दूरदर्शी Telescope किसे कहते हैं ?

दूरदर्शी Telescope

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दूरदर्शी Telescope –

यह एक प्रकाशिक यंत्र होता है , जिसकी सहायता से दूर की वस्तुओं को देखकर उनका अध्ययन किया जाता है।

दूरदर्शी के प्रकार –

दूरदर्शी दो प्रकार के होते हैं –

1. परावर्तक दूरदर्शी (Reflecting Telescope)

2. अपवर्तक दूरदर्शी (Refracting Telescope)

परावर्तक दूरदर्शी में अभिदृश्यक के रूप में दर्पण का उपयोग किया जाता है।

अपवर्तक दूरदर्शी में अभिदृश्यक के रूप में लेंस प्रयुक्त किया जाता है।

अपवर्तक दूरदर्शी दो प्रकार के होते हैं –

1. खगोलीय दूरदर्शी (Astronomical Telescope) –

इसकी सहायता से आकाशीय पिण्डों को देखा जाता है। इसमें वस्तु का अंतिम प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है।

2. पार्थिव दूरदर्शी (Terrestrial Telescope) –

इसकी सहायता से पृथ्वी पर स्थित दूर की वस्तुओं को देखा जाता है। इसमें वस्तु का अंतिम प्रतिबिम्ब सीधा बनता है।

दूरदर्शी का सिध्दांत –

दूर स्थित वस्तु द्वारा नेत्र पर निर्मित दर्शन कोण का मान कम होता है।

किन्तु यदि उपयुक्त लेंसों का उपयोग करके उस वस्तु का प्रतिबिम्ब नेत्र के समीप बना ले तो प्रतिबिम्ब के द्वारा निर्मित दर्शन कोण का मान अधिक होगा।

अतः वही वस्तु अब बड़ी दिखाई देने लगेगी।

दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता –

अंतिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण और वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण के अनुपात को दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता कहते हैं।

सूत्र रूप में ,

आवर्धन क्षमता = अंतिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण / वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण

अंतिम प्रतिबिम्ब कहाँ पर बन रहा है , इस दृष्टि से दूरदर्शी का उपयोग दो प्रकार से किया जाता है –

1. जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने और

2. जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने (सामान्य समायोजन)।

दोनों स्थितियों में आवर्धन क्षमता भिन्न भिन्न होती है।

पार्थिव दूरदर्शी (Galilean Telescope)

यह भी एक पार्थिव दूरदर्शी है जिसका निर्माण सर्वप्रथम इटली के वैज्ञानिक गैलिलियो ने सन् 1610 में किया था।

इस दूरदर्शी में नेत्रिका के लिए एक अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है।

इस दूरदर्शी की लम्बाई ऊपर वर्णित दूरदर्शी की लम्बाई से कम होती है।

बनावट –

इसमें दो समाक्ष बेलनाकार नलियाँ होती है। लम्बी नली के एक सिरे पर एक उत्तल लेंस लगा होता है।

इसे अभिदृश्यक कहते हैं।

छोटी नली के दूसरे सिरे पर एक अवतल लेंस E लगा होता है। यह नेत्रिका का कार्य करता है।

छोटी नली को रैक पिनियन व्यवस्था से लम्बी नली के अन्दर चलाया जा सकता है।

इस प्रकार अभिदृश्यक और नेत्रिका के बीच की दूरी बदली जा सकती है।

गैलिलियो दूरदर्शी का किरण पथ

इसमें भी अंतिम प्रतिबिम्ब को स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर अथवा अनन्त पर बनाया जा सकता है।

दोनों लेंसों के बीच की दूरी लगभग उनकी फोकस दूरियों के अन्दर के बराबर होती है।

अभिदृश्यक की फोकस दूरी अधिक एवं नेत्रिका की फोकस दूरी कम होती है।

प्रतिबिम्ब का बनना –

दूर स्थित वस्तु से आने वाली समान्तर किरणें अभिदृश्यक O के फोकस तल पर मिलती हैं।

इस प्रकार नेत्रिका (अवतल लेंस) E की अनुपस्थिति में वस्तु का वास्तविक , उल्टा व छोटा प्रतिबिम्ब A’B’ उसके फोकस तल पर बनता है।

A’B’ नेत्रिका की उपस्थिति में नेत्रिका के लिए वस्तु का कार्य करता है।

यदि नेत्रिका और A’B’ की दूरी नेत्रिका की फोकस दूरी से अधिक हो , तो अंतिम प्रतिबिम्ब PQ नेत्रिकाE के दूसरी ओर स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है।

