ट्रांजिस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग (Application of Transistor as an Amplifier)
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ट्रांजिस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग (Application of Transistor as an Amplifier)
प्रवर्धक वह उपकरण है जो परिवर्ती या प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज की शक्ति को बढ़ा देता है।
दूसरे शब्दों में प्रवर्धक वह उपक है जो निर्बल परिवर्ती या प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज को प्रबल परिवर्णी या प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है।
उस परिवर्ती धारा या प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज को, जिसकी शक्ति बढ़ायी जाती है , निवेशी सिगनल (Input Signal) कहते हैं।
उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ –
सिद्धान्त-
ट्रॉजिस्टर के प्रवर्धन की क्रिया इस तथ्य पर आधारित है कि निवेशी सिगनल (Inpur signal) के कारण आधार धारा में अल्प परिवर्तन होने पर संग्राहक धारा में अधिक परिवर्तन हो जाता है।
P-N-P ट्रांजिस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग –
उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में PNP ट्रस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग का विद्युत् परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
इसमें उत्सर्जक को आधार तथा संग्राहक के सापेक्ष धनात्मक विभव पर रखा जाता है।
निवेशी सिगनल को जिसका प्रवर्धन करना होता है, आधार और उत्सर्जक के बीच आरोपित करते हैं।
संग्राहक परिपथ में उच्च प्रतिरोध R (जिसे लोड कहते हैं) जोड़ देते हैं।
कार्य-विधि-
मानलो आधार और उत्सर्जक के बीच निवेशी सिगनल लगाने के पूर्व आधार उत्सर्जक धारा और संग्राहक धारा के मान क्रमशः Ib , Ie और Ic हैं।
तब किरचॉफ के नियम से,
Ie = Ic +Ib
संग्राहक धारा Ic के कारण लोड R के सिरों के बीच विभव पतन Ic . R हो जाता है।
अतः यदि उत्सर्जक के बीच विभवान्तर अर्थात् संग्राहक वोल्टेज Vc, हो, तो
Vc =Vce -Vc .R …….(1)
जब उत्सर्कज आधार परिपथ में निवेशी सिगनल को आरोपित किया जाता है तो उत्सर्जक वोल्टेज में परिवर्तन होने के कारण उत्सर्जक धारा Ie में परिवर्तन होता है। फलस्वरूप संग्राहक धारा Icमें परिवर्तन हो जाता है।
अतः समोकरण (1) के अनुसार संग्राहक वोल्टेज Vc में परिवर्तन होता है जो प्रवर्धित रूप में निवेशी सिगनल के रूप में प्राप्त होता है।
निवेशी सिगनल के धनात्मक अर्द्ध चक्र में उत्सर्जक के सापेक्ष आधार का विभव कम ऋणात्मक होता है जिससे संग्राहक धारा Ic का मान कम हो जाता है।
अतः समीकरण (1) के अनुसार संग्राहक वोल्टेज Vc का मान बढ़ जाता है।
चूँकि संग्राहक, बैटरी Vce के ऋण ध्रुव से जुड़ा है, Vc का मान बढ़ने पर संग्राहक अधिक ऋणात्मक हो जाता है अर्थात् ऋणात्मक निर्गत सिगनल (Output signal) प्राप्त होता है।
