एनालॉग तथा डिजिटल संचार किसे कहते हैं ?

एनालॉग तथा डिजिटल संचार का प्रारंभिक ज्ञान (Elementary Idea About Analog and Digital Communication):-

एनालॉग तथा डिजिटल संचार –

सूचना (Information):-

बातचीत , भाषण , संगीत , चित्र अथवा आँकड़े , जिनको एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाना होता है , इन्हें सूचना या मूल संदेश कहते हैं।

ट्रान्सड्यूसर (Transducer):-

उस युक्ति को ट्रान्सड्यूसर कहते हैं जो एक प्रकार की ऊर्जा को दूसरे प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है।

उदाहरण के लिए माइक्रो फोन ध्वनि ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा मे , फोटो सेल प्रकाश ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में तथा लाउडस्पीकर विद्युत् ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है।

वैद्युत ट्रान्सड्यूसर ऐसी युक्ति है , जो विस्थापन , दाब , बल या ताप में होने वाले परिवर्तन को समय परिवर्ती धारा या वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है।

माइक्रोफोन या फोटोसेल एक वैद्युत ट्रान्सड्यूसर है।

संदेश सिग्नल (Message signal):-

सूचनाओं या मूल संदेशों के वैद्युत अनुरूप (Electrical analog) को संदेश सिग्नल कहते है।

ये उचित ट्रान्सड्यूसरों की सहायता से प्राप्त किये जाते हैं।

सूचनाओं या मूल संदेशों को उचित ट्रान्सड्यूसरों पर आरोपित करने पर प्राप्त समय परिवर्ती वैद्युत सिग्नल को संदेश सिग्नल कहते हैं।

संदेश सिग्नल समय का एक एकल मान (Single valued) फलन होता है जिसका एक दिये गए क्षण पर एक अद्वितीय(Unique) मान होता है। यह सूचनाओं का सम्प्रेषण करता है।

नोट :-

बेस बैंड सिग्नल और बैण्ड-चौड़ाई (Base Band Signal and Band Width):-
संचार तंत्र का उद्देश्य सूचनाओं या संदेश सिग्नलों का प्रेषण करना होता है। संदेश सिग्नल मे केवल एक ही आवृति नहीं होती , अपितु यह आवृत्तियों का समूह (Band) होता है। अतः संदेश सिग्नल को बेस बैंड सिग्नल भी कहते हैं तथा किसी सिग्नल में आवृत्तियों के परास को बैण्ड-चौड़ाई कहते हैं। बैण्ड-चौड़ाई का मान सिग्नल में उपस्थित उच्चतम और न्यूनतम आवृत्तियों के अंतर के बराबर होता है।】
उदाहरण :-
(1). श्रव्य तरंगों की आवृत्ति 20Hz और 20kHz के बीच होती है। अतः इसकी बैण्ड-चौड़ाई लगभग 20kHz होती है।
(2). दृश्य सिग्नल (Video signal) की बैण्ड-चौड़ाई 4.2 MHz होती है।
(3). T.V. सिग्नल की बैण्ड-चौड़ाई 6MHz होती है।
(4). वाक सिग्नल (Speech signal) की आवृत्ति 300Hz से 3100Hz तक होती है। अतः इसकी बैण्ड-चौड़ाई 3100 – 300 = 2800Hz होती है।

(एनालॉग तथा डिजिटल संचार )

संदेश सिग्नल के प्रकार :-

संदेश सिग्नल दो प्रकार के होते हैं –

(1). एनालॉग सिग्नल

(2). डिजिटल सिग्नल

(1). एनालॉग सिग्नल (Analog signal) :-

एनालॉग सिग्नल वह सिग्नल होता है , जो समय के साथ लगातार परिवर्तित होते रहता है।

यह समय का सतत फलन (Continuous function) होता है , जिसका आयाम अथवा तात्क्षणिक मान सतत होता है।

एनालॉग सिग्नल का सरलतम रूप ज्यावक्रीय सिग्नल होता है ,

जिसे निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है –

F(t) = a sin ωt

माइक्रोफोन से प्राप्त सिग्नल एनालॉग सिग्नल होता है ,

जिसमें समय के साथ वोल्टेज या धारा के मान में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं।

