
Singhare ke fayde
Table of Contents
Singhare ke fayde – सिंघाड़ा हमारे पूरे देश में प्रसिद्ध है।
सिंघाड़े की बेल –
कच्चा पक्का आटे के रूप में भी लोग इसे खाते हैं, यह जल के अन्दर ही एक बेल से पैदा होता है, जिसे सिंघाड़े की बेल कहते हैं।
अतिसार व प्रदर पित्त फुसफुसा –
सिंघाड़ा अतिसार व प्रदर पित्त फुसफुसा रोग और दार में लाभप्रद है, इन सब रोगों के लिए सिंघाड़े का चूर्ण आधा ग्राम दूध या ताजे जल के साथ देने से रोग से मुक्ति मिलती है।
जाड़े में पैदा होने वाला सिंघाड़ा अत्यन्त ही उपयोगी फल है। इसके कंटीले और कठोर छिलके के भीतर दूधिया गिरी होती है जो खाने के काम आती है और बहुत ही स्वादिष्ट होती है।
सिंघाड़े का उत्पादन झील-जलाशयों, ताल तलैयों के जल में होता है।
जिस तालाब में सिंघाड़े पैदा होते हैं वो एक तैरते हुए खेत जैसा दिखाई देता है।
मानो पानी पर गहरा गलीचा बिछा हो।
जल की सतह में सिंघाड़े की खेती करना भी कोई आसान काम नहीं है।
सिंघाड़े की बुआई –
हर वर्ष जून-जुलाई माह में जब तालाब में बरसात का पानी इकट्ठा होने लगता है तब सिंघाड़े की बुआई शुरू हो जाती है।
किसान पानी में डुबकियां लगा-लगा कर तालाब के पेंदे में सिंघाड़े की लताओं के टुकड़े रोपते हैं।
यह कार्य बड़ा दुष्कर है।
फिर भी व्यक्ति एक दिन में आधा बीघा जल क्षेत्र में बीजारोपण कर लेता है।
धीरे-धीरे पूरे जलाशय में सिंघाड़े की लताओं का जाल बिछ जाता है।
इनकी एक खासियत यह है कि तालाब में तीन फुट पानी हो और अचानक दस फुट पानी या इससे अधिक पानी चढ़ जाये तो ये भी दूसरे ही दिन उतनी ही लम्बी बढ़कर पानी पर तैरने लगती हैं।
सिंघाड़े की खेती करने वाले काश्तकार नाव नुमा काठ के लड्डे पर सवार होकर फसल की सार-संभार और रखवाली करते हैं।
कीटनाशकों का छिड़काव –
फसल सतह पर सप्ताह में एक बार कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है।
समय-समय पर रसार्यानक खाद भी छिड़कते हैं।
दीपावली के बाद से ही सिंघाड़ों का उत्पानद आरम्भ हो जाता है।
यह क्रम लगातार जनवरी-फरवरी माह तक चलता रहता है।
एक लता पर करीब दस-पन्द्रह सिंघाड़े लगते हैं और चार बार लगते हैं।
यानी चार चरणों में एक ही लता से पचास-साठ सिंघाड़े आराम से प्राप्त किये जा सकते हैं।
सिंघाड़े तोड़ते समय लग्ढे की नाव पर व्यक्ति सवार होकर हाथों से इसे आगे धकेलता रहता है और सिंघाड़े तोड़-तोड़कर इकट्ठे करता रहता है।
कभी-कभी मिट्टी के मटकों को जोड़कर बनाई गई नाव का भी प्रयोग सिंघाड़े तोड़ते समय किया जाता हे।
सिंघाड़े तोड़ने का कार्य अक्सर महिलायें ही करती हैं।
पुरुष उनका विक्रय करते हैं।
एक महिला दिन भर में तीस-चालीस किलोग्राम सिंघाड़े तोड़ लेती है।
पौष्टिक तत्वों से भरपूर कच्चे सिंघाड़ों के भीतर से निकलने वाली दूधिया गिरी को बड़े चाव से खाया जाता है और इसकी सब्जी भी बनाते हैं।
सिंघाड़ों को उबालने से इनका छिलका नरम पड़ जाता है।
सिंघाड़ों को सुखाकर निकाली गई गिरी के आटे से विविध व्यंजन बनाये जाते हैं जिनका उपयोग व्रत-उपवास के दौरान फलाहार के रूप में किया जाता है।
सर्दी के मौसम में सिंघाड़े का सेवन अत्यन्त लाभदायक माना गया है।
पोषक तत्व –
इसमें हमारे शरीर के लिए आवश्यक विटामिन, प्रोटीन, शर्करा, वसा, लवण आदि सभी पोषक तत्व विद्यमान होते हैं।
यह शीतल, स्वादिष्ट, बल-वीर्यवर्द्धक एवं शारीरिक ऊष्णतानाशक है।
सिंघाड़े का नियमित सेवन धातु को पुष्ट बनाता हैं अतिसार और अम्लपित्त को दूर भगाता है।
कच्चे सिंघाड़े को पीसकर शरीर में लगाने से शरीर की जलन मिटती है।
गर्भधारण क्षमता –
सिंघाड़े के प्रयोग से निर्बल गर्भाशय वाली महिलाओं का गर्भाशय मजबूत होता है और गर्भधारण क्षमता बढ़ती है।
सिंघाड़े के हलवे के नियमित सेवन से स्त्रियों को श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) से मुक्ति मिल जाती है।
गर्भवती स्त्रियों के लिए इसका प्रयोग बल पुष्टिकारक होता है।
वे यदि नियमित रूप से कच्चा सिंघाड़ा या उसका हलवा खायें तो उनके चेहरे पर एक विशेष चमक आ जाती है।
गर्भिणी को रक्ताल्पता से भी मुक्ति मिलती है।
सिंघाड़े के नियमित सेवन से स्त्रियों का कमर दर्द और पैरों की शक्तिहीनता भी दूर होती है।
जिन युवक-युवतियों के शरीर पतले-दुबले हों और चेहरा मुर्झाया हुआ हो,
उन्हें नाश्ते में प्रतिदिन आठ-दस सिंघाड़े छीलकर खाने चाहिए।
महिलाओं को रक्त प्रदर में सिंघाड़े की रोटी का सेवन लाभदायक रहता है।
सूखे सिंघाड़े का दस ग्राम चूर्ण यदि दूध के साथ नियमित प्रयोग करें तो शरीर पुष्ट होता है।
जिन्हें गले के रोग, टान्सिल्स तथा खराश की शिकायत रहती हो उन्हें भी सिंघाड़े का प्रयोग करना चाहिए।
इसमें मौजूद आयोडीन उनके कष्ट को दूर करता है।
हरा सिंघाड़ा जहां शीतकाल में मिलता है वहीं सूखा सिंघाड़ा वर्ष भर आसानी से उपलब्ध रहता है।