विपथन Aberration
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विपथन Aberration –
लेंस के वस्तु तथा प्रतिबिम्ब से दूरी , उसकी फोकस दूरी , वक्रपृष्ठों की वक्रता , अपवर्तनांक आदि राशियों से विभिन्न सूत्रों को व्युत्पन्न करते समय यह मान लिया जाता है कि
1. समस्त आपतित किरणें मुख्य अक्ष के साथ सूक्ष्म कोण बनाती हैं।
2. लेंस की द्वारक बहुत कम होता है।
परन्तु व्यवहार में लेंस कआ द्वारक (जिस भाग से प्रकाश प्रवेश करती हैं ) बहुत बड़ा होता है
तथा वस्तु की स्थिति केवल अक्ष पर ही नहीं होती , बल्कि बड़े आकार के कारण उनका प्रतिबिम्ब लेंसों के लगभग पूरे भाग से बनती है।
लेंस की वक्रता एकसमान नही होने के कारण नाम्यान्तर भी समस्त लेंस के लिए एक न होकर एक से अधिक होती है
अतः प्रतिबिम्ब दोष युक्त होता है।
ऐसी प्रकार लेंस का नाम्यान्तरआपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करती है।
अतः यदि प्रकाश एकवर्णी न हो तो अलग अलग आवृत्ति के संगत प्रतिबिंब अलग अलग स्थानों पर बनती हैं , जिससे प्रतिबिम्ब दोष युक्त हो जाता है।
किसी वास्तविक प्रतिबिम्बों में उतपन्न दोषो को ही विपथन कहते हैं।
विपथन के प्रकार
विपथन दो प्रकार के होते हैं –
1. वर्ण विपथन ,
2 . एकवर्णी विपथन।
वर्ण विपथन (Chromatic Aberration)
किसी अकेले लेंस द्वारा श्वेत प्रकाश से प्रकाशित सदैव रंगीन बनता है।
इस दोष को वर्ण विपथन कहते हैं।
किसी लेंस की फोकस दूरी f निम्न सूत्र द्वारा दी जाती है।
-1/f = (μ – 1)(1/R₁ – 1/R₂)
लेंस के पदार्थ का अपवर्तनांक μ भिन्न भिन्न रंगों के लिए भिन्न भिन्न होता है।
अतः किसी लेंस की फोकस दूरी भिन्न भिन्न रंगों के लिए भिन्न भिन्न होती है।
बैंगनी रंग के लिए μ का मान सर्वाधिक एवं लाल रंग के लिए न्यूनतम होता है।
अतः बैंगनी रंग के लिए किसी लेंस की फोकस दूरी न्यूनतम एवं लाल रंग के लिए सर्वाधिक होती है।
जब श्वेत प्रकाश किरणें मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती हैं तो लेंस से अपवर्तन के बाद बैंगनी रंग की किरणें सबसे नजदीक और लाल रंग किरणें सबसे दूर फोकस होती हैं।
अन्य की किरणें इन दोनों के मध्य फोकस होती हैं।
अतः वस्तु का प्रतिबिम्ब रंगीन बनता है।वर्ण विपथन दो प्रकार के होते हैं –
1. अक्षीय या अनुदैर्ध्य वर्ण विपथन (Axial or longitudinal Chromatic Aberration )
भिन्न भिन्न रंग के प्रतिबिम्बों का भिन्न भिन्न स्थितियों में बनना अक्षीय या अनुदैर्ध्य वर्ण विपथन कहलाता है।
इसकी माप लेंस की लाल रंग के लिए फोकस दूरी और बैंगनी रंग के लिए फोकस दूरी के अंतर से हो जाती है।
यदि लाल और बैंगनी रंग के लिए किसी लेंस की फोकस दूरियाँ क्रमशः fr और fv हो तो ,
अक्षीय वर्ण विपथन
= fr – fv
मानलो बैंगनी , लाल और पीले रंग की किरणों के लेंस की फोकस दूरियाँ क्रमशः fv , fr और fy तथा लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक क्रमशः μv , μr और μy हैं।
यदि लेंस की वक्रता त्रिज्यायें R₁ और R₂ हों , तो
1/fv = (μv – 1)(1/R₁ – 1/R₂) ….. (1)
1/fr = (μr – 1)(1/R₁ – 1/R₂) ……(2)
1/fy = (μy – 1)(1/R₁ – 1/R₂) …… (3)
समीकरण (1) और (2) से ,
1/fv – 1/ fr = (μv – μy)(1/R₁ – 1/R₂)
1/fv – 1/ fr = [(μv – μy)/(μy – 1)](μy – 1) (1/R₁ – 1/R₂)
समीकरण (3) मे मान रखने पर ,
1/fv – 1/ fr = [(μv – μy)/(μy – 1)] 1/fy
