
Harad ke fayde
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Harad ke fayde –
हरड़ को संस्कृत में हरीतकी, अभया, पूतना, अमृता, हेमवती, चेतकी, शिबा, विजया, शुक्र, सृष्ठा, सिद्धा, प्राणदा आदि कहते हैं। हिन्दी
में हरड़, पंजाबी में हरीड़, बंगला में हरीतकी, तमिल में कुड़काए, तेलगू में करकाए कहते हैं।
हरड़ का पेड़ भारत के प्रत्येक भाग में पाया जाना है।
असली हरड़ की आकृति बिल्कुल साधारण होती है और इसकी नोंक की ओर कोई सूराख नहीं होता और न ही निशान होता है।
असली हरड़ को पानी में भिगोने से रंग नहीं उतरना चाहिए और न ही रगड़ने पर टूटनी चाहिए।
हरड़ आंतरिक शक्ति बढ़ाती है और रोगों का सामना करने की शक्ति प्रदान करती है।
इसमें नमक को छोड़कर अन्य पांच रस होते हैं, इसलिए यह पाचक और दीर्घायु करती है।
हरड़ के चमत्कारी गुणों के कारण ही आयुर्वेद में माता के समान ।
हितकारी कहा है। कहा जाता है कि जिसकी मां न हो उसकी माता हरड़ है। यह रक्त का शोधन करती है।
हरड़ की सात जातियां हैं-
1. विजया-यह लम्बी अर्धवृत्ताकार सर्वरोग नाशक होती है, यह विन्धवाचल में उत्पन्न होती है।
2. रोहिणी-यह गोल आकार की व्रण भरने के काम आती है, यह झांसी में मिलती है।
3. पूतना-सूक्ष्म तथा अस्थिमय होती है। यह प्रलेप में उपयोगी होती है तथा सिंघ में पाई जाती है।
4. अमृता मांसल आकार की शोधन के काम में आती है तथा मध्य प्रदेश में पैदा होती है।
5. अभया-पंयरेखायुक्त नेत्र रोगों में उपयोगी होती है और चंपारण जिले के आस-पास होती है।
6. जीवन्ती-स्वर्णवर्ण की सर्वरोग नाशक सौराष्ट्र में उत्पन्न होती है।
7. चेतकी यह हिमालय क्षेत्रों में पायी जाती है।
हरड़ के कई उपयोग हैं। हर ऋतु के अनुसर इसका इस्तेमाल होना चाहिए।
जैसे वर्षा में सैंधा नमक के साथ, शरद में शर्करा के साथ, हेमन्त में शुठी के साथ, शिशि में पिप्पली के साथ,
वसन्त में मधु के साथ तथा ग्रीष्म में गुड़ के साथ प्रयोग करना चाहिए।
अधिक पित्त युक्त रोगों एवं गर्भवती स्त्री पर हरड़ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
हरड़ की तीन प्रकार हैं-
छोटी हरड़, पीली हरड़, बड़ी हरड़। तीनों ही
एक वृक्ष के फल हैं। जो अवस्था भेद से भिन्न हो जाते हैं।
हरीतकी वृक्ष के फल गुठली होने से पूर्ण गिर जाते हैं या तोड़कर सुखा लिये जाते हैं। उन्हें छोटी हरें कहते हैं।
गुठली होने के बाद प्रौढ़ावस्था में जो अपरिपक्व फल गिर जाते हैं वे पीली हरें कहलाती हैं,
जिनका प्रयोग रंगाई के काम आता है।
हरड़ का चूर्ण परिपक्व फल बड़ी हर्रे कहलाता है जो मुरब्बे के काम आता है। यह गुठली वाला होता है।
रक्ताल्पता, मोतीझरा, बवासीर, संग्रहणी, जीर्ण, मलेरिया, ज्वर, हृदय रोग, खांसी, अफारा, तिल्ली के रोग, दमा, वमन
तथा फेंफड़ों में कफ भर जाने जैसे रोगों में उपयोगी होता है।
नेत्र रोगों में हरड़ को भूनकर खूब बारीक पीस कर लेप बनाकर आंखों के चारों ओर लगाने से हर प्रकार का नेत्र रोग ठीक हो जाता है।
गले के रोगों में हरड़ के साथ क्वाथ में शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।