यदि प्रतिबिम्ब A’B’ नेत्रिका (अवतल लेंस) E के फोकस पर बनता है , तो अंतिम प्रतिबिम्ब नेत्रिका E के दूसरी ओर अनन्त पर बनेगा।

इस स्थिति में दोनों लेंसों के बीच की दूरी अर्थात् दूरदर्शी की लम्बाई उनकी फोकस दूरियों के अन्तर के बराबर होती है।

यदि अभिदृश्यक की फोकस दूरी fo हो , तो दूरदर्शी की लम्बाई fo -fe होगी।

अभिदृश्यक द्वारा बना प्रतिबिम्ब A’B’ दूरदर्शी की नली के बाहर बनता है।

अतः इस दूरदर्शी में क्रॉस तार नहीं लगाये जा सकते।

अतः इस दूरदर्शी की सहायता से मापन कार्य नहीं किये जा सकते।

आवर्धन क्षमता –

अंतिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण और वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण के अनुपात को दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता कहते हैं।

गैलिलियो दूरदर्शी का किरण पथ

चूँकि वस्तु अनन्त पर है , अतः वस्तु द्वारा अभिदृश्यक पर बनाये गये कोण को वस्तु के द्वारा आँख पर बनाये गये कोण या दर्शन कोण के बराबर माना जा सकता है।

आवर्धन क्षमता = अंतिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण / वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण

m = β/α

चूँकि α और β के मान बहुत कम होते हैं ,

अतःα = tan α तथा β = tan β ले सकते हैं।

m = tan β / tan α …..(1)

चित्र 1 और 2 से ,

tan β = A’B’/ EB’

तथा

tan α = A’B’/OB’

समीकरण (1) में मान रखने पर ,

m = (A’B’/EB”‘) / ( A’B’/OB’)

m = OB’/EB’. ……(2)

परन्तु

OB’ = fo = अभिदृश्यक की फोकस दूरी

EB’ = -ue = नेत्रिका से प्रतिबिम्ब A’B’ की दूरी।

समीकरण (2) में मान रखने पर ,

m = fo/ ue ……..(3)

स्थिति I. जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने –

मानलो नेत्रिका की फोकस दूरी fe है। तब नेत्रिका के लिए ,
u = -ue , v = -D तथा f= -fe

अतः लेंस के सामान्य सूत्र

1/f = 1/v – 1/ u से ,

या 1/-fe = 1/-D – 1/ ue

1/ ue = 1/fe – 1/D

समीकरण (3) में मान रखने पर ,

m = fo ( 1/fe – 1/D)

m = fo/fe (1-fe/D) …..(4)

इस स्थिति में दूरदर्शी की नली की लम्बाई = fo – ue.

स्थिति II. जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने –

इस स्थिति में ue = fe

समीकरण (3) में मान रखने पर ,

m = fo/de ….(5)

अधिक आवर्धन क्षमता के लिए शर्तें –

समीकरण (4) और (5) से स्पष्ट है कि दूरदर्शी की अधिक आवर्धन क्षमता के लिए –

१. fo का मान अधिक होना चाहिए अर्थात् अभिदृश्यक की फोकस दूरी अधिक होनी चाहिए।

२. fe का मान कम होना चाहिए अर्थात् नेत्रिका की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।

नोट –

1. गैलिलियो दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता धनात्मक होती है , अतः अंतिम प्रतिबिम्ब वस्तु के सापेक्ष सीधा बनता है।

2. गैलीलियो दूरदर्शी का उपयोग पार्थिव दूरदर्शी के रूप में किया जाता है।

दूरदर्शी की विभेदन क्षमता –

दो दूरस्थ वस्तुओं के , जो दूरदर्शी की सहायता से अलग अलग देखे जा सकते हैं , न्यूनतम कोणीय हटाव (Smallest Angular Separation) के व्युत्पन्न को दूरदर्शी की विभेदन क्षमता कहते हैं।

ऐयरी (Airy) के अनुसार , दूरदर्शी द्वारा विभेदन की जा सकने वाली दूरस्थ वस्तुओं के बीच का न्यूनतम कोणीय हटाव dθ निम्न समीकरण द्वारा दिया जाता है :

dθ = 1.22 λ / d …..(1)

