सीबेक प्रभाव का कारण

सीबेक प्रभाव का कारण (Origin of Seebeck Effect)

सीबेक प्रभाव का कारण –

विभिन्न धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का घनत्व भिन्न भिन्न होता है।

यह धातु के पदार्थ की प्रकृति और उसके ताप पर निर्भर करता है।

जब दो विभिन्न धातुओं को जोड़ा जाता है।

तो संधि पर मुक्त इलेक्ट्रॉन अधिक घनत्व वाली धातु से कम घनत्व वाली धातुओं की ओर विसरित होने लगते हैं।

इस विसरण के कारण संधि पर एक विभव उत्पन्न हो जाता है जिसे सम्पर्क विभव (Contact potential ) कहते हैं।

जब किसी ताप वैद्युत युग्म के दोनों संधियों का ताप समान होता है तो संधियों पर सम्पर्क विभव समान तथा विपरीत होते हैं।

सीबेक प्रभाव का कारण

अतः ताप वैद्युत युग्म में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती। जब किसी संधि को गर्म किया जाता है तो उस संधि का सम्पर्क विभव बढ़ जाता है।

फलस्वरूप दोनों संधियों के मध्य विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है , जिसे ताप वि. वाहक बल कहते हैं।

इस ताप विद्युत् वाहक बल के कारण ताप वैद्युत युग्म में धारा प्रवाहित होने लगती है।

यही सीबेक प्रभाव है।

निर्देश तंत्र किसे कहते हैं (Reference System)

दैनिक जीवन में हम अनेक प्रकार की स्थिर तथा गति अवस्थाओं का अनुभव करते हैं।

चलती हुई कार,चलता हुआ स्कूटर, उड़ती हुई चिड़िया आदि सभी गति के उदाहरण है।

इसी प्रकार, पृथ्वी पर पड़ा हुआ पत्थर साधारणतः विराम अवस्था में कहलाता है।

इसी बात को वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार कह सकते है कि कोई वस्तु जो अपने वातावरण तथा आस पास की अन्य सभी वस्तुओं के सापेक्ष स्थिर (rest)रहती है तथा समय के साथ अपनी स्थिति को नहीं बदलता है, स्थिरावस्था में कहलाता है।

तथा जब वस्तु समय के साथ अपनी स्थिति में परिवर्तन करतीं हैं, गति अवस्था में कहलाता है।

वैसे ये सभी परिभाषाएं सापेक्षिक है, क्योंकि ब्रम्हाण्ड में कोई भी वस्तु न तो निरपेक्ष विरामावस्था में हैं और न निरपेक्ष गत्यावस्था में ही हैं कोई वस्तु निरपेक्ष विरामावस्था या निरपेक्ष गत्यावस्था में तभी कहीं जाती है,

जबकि उसकी विराम या गति अवस्था एक ऐसे बिंदु के सापेक्ष देखी जाये जो आकाश में स्थिर हो।

चूंकि ब्रम्हाण्ड में प्रत्येक पिंड (पृथ्वी, तारें, सूर्य आदि) सदैव गति अवस्था में होते हैं, कोई भी बिंदु स्थिर नहीं रहता है।

अतः निरपेक्ष स्थिर या निरपेक्ष गत्यावस्था केवल कल्पना मात्र है।

पृथ्वी पर पड़ा हुआ पत्थर पृथ्वी के सापेक्ष तो स्थिर है, परन्तु क्योंकि पृथ्वी स्वयं सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहा है,

,अतः पत्थर भी पृथ्वी के साथ साथ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही हैं।

दूसरे शब्दों में,हम कह सकते है कि किसी वस्तु की गति बताने के लिए यह ज्ञात होना चाहिए कि यह गति किसके सापेक्ष नापी गयी है।

वह तंत्र जिसके सापेक्ष किसी वस्तु की स्थति अथवा गति बतायी जाती है, निर्देश तंत्र कहलाता है।

निर्देश तंत्र को किसी दृढ़ वस्तु (rigid body) से जुड़ा मानकर उसके सापेक्ष अन्य वस्तुओं की स्थिति बताई जाती है।

अतिसूक्ष्म कणों की स्थिति व संवेग मे प्रकाश का प्रभाव ( Effect of Light on Position and Momentum of Micro – particles)

किसी अतिसूक्ष्म वस्तु या कण को देखने के लिए, आपतित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य को इसके आकार से कम होना चाहिए।

यदि उच्च तरंगदैर्ध्य के प्रकाश विकिरणों का उपयोग किया जाता हैं तो वस्तु द्वारा परावर्तित प्रकाश दृश्य क्षेत्र में नहीं रहता

अतः सही स्थिति निर्धारित नहीं किया जा सकता।

यदि छोटी तरंगदैर्घ्य या उच्च आवृत्ति का प्रकाश प्रयुक्त होता है तो इलेक्ट्रॉन तो दिखाई पडेगा लेकिन उच्च आवृत्ति के फोटॉन से संवेग परिवर्तित हो जायेगा

क्योंकि टक्कर से फोटॉन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को स्थानांतरित हो जायेगी एवं उसका पथ परिवर्तित हो जायेगा।

आकाश का रंग नीला क्यो दिखाई देता है?

वायुमंडल में उपस्थित धुल के कण एक कोलाइडी विलयन का निर्माण करते हैं|

इन धूल के कोलॉइडी कणो द्वारा प्रकाश का प्रकीर्णन होने ( टिण्डल प्रभाव) के कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है |

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Author: educationallof

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