एनालॉग सिग्नल

एक ज्यावक्रीय (Sinusoidal) एनालॉग सिग्नल को प्रदर्शित किया गया है।

इस प्रकार के सिग्नल में आधार 10 पर दशमलव संख्या पध्दति का उपयोग किया जाता है।

अतः एनालॉग सिग्नल में वोल्टेज के अधिकतम परास (V max) और न्यूनतम परास मान (V min) के बीच सभी मान विद्यमान होते हैं।

ध्वनि ( भाषण या संगीत ) के संगत सिग्नल जटिल (Complex) होता है ,

जिसे परिवर्ती आयाम और आवृत्ति वाले कई ज्यावक्रीय सिग्नलों का परिणामी माना जा सकता है।

किसी सिग्नल में आवृत्ति के परास को बैण्ड-चौड़ाई (Band width) कहते हैं।

श्रव्य सिग्नल की बैणड-चौड़ाई 20 हर्ट्ज से 20 किलो हर्ट्ज के मध्य होती है।

एनालॉग पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक परिपथ को एनलॉग परिपथ कहते हैं।(एनालॉग तथा डिजिटल संचार )

(2). डिजिटल सिग्नल (Digital Signal) :-

डिजिटल सिग्नल असतत सिग्नल होता है , जो केवल असतत (Discrete) समयों पर ही परिभाषित होता हैं।

यह स्पंदों (Pulses) का एक समूह होता है।

डिजिटल सिग्नल में धारा या वोल्टेज के मान सतत (Continuous) नहीं होते ,

अपितु दो स्तर के ही होते हैं , जिन्हें 0 या 1 से प्रदर्शित किया जाता है। 0 OPEN, OFF अथवा LOW को तथा 1 CLOSED, ON अथवा HIGH को प्रदर्शित करता है।

डिजिटल सिग्नल

डिजिटल सिग्नल में 2 के आधार पर द्वि – आधारी संख्या पध्दति का उपयोग किया जाता है।

डिजिटल सिग्नल पर आधारित परिपथ को डिजिटल परिपथ कहते हैं। (एनालॉग तथा डिजिटल संचार )

एनालॉग सिग्नल का डिजिटल सिग्नल में रूपांतरण :-

आजकल डिजिटल सिग्नल बहुत ही लोकप्रिय होता जा रहा है।

समान्यतः हमें जो सिग्नल प्राप्त होता है , वह एनालॉग सिग्नल होता है।

अतः एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में रूपांतरण करना आवश्यक होता है।

इसकी विधि नीचे दी जा रही है –

एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में रूपांतरित करने के मुख्यतः तीन चरण होते हैं –

(1). सैम्पलिंग

(2). क्वाण्टीकरण

(3). कोडिंग

(1). सैम्पलिंग (Sampling) :-

इसके अंतर्गत एनालॉग सिग्नल को संकीर्ण स्पंदों के रूप में व्यक्त करते हैं।

इन स्पंदों के आयाम मूल सिग्नल के तात्क्षणिक आयामों के अनुपात में होते हैं।

इनकी ऊँचाइयों को राउण्ड ऑफ (Round off) कहते हैं।

(2). क्वाण्टीकरण (Quantization) :-

इन स्पंदों की ऊँचाई (आयाम) भिन्न भिन्न होती है।

आवश्यकता अनुसार न्यूनतम वोल्टेज को क्वाण्टम मानकर इन ऊँचाइयों को पूर्णांक संख्याओं के रूप में परिवर्तित कर लेते हैं।

एनालॉग सिग्नल का डिजिटल सिग्नल में रूपांतरण

चित्र में 1 वोल्ट को एक क्वाण्टम लिया गया है।

(3.) कोडिंग (Coding) :-

क्वाण्टीकरण से प्राप्त संख्याओं को समान अंक वाली द्वि-आधारी संख्याओं में रूपांतरित करते हैं ,

इस प्रक्रिया को कोडिंग कहते हैं।

चित्र में तीन-अंक वाली विभिन्न द्वि-आधारी संख्याओं के संगत डिजिटल सिग्नल प्रदर्शित किये गए हैं।