किन्तु (μv – μy)/(μy – 1) = ω = वर्ण विक्षेपण क्षमता
1/fv – 1/ fr = ω /fy
fr – fv / fvfr = ω /fy
fv , fr और fy के मानों में बहुत कम अंतर होता है , अतः fv , fr को लगभग fy² के तुल्य लिखा जा सकता है।
fr – fv / fy² = ω /fy
fr – fv = ω fy …… (4)
यही अक्षीय वर्ण विपथन के लिए व्यंजन है।
समीकरण (4) से निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –
1. चूँकि ω और fy का मान शून्य नहीं हो सकता , fr – fv का मान कभी भी शून्य नहीं हो सकता।
अतः एक अकेले लेंस के लिए अक्षीय वर्ण विपथन का मान कभी शून्य नहीं हो सकता।
2. fy का मान जितना कम होगा , fr – fv का मान उतना ही कम होगा
अर्थात् लेंस की फोकस दूरी कम होने पर ( अर्थात् क्षमता अधिक होने पर ) अक्षीय वर्ण विपथन का मान कम होता है।
2. पार्श्विक वर्ण विपथन (Lateral Chromatic Aberration)
भिन्न भिन्न रंगों का साइज भिन्न भिन्न होना पार्श्विक वर्ण विपथन कहलाता है।
इसकी माप लाल रंग और बैंगनी रंग के प्रतिबिम्बों की लम्बाईयो के अंतर से की जाती है।
अतः पार्श्विक वर्ण विपथन ArBr – AvBv = Ir -Iv
सिद्ध किया जा सकता है कि ,
पार्श्विक वर्ण विपथन Ir – Iv = ωv² / fy .O /u
जहाँ u लेंस से वस्तु की दूरी , v लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी तथा O वस्तु की लम्बाई है।
एकवर्णी विपथन (Monochromatic Aberration)
जब किसी लेंस द्वारा एकवर्णी प्रकाश में किसी वस्तु के बने प्रतिबिम्ब में दोष होता हैं , तो इस प्रकार के विपथन को एकवर्णी विपथन कहते हैं।
एकवर्णी विपथन निम्न हैं –
(a) . कॉमा (Coma)
इस प्रकार का दोष होने पर मुख्य अक्ष से दूर हटी किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब तीव्र नहीं बनता , बल्कि पुच्छल तारे (Comet) की आकृति का बनता है।
इस दोष के निवारण के लिए अविपथी लेंस (Aplanatic lens) प्रयुक्त करते हैं।
(b). अबिन्दुकता (Astigmatism)
इस प्रकार का दोष होने पर क्षैतिज और उर्ध्वाधर रेखाएं भिन्न भिन्न तलों पर फोकस होती हैं।
इस दोष के निवारण के लिए बेलनाकार दर्पण या लेंस प्रयुक्त करते हैं।
(c). विरूपण (Distortion)
इस प्रकार का दोष होने पर प्रतिबिम्ब के विभिन्न बिन्दुओं का आवर्धन भिन्न भिन्न होता है।
यदि वस्तु पतली हो तो यह दोष काफी कम हो जाता है।
(d). गोलीय विपथन (Spherical Aberration)
इस प्रकार का दोष होने पर अक्ष के नजदीक की किरणें , जिन्हें उपाक्षीय किरणें (Paraxial rays) कहते हैं ,
का विचलन कम और मुख्य अक्ष से दूर की किरणें , जिन्हें सीमांत किरणें (Marginal rays) कहते हैं ,
का विचलन अधिक होता है , जिससे मुख्य अक्ष पर स्थित किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब तीव्र तथा स्पष्ट नहीं बन पाता है।
इस प्रकार लेंस का वह दोष जिसके कारण लेंस के किनारे और मध्य भाग से आने वाली किरणें एक बिन्दु पर फोकस नहीं होती ,
फलस्वरूप मुख्य अक्ष पर स्थित बिन्दु वस्तु का प्रतिबिम्ब तीव्र और स्पष्ट नहीं बनता है , गोलीय विपथन कहलाता है।
गोलीय विपथन का कारण –
लेंस की आकृति गोलीय होने के कारण उसके भिन्न भिन्न भागों की फोकस दूरियां भिन्न भिन्न होती हैं।
केंद्रीय भाग की फोकस दूरी अधिक तथा किनारे के भाग की फोकस दूरी कम होती है।
अतः उपाक्षीय किरणें अधिक दूरी पर तथा सीमांत किरणें कम दूरी पर फोकस होती है।
गोलीय विपथन के प्रकार –
