PN संधि डायोड

PN संधि डायोड (P-N Junction Diode)

PN संधि डायोड-

यदि P-प्रकार के अर्द्धचालक को N-प्रकार के अर्द्धचालक के साथ विशेष विधि द्वारा जिसे डोपिंग कहते हैं,

जोड़ दिया जाय तो इस संयोजन को P-N सन्धि डायोड कहते हैं।

जिस सन्धि पर दो अर्द्धचालक एक-दूसरे से जुड़ते हैं उसे P-N सन्धि कहते हैं।

चित्र में P-N सन्धि डायोड प्रदर्शित किया गया है।

अवक्षय पर्त (Depletion Layer)

जब P-N डायोड बनाया जाता है तो सन्धि पर कुछ होल P-क्षेत्र से N क्षेत्र की ओर तथा कुछ इलेक्ट्रॉन N क्षेत्र से P-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं

और एक-दूसरे को समाप्त कर देते हैं।

इस प्रकार सन्धि के दोनों ओर एक पतली पर्त उत्पन्न हो जाती है जिसमें न तो होल होते हैं और न ही इलेक्ट्रॉन ।

इस पर्त को अवक्षय पत कहते हैं।

इसे बिन्दुदार रेखाओं के मध्य दिखाया गया है।

इसकी मोटाई एक माइक्रोमीटर (10-6मीटर) की कोटि की होती है।

रोधिका विभव या प्राचीर विभव (Barrier Potential)

होलों और इलेक्ट्रॉनों के विसरण के कारण P-क्षेत्र ऋणात्मक और N-क्षेत्र धनात्मक हो जाता है।

फलस्वरूप दोनों क्षेत्रों के मध्य एक विद्युत् क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

यह क्षेत्र इस प्रकार होता है मानो एक काल्पनिक बैटरी का ऋण सिरा P-क्षेत्र से तथा धन सिरा N-क्षेत्र से जुड़ा हो।

दोनों क्षेत्रों के मध्य स्थापित विद्युत् क्षेत्र के कारण उत्पन्न विभवान्तर को रोधिका विभव या प्राचीर विभव कहते हैं।

यह प्राचीर विभय P-क्षेत्र के होलों को N क्षेत्र की ओर तथा N क्षेत्र के इलेक्ट्रॉनों को P-क्षेत्र की ओर विसरित होने से रोकता है।

प्राचीर विभव का मान अर्द्धचालक की प्रकृति, ताप और अशुद्धि की मात्रा पर निर्भर करता है।

जर्मेनियम P-N सन्धि के लिए इसका मान 01 से 0-3 वोल्ट तथा सिलिकॉन P-N सन्धि के लिए 0-7 वोल्ट के क्रम का होता है।

विद्युत् परिपथ में P-N सन्धि डायोड को चित्र (b) की भाँति प्रदर्शित करते हैं।

तीर की दिशा P क्षेत्र से N क्षेत्र को प्रदर्शित करता है। P-क्षेत्र को ऐनोड (Anode) तथा N क्षेत्र को कैथोड (Cathode) कहते हैं।

(PN संधि डायोड)

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Author: educationallof

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