इसके सात स्तर होते हैं।

आवश्यकतानुसार 4 अंको वाली द्वि-आधारी संख्याओं के संगत डिजिटल सिग्नल भी प्राप्त किए जा सकते हैं।

इस स्थिति में 15 स्तर होंगे।

कोडिंग

यदि एनालॉग सिग्नल की अधिकतम आवृत्ति fm हैं , तो सैम्पलिंग की आवृत्ति 2fm से अधिक रखी जाती है।

पुनः यदि सैम्पलिंग को d – अंको वाली द्वि-आधारी संख्या से कोडिंग करना हो , तो प्रति सेकण्ड 2fm.d बिट्स की आवश्यकता होगी।

जिस युक्ति की सहायता से एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में परिवर्तित किया जाता है उसे A/D परिवर्तक कहते हैं।

इसके विपरीत , जिस युक्ति की सहायता से डिजिटल सिग्नल को एनालॉग सिग्नल में परिवर्तित करते हैं उसे D/A परिवर्तक कहते हैं।

डिजिटल संचार की विशेषताएं (Characteristics of Digital Communication):-

डिजिटल संचार में निम्नलिखित विशेषताएं होती है –

(1). डिजिटल सिग्नल स्पंद (Pulse) के रूप में होते हैं।

लॉजिक गेटों का उपयोग करके इन्हें आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है।

(2). इसमें एक ही चैनल (अर्थात आवृत्ति परास) में बहुत-सी सूचनाओं का प्रसारण किया जा सकता है।

(3). इसकी गुणता बहुत अच्छी होती है।

(4). डिजिटल परिपथ पर बाह्य शोर (Noise) या गतिरोध (Interference) का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

इसका कारण यह है कि डिजिटल परिपथ में वोल्टेज के यथार्थ मान की आवश्यकता नहीं होती।

इसमें केवल LOW या HIGH परास से ही मतलब होता है।

(5). एनालॉग परिपथ में संधारित्र , प्रेरक कुण्डलियाँ , ट्रान्सफार्मर आदि का उपयोग किया जाता है ,

जबकि डिजिटल परिपथ में लॉजिक गेटों का उपयोग किया जाता है।

अतः डिजिटल परिपथ बनाना आसान होता है।

शोर (Noise):-

किसी सिग्नल में उपस्थित अवांछनीय सिग्नल को शोर कहते हैं। यह प्रेषण तंत्र में ज्ञात या अज्ञात कारणों (जैसे-वायुमंडलीय, वैद्युतीय व्यवधान आदि) से उपस्थित रहता है। यह शोर मूल सिग्नल को अव्यवस्थित कर देता है। जब मूल सिग्नल की प्रबलता कम होती है तो शोर अधिक प्रभावी हो जाता है।

कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग-नियम:-

विद्युत शक्ति की परिभाषा , मात्रक एवं विमीय सूत्र:-

पोलेराइड किसे कहते हैं :-

तरंग प्रकाशिकी किसे कहते हैं ? बताइए

मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग :-

लेंसों से सम्बंधित प्रश्न :-

फ्रेनेल दूरी किसे कहते हैं :-

न्यूटन के कणिका सिद्धांत की अमान्यता के कारण :-

प्रिज्म से अपवर्तन सम्बंधित बहुविकल्पीय प्रश्न Part -02 :-

प्रीज्म से अपवर्तन सम्बंधित बहुविकल्पीय प्रश्न Part -03 :-

प्रिज्म से अपवर्तन सम्बंधित बहुविकल्पीय प्रश्न Part -01 :-

विस्थापन विधि द्वारा उत्तल लेंस की फोकस दूरी ज्ञात करना

स्पेक्ट्रोमीटर या वर्णक्रममापी किसे कहते हैं ?

ट्रान्जिस्टर के उभयनिष्ठ आधार विधा में अभिलाक्षणिक

थॉमसन द्वारा e/m का निर्धारण :-

विमॉडुलन(Demodulation ) किसे कहते हैं ?

educationallof
Author: educationallof

error: Content is protected !!