गोलीय विपथन दो प्रकार के होते हैं –
(1). अनुदैर्ध्य या अक्षीय गोलीय विपथन और
(2). पार्श्विक गोलीय विपथन।
(1). अनुदैर्ध्य या अक्षीय गोलीय विपथन (Longitudinal or Axial Spherical Aberration)
लेंस के मुख्य अक्ष के अनुदिश होने वाले गोलीय विपथन को अनुदैर्ध्य या अक्षीय गोलीय विपथन कहते हैं।
अनुदैर्ध्य या अक्षीय गोलीय विपथन की माप Fp और Fm के बीच की दूरी से की जाती है।
(2). पार्श्विक गोलीय विपथन (Lateral Spherical Aberration)
लेंस के मुख्य अक्ष के लम्बवत् होने वाले गोलीय विपथन को पार्श्विक या अनुदैर्ध्य (Transverse) गोलीय विपथन कहते हैं।
यदि Fm और Fp के बीच अक्ष के लम्बवत् एक पर्दा रख दें तो पर्दे पर वस्तु O का वृत्ताकार प्रतिबिम्ब बनेगा।
इस वृत्त की त्रिज्या उस स्थान पर अल्पतम होगी जहाँ पर सीमांत किरणें और उपाक्षीय किरणें एक दूसरे को काटती हैं।
इस वृत्त को अल्पतम अस्पष्टता का वृत्त (Circle of least confusion) कहते हैं।
वृत्त की त्रिज्या से ही पार्श्विक गोलीय विपथन की माप की जाती है।
गोलीय विपथन लेंसों की गोलीय प्रवृत्ति के कारण होता है।
अतः इस विपथन को पूर्णतः दूर नहीं किया जा सकता किन्तु कम किया जा सकता है।
गोलीय विपथन को कम करने के उपाय –
गोलीय विपथन को कम करने के निम्न उपाय है –
1. रोक लगाकर –
यदि लेंस के सामने द्वारक या रोक लगाकर उपाक्षीय अथवा सीमांत किरणों को काट दिया जाये
तो शेष किरणें एक बिन्दु पर फोकस हो जायेंगी , जिससे प्रतिबिम्ब स्पष्ट बनेगा।
2. अधिक फोकस दूरी वाले लेंस का उपयोग करके –
यह पाया गया है कि गोलीय विपथन लेंस की फोकस दूरी के घन के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अतः अधिक फोकस दूरी के लेंस का उपयोग करने से गोलीय विपथन का मान कम हो जाता है।
3. क्रॉसित लेंस का उपयोग करके –
गोलीय विपथन को कम करने के लिए प्रयुक्त लेंस की वक्रता त्रिज्याओं R₁ , R₂ और लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक μ में निम्न सम्बन्ध होना चाहिए।
R₁/R₂ = 2μ² – μ – 4 / μ(1+2μ)
ऐसे लेंस को क्रॉसित लेंस कहते हैं।
यदि μ = 1.6 हो तो R₁/R₂ = -1/6 तथा यदि μ = 1.66 हो तो R₁/R₂ = -1/65
ऋण चिन्ह इस बात का द्योतक है कि R₁ और R₂ के चिन्ह विपरीत हों
अर्थात् प्रयुक्त लेंस को उभयोत्तल लेंस या उभयावतल लेंस होना चाहिए।
क्रॉसित लेंस का उपयोग करते समय यह ध्यान रखा जाता है
कि लेंस का कम वक्रता त्रिज्या वाला पृष्ठ आपतित किरण अथवा निर्गत किरण के उस ओर हों ,
जो मुख्य अक्ष से छोटा कोण बनाती है , अर्थात् मुख्य अक्ष के अधिक समान्तर हो।
4. समतल उत्तल लेंस का उपयोग करके –
यह पाया गया है कि फ्लिंट काँच के बने समतल उत्तल लेंस द्वारा उत्पन्न गोलीय विपथन का मान लगभग वही होता है ,
जो क्रॉसित लेंस द्वारा उत्पन्न गोलीय विपथन का मान होता है।
किन्तु समतल उत्तल लेंस क्रॉसित लेंस की तुलना में सस्ता होता है।
5.कुछ दूरी पर रखे दो समतल उत्तल लेंसों के उपयोग से –
दो समतल उत्तल लेंसों का उपयोग करने से कुल विचलन चार पृष्ठों में बँट जाता है ,
जिससे गोलीय विपथन का मान और कम हो जाता है।
इसके लिए शर्त यह है कि एक लेंस की फोकस दूरी अधिक हो तथा उनके बीच की दूरी d उनकी फोकस दूरियों f₁ और f₂ के अन्तर के बराबर हो अर्थात्
d = f₁ – f₂
Read more……
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