ट्रांजिस्टर का दौलित्र की भांति उपयोग

ट्रांजिस्टर का दोलित्र की भांति उपयोग (Use of Transistor as an Oscillator)

ट्रांजिस्टर का दौलित्र की भांति उपयोग –

जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उच्च आवृत्ति के स्थायी (Undamped) विद्युत् दोलन उत्पन्न करते हैं, उन्हें दोलित्र कहते हैं।

सिद्धान्त—

चित्र में एक L-C परिपथ प्रदर्शित किया गया है। जिसे टैंक परिपथ (Tank circuit) भी कहते हैं।

इसमें L कुण्डली, C संधारित्र B बैटरी तथा K व K, दाब कुंजियाँ हैं।

दाब कुंजी K को दबाने पर संधारित्र C आवेशित हो जाता है।

दाब कुंजी K, को छोड़कर K, को दबाने पर कुण्डली L में से आवेश का विसर्जन होने लगता है।

कुण्डली L अपने प्रेरकत्व के कारण इसका विरोध करती है। अतः निरावेशन की दर कम हो जाती है।

इस क्रिया में संधारित्र अपनी विद्युत् ऊर्जा को खोता जाता है जिसे कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र की ऊर्जा के रूप में प्राप्त करने लगती है।

जब संधारित्र पूर्णत: निरावेशित हो जाता है, तो सम्पूर्ण ऊर्जा कुण्डली में चुम्बकीय क्षेत्र की ऊर्जा के रूप में एकत्रित हो जाती है।

कुण्डली स्वप्रेरकत्व के कारण उसी दिशा में धारा प्रवाह को जारी रखना चाहती है अतः संधारित्र विपरीत दिशा में आवेशित होने लगता है।

इस प्रकार कुण्डली की चुम्बकीय क्षेत्र की ऊर्जा पुनः विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित होने लगती है।

जब संधारित्र पूर्णत: आवेशित हो जाता है तो इसका पुनः निरावेशन कुण्डली में से होने लगता है।

आगे इसी चक्र की पुनरावृत्ति होती रहती है।

 टैंक परिपथ

अतः टैंक परिपथ में दोलनी धारा (Oscillating current) बहने लगती है।

दोलनी धारा की आवृत्ति निम्न सूत्र से दी जाती है

 f = 1/2π√LC

जहाँ, f= आवृत्ति, L= कुण्डली का प्रेरकत्व तथा C = संधारित्र की धारिता ।

विद्युत् दोलन के प्रत्येक चक्र में विद्युत् ऊर्जा का कुछ भाग कुण्डली और संयोजी तार के प्रतिरोध के कारण ऊष्मा ऊर्जा के रूप में व्यय हो जाती है।

अतः उसका आयाम कम होने लगता है और अन्त में धारा का मान शून्य हो जाता है।

स्पष्ट है कि टैंक परिपथ में दोलन अवमन्दित (Damped) होंगे।

किन्तु यदि ऐसी व्यवस्था की जाय कि जितनी ऊर्जा ऊष्मा में व्यय होती है ठीक उतनी ही ऊर्जा टैंक परिपथ को दे दी जाय तो स्थिर आयाम की दोलनी धारा प्राप्त की जा सकती है।

एक N-P-N ट्रांजिस्टर को उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में दोलित्र के रूप में अनुप्रयोग करने का विद्युत्परिपथ चित्र  में प्रदर्शित किया गया है

L1-C1, या टैंक परिपथ को दाब कुंजी K और बैटरी Vce द्वारा संग्राहक C और उत्सर्जक E के बीच जोड़ते हैं। C, एक परिवर्ती संधारित्र होता है

जिसकी सहायता से टैंक परिपथ में परिवर्ती आवृत्ति के दोलन उत्पन्न किये जा सकते हैं।

ट्रांजिस्टर का दौलित्र की भांति उपयोग

आधार और उत्सर्जक के बीच एक कुण्डली L2 जोड़ते हैं।

कुण्डली L2 टैंक परिपथ की कुण्डली L1 से उचित रूप से युग्मित (Coupled) होती है।

व्यवहार में L1 वL3 एक ट्रान्सफॉर्मर की प्राथमिक व द्वितीयक कुण्डलियाँ होती हैं।

L3 एक अन्य कुण्डली होती है जिसके सिरों के मध्य निर्गत दोलन प्राप्त किये जा सकते हैं।

कार्य-विधि-

दाब कुंजी K को दबाते ही संग्राहक उत्सर्जक परिपथ में संग्राहक धारा बहने लगती है।

जिससे संधारित्र C आवेशित होने लगता है।

जब संधारित्र , पूर्णतः आवेशित हो जाता है तो कुण्डली L में उसका निरावेशन होने लगता है।

फलस्वरूप टैंक परिपथ में विद्युत् दोलन प्रारम्भ हो जाते हैं।

आधार-उत्सर्जक की कुण्डली L, टैंक परिपथ की कुण्डली L से युग्मित रहती है।

अतः प्रेरण क्रिया से कुण्डली L2 में प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न हो जाता है।

कुण्डली L2 के सिरों के बीच उत्पन्न वोल्टेज को आधार और उत्सर्जक के बीच लगाया जाता है जो कि संग्राहक उत्सर्जक परिपथ में आवर्धित रूप में प्रकट होता है।

L1 और L2 उचित रूप से युग्मित रहते हैं जिससे टैंक परिपथ को प्राप्त ऊर्जा इस परिपथ में हो रहे विद्युत् दोलनों की कला में हो।

इस प्रकार टैंक परिपथ में हुए ह्रास की पूर्ति हो जाती है।

अत: इस परिपथ में स्थिर आयाम के विद्युत् दोलन होने लगते हैं।

इन दोलनों को कुण्डली L3 के सिरों के मध्य प्राप्त किया जा सकता है।

दोलित्र परिपथ में व्यय हुई ऊर्जा की पूर्ति d. c बैटरी Vce द्वारा की जाती है।

नोट:-

ट्रान्सफॉर्मर की प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियों के सिरों के बीच वोल्टेज में 180° का कलान्तर होता है।

चूँकि L1, व L2 व्यवहार में एक ट्रान्सफॉर्मर की प्राथमिक व द्वितीयक कुण्डलियाँ होती हैं,

L1, व.L2, के सिरों के बीच वोल्टेज में 180° का कलान्तर होता है।

पुन: N-P-N ट्रान्जिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में निवेशी और निर्गत वोल्टेज के मध्य 180° का कलान्तर होता है।

फलस्वरूप टैंक परिपथ में हो रहे विद्युत् दोलन और पुनर्भरण (Feed back) ऊर्जा के मध्य 180° + 180° = 360° का कलान्तर होता है।

अतः विद्युत् दोलन और पुनर्भरण ऊर्जा दोनों समान कला में होते हैं।

दोलित्र के उपयोग–

रेडियो संचार में वाहक तरंगें (Carrier waves) उत्पन्न करने में ट्रान्जिस्टर दोलित्र का उपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त रेडियो, टेलीविजन, राडार, कम्प्यूटर तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भी इसका उपयोग व्यापक रूप से निश्चित आवृत्ति के दोलन प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

(ट्रांजिस्टर का दौलित्र की भांति उपयोग)

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Author: educationallof

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