इसी तरह ऋणात्मक अर्द्ध चक्र में उत्सर्जक के सापेक्ष आधार का विभव अधिक ऋणात्मक होता है।
जिससे संग्राहक धारा Ic का मान बढ़ जाता है।
फलस्वरूप समीकरण (1) के अनुसार संग्राहक वोल्टेज Vc का मान कम हो जाता है अर्थात् संग्राहक कम ऋणात्मक हो जाता है,
जिससे धनात्मक निर्गत सिगनल प्राप्त होता है।
इसी प्रकार निवेशी सिगनल के धनात्मक अर्द्ध चक्र में निर्गत सिगनल का ऋणात्मक अर्द्ध चक्र तथा निवेशी सिगनल के ऋणात्मक अर्द्ध चक्र में निर्गत सिगनल का धनात्मक अर्द्ध चक्र प्राप्त होता है।
स्पष्ट है कि निवेशी सिगनल और निर्गत सिगनल में 180° का कलान्तर होता है ।
N-P-N ट्रांजिस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग –
उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में N-P-N ट्रांजिस्टर का प्रवर्धक के रूप में अनुप्रयोग का विद्युत् परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
इसमें उत्सर्जक को आधार तथा संग्राहक के सापेक्ष ऋणात्मक विभव पर रखा जाता है।
निवेशी सिगनल को, जिसका प्रवर्धन करना होता है, आधार और उत्सर्जक के बीच लगाते हैं।
संग्राहक परिपथ में उच्च प्रतिरोध R (लोड) जोड़ देते हैं।
कार्य-विधि–
मानलो आधार-उत्सर्जक परिपथ में निवेशी सिगनल आरोपित करने के पूर्व आधार उत्सर्जक धारा और संग्राहक धारा क्रमश: Ib , Ie और Ic हैं।
तब किरचॉफ के नियम से,
Ie = Ic +Ib
संग्राहक धारा Ic के कारण लोड R के सिरों के बीच विभव पतन Ic .R हो जाता है।
अत: यदि संग्राहक और उत्सर्जक के सिरों के बीच विभवान्तर अर्थात् संग्राहक वोल्टेज Vc हो तो
Vc =Vce -Vc .R …….(1)
जब आधार-उत्सर्जक परिपथ में निवेशी सिगनल को आरोपित किया जाता है तो उत्सर्जक वोल्टेज में परिवर्तन के कारण उत्सर्जक धारा में परिवर्तन होता है।
फलस्वरूप संग्राहक धारा Ic में परिवर्तन हो जाता है।
अतः समीकरण (1) के अनुसार संग्राहक वोल्टेज Vc में परिवर्तन होता है जो प्रवर्धित रूप में निवेशी सिगनल के रूप में प्राप्त होता है।
निवेशी सिगनल के धनात्मक अर्द्ध चक्र में आधार उत्सर्जक के सापेक्ष अधिक धनात्मक हो जाता है।
जिससे संग्राहक धारा Ic का मान बढ़ जाता है।
अतः समीकरण (1) से संग्राहक वोल्टेज Vc का मान कम हो जाता है।
चूँकि संग्राहक, बैटरी Vce के धन ध्रुव से जुड़ा है, संग्राहक कम धनात्मक हो जाता है।
फलस्वरूप ऋणात्मक निर्गत सिगनल प्राप्त होता है।
निवेशी सिगनल के ऋणात्मक अर्द्ध चक्र में आधार उत्सर्जक के सापेक्ष कम धनात्मक होता है जिससे संग्राहक धारा Ic का मान कम हो जाता है।
समीकरण (1) के अनुसार संग्राहक वोल्टेज Vc का मान बढ़ जाता है अर्थात् संग्राहक अधिक धनात्मक हो जाता है, जिससे धनात्मक निर्गत सिगनल प्राप्त होता है ।
इस प्रकार निवेशी सिगनल के धनात्मक अर्द्ध चक्र में निर्गत सिगनल का ऋणात्मक अर्द्ध चक्र और निवेशी सिगनल के ऋणात्मक अर्द्ध चक्र में निर्गत सिगनल का धनात्मक अर्द्ध चक्र प्राप्त होता है।
स्पष्ट है कि निवेशी सिगनल और निर्गत सिगनल में 180° का कलान्तर होता है।
धारा लाभ (Current Gain) –