खांसी एवं दमा में हरड़ एवं हल्दी के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलायें एवं थोड़े गर्म पानी के साथ आधा ग्राम लेने से खांसी एवं दमा को लाभमिलता है।
जिन्हें अपचन रहता है वे हरड़ के चूर्ण को सोंठ के साथ खाना खाने से पूर्व खायें तो क्षुधा बढ़ती है।
सौंठ, गुड़ या सैंधा नमक के साथ खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
वमन में हरड़ का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटना चाहिए।
हिचकी में हरड़ के चूर्ण व अंजीर के चूर्ण को एक या दो माशे गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
हरड़ मुरब्बा को दो या तीन की मात्रा में लेने से सुबह मल त्याग आसानी से हो जाता है।
औषधीय उपयोग के अतिरिक्त हरड़ चमड़ा रंगने के काम आती है।
भारत में काफी मात्रा में हरड़ का निर्यात भी किया जाता है।
हरड़ के बारे में अधिक जानें –
सत्य तो यह है कि इस हरड़ के कई नाम हैं, जितने इसके नाम हैं उससे अधिक गुण भी हैं,
हरड़ उत्तर भारत में अधिक मिलते हैं,
परन्तु दुःख इस बात का है कि इसकी आयु बहुत कम होती है,
इससे दो प्रकार के फल प्राप्त होते हैं,
एक तो कच्चे फल जो गिरकर सूख जाते हैं उन्हें छोटी हरड़ कहा जाता है,
जो फल पककर गिरते हैं उन्हें बड़ी हरड़ कहा जाता है।
- जो लोग पुरानी कब्ज के रोगी हैं, उनके लिए हरड़ को पीसकर खाना अर्थात् हरड़ का चूर्ण बनाकर सुबह एक चम्मच, पानी के साथ लेने से पेट साफ रहता है।
- यदि हरड़ को भून कर खाया जाए तो निर्दोष भोजन के साथ खाने से शक्ति देती है तथा बुद्धि तेज होती है।
- मूत्र रोगों में हरड़ का चूर्ण लाभदायक है।
- खाना खाने के पश्चात् यदि एक चम्मच हरड़ का चूर्ण लिया जाए तो पेट रोग ठीक हो जाते हैं। खांसी बलगमी हो या सूखी दूर हो जाती है।
- “सैधव लवण के साथ खाने से पुरानी से पुरानी खांसी दूर हो जाती है।”
- घी के साथ मिलाकर खाने से गैस सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।
- गुड़ के साथ सेवन करने से, गैस रोग भागते नजर आते हैं।
- हरड़ के निरन्तर सेवन करने से बुखार, बवासीर, ब्लड प्रैशर, अर्श नेत्र रोग, शुगर आदि अनेक रोगों में लाभ होता है।
जैसा कि पहले भी बताया है कि हरड़ का चूर्ण बहुत लाभकारी है।
इस चूर्ण का सेवन अलग-अलग रोगों में अलग-अलग तरीकों से किया जाता हैं
जैसे कि वर्षा के मौसम में शक्कर के साथ, हेमन्त ऋतु में सौंठ के साथ, शिशिर ऋतु में पिपली चूर्ण के साथ, बसन्त ऋतु में शहद के साथ।
हरड़ का प्रयोग इन लोगों के लिए वर्जित है-
मेहनत-मजदूरी करके थके प्राणी को, व्रत रखे हुए मानव को, गर्भवती नारी को।
दांत रोगों में हरड़ का मंजन करने से दांतों के रोग दूर हो जाते हैं।
त्रिफला चूर्ण, सौ रोगी एक इलाज हरड़, बहेड़ा, आंवला, इन तीनों को कूट-पीसकर छान लें।
फिर इसमें काला नमक पीसकर मिला लें। यही त्रिफला चूर्ण तैयार है।
इसके प्रयोग से पीलिया जैसे भयंकर रोग भी ठीक हो जाते हैं, पेट रोगी के लिए त्रिफला चूर्ण का निरन्तर प्रयोग करते हैं, उन्हें कभी कभी रोग तंग नहीं करता,
त्रिफला घर से रोग भगाने में बहुत ही उपयोगी दवा है।
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