पायसों के अनुप्रयोग

पायसों के अनुप्रयोग (Applications of Emulsion)

पायसों के अनुप्रयोग –

कुछ उपयोग निम्नानुसार है –

1. साबुन तथा अपमार्जकों की कार्य विधि को पायसीकरण के आधार पर समझाया जा सकता है।

2 . कई दवाईयाँ पायस के रूप में रहती है। उदाहरणार्थ – कॉड-लीवर ऑयल।

3. संक्रमणहारी (Disinfectants) जैसे – फिनाइल , डेटॉल और लाइसॉल जल में मिलाने पर जल में तेल के समान पायस बनाते हैं।

4. वसा का आँतों द्वारा पाचन पायसीकरण के कारण सरलता से होता है।

5. धातु अयस्कों के सान्द्रण की झाग उत्प्लावन विधि (Froth floatation method) जिसमें पिसे हुए अयस्क को तेल के साथ उपचारित किया जाता है , यह भी पायसीकरण के सिद्धांत पर आधारित है।

6. दूध जो कि हमारे भोजन का महत्वपूर्ण घटक है , वास्तव में जल में वसा (Fat) का पायस (o/w) हैं।

द्विक लवण और संकुल यौगिकों में अन्तर :-

द्विक लवण :-

1. द्विक लवणों में सामान्यतया दो सरल लवण समान आणविक अनुपात में होते हैं।

2. केवल क्रिस्टल अवस्था में पाये जाते हैं।

3. ये आयनिक यौगिक होते हैं।

4. जलीय विलयन में ये हमेशा मूल आयनों में वियोजित एक हो जाते हैं।

5. द्विक लवणों के गुण , मूल यौगिकों के ही समान होते हैं।

6. द्विक लवण में धातु आयन की सामान्य संयोजकता होती है।

7. उदाहरण :- K₂SO₄ , Al₂(SO₄)₃ .24H₂O.

संकुल यौगिक या उप-सहसंयोजी यौगिक :-

1. सरल लवण जिनसे संकुल यौगिक बनते हैं , समान आणविक अनुपात में हो भी सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं।

2. क्रिस्टल एवं विलयन अवस्था दोनों में पाये जाते हैं।

3. ये आयनिक हो भी सकते हैं या नहीं भी। जटिल भाग में सदैव उप-सहसंयोजी बन्ध पाया जाता है।

4. यदि संकुल यौगिक विलयन में वियोजित होते हैं तो जटिल आयन प्राप्त होता है जो कि मूल आयनों या मातृआयनों से बिल्कुल अलग होते हैं।

5. जटिल यौगिकों के गुण , मूल सरल यौगिकों से काफी भिन्न होते हैं।

6. संकुल में धातु आयन की सामान्य संयोजकता के साथ साथ विशिष्ट समन्वयन संख्या भी होती है।

7. उदाहरण :- K₄[Fe(CN)₆] , [Ni(CO)₄] .

सीस कक्ष विधि और सम्पर्क विधि की तुलना :-

सीस कक्ष विधि :-

1. इस विधि से तनु अम्ल प्राप्त होता है जिसे सान्द्र करना पड़ता है।

2. इस विधि से प्राप्त अम्ल अशुद्ध होता है।

3. गैसीय उत्प्रेरक NO₂ का प्रवाह नियमित रखना पड़ता है।

4. इस विधि से संयंत्र के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है।

5. इस संयंत्र को लगाने की कीमत कम किन्तु चलाने की कीमत अधिक है।

सम्पर्क विधि :-

1. इस विधि से सान्द्र अम्ल प्राप्त होता है।

2. इस विधि से प्राप्त अम्ल शुध्द होता है।

3. उत्प्रेरक प्लैटिनीकृत ऐस्बेस्टॉस या V₂O₅ ठोस होते हैं।

4. इस विधि के संयंत्र के लिए कम स्थान की आवश्यकता पड़ती हैं।

5. इस संयंत्र को लगाने का खर्च अधिक पर चलाने की कीमत कम है।

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