भूमंडलीकरण एवं भारतीय कृषि
जानिए , भूमंडलीकरण एवं भारतीय कृषि
भूमंडलीकरण का आशय किसी देश की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय है।
उद्देश्य –
इसका मुख्य उद्देश्य है. व्यापार अवरोधकों को कम करना जिससे वस्तुओं का विभिन्न देशों में बेरोक टोक आदान-प्रदान या व्यापार हो सके।
आज कृषि एक व्यापार बन चुका है।
अपने देश की खाद्य सुरक्षा एवं इस व्यापार पर कब्जा करने के लिए विकसित देशों के द्वारा कई कदम उठाए गए हैं जो अग्रांकित हैं।
विकसित देशों की सरकारों द्वारा अपने किसानों को भारी मात्रा में अनुदान दिया जाता है।
उदाहरण के लिए चावल उत्पादन में अमेरिका 47 प्रतिशत, यूरोपीय समुदाय 48 प्रतिशत एवं जापान 89 प्रतिशत सहायता देता है।
इसी प्रकार गेहूँ उत्पादन में अमेरिका 47 प्रतिशत, यूरोपीय समुदाय 32 प्रतिशत एवं जापान 99 प्रतिशत सहायता देता है।
विकसित देशों के द्वारा दिए जाने वाले इस अनुदान के कारण वहाँ के किसानों की फसल लागत कम या नहीं के बराबर हो जाती है।
फसल लागत कम होने से विकसित देशों के कृषि उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सस्ते हो जाते हैं।
इस कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी माँग अधिक होती है।
विकासशील देश ये अनुदान नहीं दे पाते हैं।
भारत में अप्रत्यक्ष रूप से चावल उत्पादन पर 1.17 प्रतिशत एवं गेहूँ उत्पादन पर 3.83 प्रतिशत कर (टैक्स) लिया जाता है।
इससे इनके कृषि उत्पाद महँगे होते हैं।
अतः अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में विकासशील देशों के कृषि उत्पाद पिछड़ जाते हैं।
विकासशील देश विकसित देशों के द्वारा कृषि क्षेत्र में दिए जाने वाले अनुदान का हमेशा विरोध करते रहे हैं किन्तु विकसित देशों ने अनुदान देना बन्द नहीं किया है।
जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा जीवन रुपों में उनके आधारभूत स्तर पर हेरफेर कर दी जाती है ताकि उनमें विशिष्ट गुण या तत्व उत्पन्न हो सके।
यह कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि को जन्म दे रही है।
अब अनाज एवं सब्जियों की किस्मों, उर्वरकों, कीटनाशकों, पौध पोषकों आदि द्वारा कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है।
अब यह उत्पादन प्रयोगशालाओं में सीमित न रहकर विशाल व्यापारिक स्तर पर हो रहा है।
इसमें लगभग पांच बिलियन डालर राशि का निवेश हो गया है।
इस उत्पाद में लगे फर्म चार-पाँच करोड़ रुपए प्रतिवर्ष अनुसंधान पर ही खर्च कर देते हैं।
पश्चिमी देशों में ऐसी तीन सौ विज्ञान आधारित फर्म इस कार्य में लगी हुई थीं, जिनको दुनिया की बहुराष्ट्रीय फर्मों, जैसे एलाइड, साइनामिड, शेबरोन, डूपोट, सीबा-गीगी आदि ने खरीद कर एकपक्षीय एकीकरण कर लिया है।
परिणाम यह हुआ है कि एक ही कंपनी यदि बीज बेचती है तो उसके लिए विशिष्ट उर्वरक एवं कीटनाशक भी बेचती है जिसके अभाव में बीज कामयाब नहीं होता।
अर्थात् किसानों को बीज खरीदते समय हमेशा उसी कम्पनी से उर्वरक और कीटनाशक खरीदना पड़ता है।
इस प्रकार एक देश का किसान उस विदेशी कम्पनी पर आश्रित हो जाता है।
इससे विकासशील देशों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है।