसी आवेशित चालक को किसी अनावेशित विद्युत्ररोधी चालक के पास लाया जाता है,

तो अनावेशित चालक के पास वाले सिरे पर विजातीय आवेश तथा दूरवर्ती सिरे पर सजातीय आवेश उत्पन्न हो जाता है।

इस क्रिया को स्थिर विद्युत् प्रेरण (Electrostatic Induction) कहते हैं।

चालक और विद्युतरोधी

चित्र (a) में A एक धनावेशित चालक तथा BC एक अनावेशित विद्युतरोधी चालक है।

जब चालक A को चालक BC के सिरे B के पास लाया जाता है,

तो सिरे B पर ऋणावेश तथा सिरे C पर धनावेश उत्पन्न हो जाता है।

अब यदि सिरे C को पृथ्वीकृत कर दिया जाये, तो सिरे C पर उत्पन्न धनावेश पृथ्वी में चला जाता है किन्तु सिरे B पर उत्पन्न आवेश चालक A के आवेश के आकर्षण के कारण उसी सिरे पर बद्ध रहता है ।

चालक A को हटा लेने पर सिरे B पर बद्ध ऋणावेश पूरे चालक में फैल जाता है।

फलस्वरूप चालक BC ऋणावेशित हो जाता है [ चित्र (c)]।

किन्तु यदि स्थिति (a) में चालक A को हटा लिया जाये तो B और C सिरे पर उत्पन्न आवेश एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं,

फलस्वरूप चालक BC पुनः अनावेशित हो जाता है।

चालक BC के सिरे B और C पर उत्पन्न आवेशों को प्रेरित आवेश तथा चालक A के आवेश को प्रेरक आवेश कहते हैं।

इस प्रकार, स्थिर विद्युत् प्रेरण की क्रिया में चालक के जिस सिरे का प्रेरित आवेश आकर्षण के कारण बंधा रहता है ,

उसे बद्ध आवेश तथा जिस सिरे का प्रेरित आवेश पृथ्वी में या अन्य चालकों में जाने के लिए स्वतंत्र होता है , उसे मुक्त आवेश कहते हैं।

स्पष्ट है कि चालक पर बद्ध और मुक्त आवेश विजातीय होते हैं।

व्याख्या –

स्थिर विद्युत् प्रेरण की व्याख्या इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त के आधार पर की जा सकती है।

जब धनावेशित चालक A को चालक BC के सिरे B के पास लाया जाता है तो चालक BC के मुक्त इलेक्ट्रॉन चालक A के धनावेश से आकर्षित होते हैं।

फलस्वरूप सिरे B पर इलेक्ट्रॉनों की अधिकता तथा सिरे C पर इलेक्ट्रॉनों को कमी हो जाती है।

अत: सिरा B ऋणावेशित तथा सिरा C धनावेशित हो जाता है।

जब चालक A को हटा लिया जाता है तो इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने वाला कोई आवेश नहीं रहता।

अत: इलेक्ट्रॉन चालक BC में पुन: पूर्ववत् गति करने लगते हैं, फलस्वरूप चालक BC पुनः अनावेशित हो जाता है।

चित्र (b) की भाँति जब सिरे C को पृथ्वीकृत कर दिया जाता है तो पृथ्वी से इलेक्ट्रॉन सिरे C को ओर चलने लगते हैं जिससे वह सिरा अनावेशित हो जाता है

किन्तु सिरे B के इलेक्ट्रॉन चालक A के धनावेश के आकर्षण बल से बंधे रहते हैं।

चित्र (c) की भाँति जब चालक A को हटा लिया जाता है तो सिरे B के बद्ध इलेक्ट्रॉन पूरे चालक BC में फैल जाते हैं।

चालक BC में इलेक्ट्रॉनों को अधिकता (जितने इलेक्ट्रॉन सिरे B पर बद्ध थे उतने इलेक्ट्रॉन पृथ्वी से सिरे C पर पहुँच चुके हैं) होने के कारण वह ऋणावेशित हो जाता है।

इसी प्रकार, यदि चालक BC के सिरे B के पार ऋणावेशित चालक लाया जाये तो ठीक विपरीत क्रिया होती है।

इस क्रिया द्वारा चालक BC को धनावेशित किया जा सकता है।

 स्थिर वैद्युत क्षेत्र में चालक का व्यवहार (Behaviour of Conductor in Electrostatic Field)

हम जानते हैं कि चालकों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अत्यधिक होती है।

अतः जब किसी चालक को विद्युत् क्षेत्र में रखा जाता है, तो ये इलेक्ट्रॉन विद्युत् क्षेत्र की दिशा के विपरीत चलने लगते हैं।

इलेक्ट्रॉनों की गति उस समय तक जारी रहती है जब तक कि इलेक्ट्रॉनों की गति के कारण उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र E बाह्य विद्युत् क्षेत्र E के बराबर नहीं हो जाता।

इस प्रकार चालक के अन्दर प्रत्येक बिन्दु पर विद्युत् क्षेत्र शून्य हो जाता है।

स्थिर वैद्युत क्षेत्र में चालक

चूँकि चालक के अन्दर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है।

चालक के अन्दर कुल आवेश का मान शून्य होता है।

इसे गाँस प्रमेय से आसानी से सिद्ध किया जा सकता है।

गाँस के प्रमेय से,

Φ= q /ε0……..(1)

चालक के अन्दर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है, अतः सम्पूर्ण विद्युत् फ्लक्स शून्य होगा।

अतः समीकरण (1) से आवेश का मान भी शून्य होगा।

किसी विद्युत् क्षेत्र में चालक में निम्न गुण पाये जाते हैं –

(i) चालक के अन्दर प्रत्येक बिन्दु पर विद्युत् क्षेत्र शून्य होता है।

अत: चालक के अन्दर कोई आवेश नहीं होता।

(ii) आवेश केवल चालक के बाह्य पृष्ठ पर ही रहता है।

(iii) चालक के पृष्ठ के ठीक बाहर किसी विन्दु पर विद्युत् क्षेत्र पृष्ठ के लम्बवत् होता है।

(iv) चालक के अन्दर और बाहर प्रत्येक बिन्दु पर विभव नियत और समान रहता है।

(v) चालक का पृष्ठ सम विभव पृष्ठ होता है।

संयोजकता बन्ध सिद्धांत (Valence Bond Theory ,VBT )

क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय ठोसों में अन्तर 

फ्लुओरीन प्रबल ऑक्सीकारक प्रकृति का होता है। क्यों?

विद्युत् धारा का प्रवाह

फ्यूज तार किसे कहते है ?

थामसन प्रभाव किसे कहते हैं ?

घर्षण विद्युत् किसे कहते हैं

आवेश उत्पत्ति का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त

विद्युत् बल रेखाएँ –

educationallof
Author: educationallof

error: Content is protected !!