- प्रत्यावर्ती विभव को दिष्ट विभव में बदलना ही दिष्टीकरण कहलाता है तथा इस कार्य में प्रयुक्त डायोड दिष्टीकारी (rectifier) कहलाता है
इसके दो प्रकार होते हैं
1 अर्ध्द तरंग दिष्टीकारी
2 पूर्ण तरंग दिष्टीकारी
यद्यपि अर्द्ध तरंग तथा पूर्ण तरंग दिष्टीकारी दोनों ही पूर्णतः d.c. नहीं उत्पन्न करते हैं, लेकिन इनके निर्गत विभव के पूर्ण चक्र में औसत मान शून्य नहीं होते हैं जैसा कि a.c. में होता है, इसलिए इन्हें दिष्टीकारी कहा जाता है।
दिष्टीकारी की क्षमता (Efficiency of rectifier):-
किसी भी दिष्टीकारी की दक्षता, उससे निर्गत d.c. पावर तथा उसमें निवेशी a.c. पावर की निष्पत्ति के बराबर होता है, अर्थात्
दिष्टीकारी की दक्षता =d.c. निर्गत पावर / a.c. निवेशी पावर
ऊर्मिका घटक (Ripple factor ) :-
दिष्टीकारी से निर्गत धारा का आयाम , समय के साथ नियत नहीं रहता हैं, अतः यह पूर्णतः d.c.नही होता है,बल्कि एक दिशीय a.c. होता है। अतः निर्गत धारा(या विभव) में a.c. अवयवों की निर्गत धारा में d.c. अवयवों की निष्पत्ति को ऊर्मिका घटक कहते हैं, अर्थात्
ऊर्मिका घटक = निर्गत धारा में a.c. अवयव / निर्गत धारा में d.c. अवयव ।
स्पष्टतः एक अच्छे दिष्टकारी का ऊर्मिका घटक न्यूनतम(=0) होना चाहिए।
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