जहाँ λ = प्रकाश का तरंगदैर्घ्य तथा d = अभिदृश्यक का व्यास

समीकरण (1) दूरदर्शी की विभेदन सीमा को व्यक्त करता है।

अतः दूरदर्शी की विभेदन क्षमता = 1/ dθ = d / 1.22 λ. …..(2)

दूरदर्शी की सहायता से दूर की वस्तुओं को देखा जा सकता है।

अतः प्रकाश के तरंगदैर्घ्य पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं हो सकता।

समीकरण (2) के अनुसार , दूरदर्शी की विभेदन क्षमता को अधिक होने के लिए d के मान को अधिक होना चाहिये अर्थात् अभिदृश्यक के व्यास या द्वारक को अधिक होना चाहिये।

दूरदर्शी के अभिदृश्यक के बडे़ होने से एक लाभ यह भी है कि वह दूरदर्शी में अधिक प्रकाश भेजता है , जिससे वस्तु का चमकीला प्रतिबिम्ब बनता है।

खगोलीय दूरदर्शी एवं गैलीलियो दूरदर्शी की तुलना

समानता

खगोलीय दूरदर्शी –

1. यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो आवर्धन क्षमता m = f₀ / fe

2. अभिदृश्यक का मुख्य व्यास नेत्रिका के मुख्य व्यास से अधिक होता है।

3. अभिदृश्यक की फोकस दूरी नेत्रिका की फोकस दूरी से अधिक होती है।

गैलीलियो दूरदर्शी –

1. इसमें भी यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो m = f₀ / fe .

2. इसमें भी अभिदृश्यक का मुख्य व्यास नेत्रिका के मुख्य व्यास से अधिक होता है।

3. इसमें अभिदृश्यक की फोकस दूरी नेत्रिका की फोकस दूरी से अधिक होती है।

असमानता

खगोलीय दूरदर्शी –

1. इस दूरदर्शी की नली की लम्बाई अधिक होती है। यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो नली की लम्बाई fo + fe होती है।

2. इसमें उत्तल लेंस नेत्रिका का कार्य करता है।

3. अंतिम प्रतिबिम्ब वस्तु के सापेक्ष उल्टा बनता है।

4. इसमें क्रॉस तार लगाये जा सकते हैं। अतः इस दूरदर्शी से मापन सम्भव है।

5. इसकी आवर्धन क्षमता अधिक होती है।

गैलीलियो दूरदर्शी –

1. इस दूरदर्शी की लम्बाई कम होती है। यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो इसकी लम्बाई fo – fe होती है।

2. इसमें अवतल लेंस नेत्रिका कार्य करता है।

3. अंतिम प्रतिबिम्ब वस्तु के सापेक्ष सीधा बनता है।

4. इसमें क्रॉस तार नहीं लगाये जा सकते हैं। अतः इस दूरदर्शी से मापन सम्भव नहीं है।

5. इसकी आवर्धन क्षमता कम होती है।

गैलिलियो दूरदर्शी और पार्थिव दूरदर्शी में अंतर –

गैलिलियो दूरदर्शी –

1. इसमें अवतल लेंस नेत्रिका का कार्य करता है।

2. इस दूरदर्शी की लम्बाई कम होती है। यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो इसकी लम्बाई f₀ – fe होती है।

3. इसकी आवर्धन क्षमता कम होती है।

पार्थिव दूरदर्शी –

1. इसमें उत्तल लेंस नेत्रिका का कार्य करता है।

2. इस दूरदर्शी की लम्बाई अधिक होती है। यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने तो नली की लम्बाई f₀ – 4f + fe होती है।

3. इसकी आवर्धन क्षमता अधिक होती है।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी और खगोलीय दूरदर्शी में अंतर –

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी –

1. इसकी सहायता से निकट स्थित सूक्ष्म वस्तुओं को आवर्धित रूप में देखा जाता है।

2. इसमें अभिदृश्यक की फोकस दूरी नेत्रिका की फोकस दूरी से कम होती है।

3. इसमें अभिदृश्यक और नेत्रिका की फोकस दूरियों में अंतर कम होता है।

खगोलीय दूरदर्शी –

1. इसकी सहायता से आकाशीय पिण्डों को स्पष्ट देखा जाता है।

2. इसमें अभिदृश्यक की फोकस दूरी नेत्रिका की फोकस दूरी से अधिक होती है।

3. इसमें अभिदृश्यक और नेत्रिका की फोकस दूरियों में अंतर अधिक होता है।

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