संग्राहक धारा में परिवर्तन और आधार धारा में परिवर्तन के अनुपात को प्रत्यावर्ती धारा लाभ कहते हैं।
इसे β से प्रदर्शित करते हैं, जबकि संग्राहक वोल्टेज नियत हो। धारा लाभ को धारा प्रवर्धन भी कहते हैं।
सूत्र के रूप में,
धारा लाभ β =( ΔΙc /ΔΙb)Vc नियत
β का मान सामान्यतया 50 होता है। इसका अधिकतम मान 200 हो सकता है
नोट: उभयनिष्ठ आधार परिपथ में धारा लाभ को α से प्रदर्शित करते हैं।
α= (ΔΙc/ ΔΙe) जबकि Vc नियत होता है।
प्रतिरोध लाभ (Resistance Gain) –
निर्गत प्रतिरोध (लोड) और निवेशी प्रतिरोध के अनुपात को प्रतिरोध लाभ कहते हैं।
सूत्र के रूप में,
प्रतिरोध लाभ = Rout / Rin
वोल्टेज लाभ (Voltage Gain) –
निर्गत वोल्टेज में परिवर्तन और निवेशी वोल्टेज में परिवर्तन के अनुपात को वोल्टेज लाभ कहते हैं।
इसे Av से प्रदर्शित करते हैं।
यदि निवेशी वोल्टेज में परिवर्तन ∆Vb तथा निर्गत वोल्टेज में परिवर्तन ∆Vc, हो, तो
वोल्टेज लाभ Av= ∆Vc/∆Vb …….(2)
यदि निर्गत प्रतिरोध Rout हो तथा संग्राहक धारा में परिवर्तन ∆Ic हो, तो
∆Vc = ∆Ic .Rout
इसी तरह यदि निवेशी प्रतिरोध Rin तथा आधार धारा में परिवर्तन ∆Ib हो, तो
∆Vb = ∆Ib. Rin
समीकरण (2) में मान रखने पर,
Av =∆Ic .Rout / ∆Ib. Rin
या Av = β × प्रतिरोध लाभ
अतः वोल्टेज लाभ, धारा लाभ और प्रतिरोध लाभ के गुणनफल के बराबर होता है।
वोल्टेज लाभ को वोल्टेज प्रवर्धन भी कहते हैं।
शक्ति लाभ (Power Gain) –
निर्गत शक्ति में परिवर्तन और निवेशी शक्ति में परिवर्तन के अनुपात को शक्ति लाभ कहते हैं।
सूत्र के रूप में,
शक्ति लाभ = निर्गत शक्ति में परिवर्तन /निवेशी शक्ति में परिवर्तन
यदि संग्राहक धारा में परिवर्तन ∆Ic हो, तो
निर्गत शक्ति में परिवर्तन= ∆Ic² .Rout
इसी तरह यदि आधार धारा में परिवर्तन = ∆Ib हो , तो
निवेशी शक्ति में परिवर्तन = ∆Ib². Rin
अतः शक्ति लाभ = ∆Ic² .Rout /∆Ib². Rin
या शक्ति लाभ = β² x प्रतिरोध लाभ
अतः शक्ति लाभ, धारा लाभ के वर्ग और प्रतिरोध लाभ के गुणनफल के बराबर होता है।
शक्ति लाभ को शक्ति प्रवर्धन भी कहते हैं।
नोट: चूँकि β का मान α से बहुत अधिक होता है, उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में धारा लाभ, वोल्टेज लाभ और शक्ति लाभ उभयनिष्ठ आधार परिपथ की तुलना में अधिक होता है।
अत: अधिक धारा लाभ, वोल्टेज लाभ तथा शक्ति लाभ के लिए उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ वाले प्रवर्धक का उपयोग अधिक किया जाता है।
α और β में सम्बन्ध–
यदि उत्सर्जक धारा Ie आधार धारा Ib तथा संग्राहक धारा Ic हो, तो
Ie = Ic +Ib
या ∆Ie = ∆Ic +∆Ib
∆Ie /∆Ic = 1+∆Ib /∆Ic ….. (1)
∆Ic /∆Ie = α तथा ∆Ic /∆Ib = β
समीकरण (1) में मान रखने पर
1/α =1+1/β
1/β = 1/α -1
1/β = 1-α/α
β = α/1-α ….. (2)
समीकरण (2) उभयनिष्ठ आधार परिपथ में धारा लाभ तथा उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ में धारा लाभ के मध्य सम्बन्ध प्रदर्शित करता है।
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