पृथ्वी का विभव कितना होता है (Potential of the Earth)
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पृथ्वी का विभव कितना होता है (Potential of the Earth)
हम जानते हैं कि किसी भी स्थान की ऊँचाई समुद्र तल की ऊंचाई को मानक (Standard) शून्य मानकर की जाती है।
इसका कारण यह है कि समुद्र से कितना भी पानी निकालें या उसमें कितना भी पानी डालें उसके जल स्तर में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होता है।
ठीक इसी प्रकार किसी वस्तु के विभव की माप पृथ्वी के विभव को मानक मानकर की जाती है।
पृथ्वी के मानक विभव को शून्य माना जाता है।
पृथ्वी के विभव को मानक मानने का कारण यह है कि पृथ्वी की धारिता (Capacity) इतनी अधिक होती है
कि उसे कितना भी आवेश दें या उससे कितना भी आवेश लें उसके विभव में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होता है।
जिस वस्तु में धनावेश होता है उसका विभव धनात्मक अर्थात् शून्य से अधिक (या पृथ्वी के विभव से अधिक) होता है।
जिस वस्तु में ऋणावेश होता है उस वस्तु का विभव ऋणात्मक अर्थात् शून्य से कम (पृथ्वी के विभव से कम) होता है।
जब धनावेशित चालक को पृथ्वी से जोड़ते हैं , तो चालक का धनावेश पृथ्वी में समा जाता है और चालक विद्युत् रुप से उदासीन हो जाता है।
अतः उसका विभव शून्य हो जाता है ।
वास्तव में जब धनावेशित चालक को पृथ्वी से जोड़ते हैं,
तो इलेक्ट्रॉन पृथ्वी से निकलकर चालक में चले जाते हैं।
फलस्वरूप चालक आवेश रहित हो जाता है।
इसी प्रकार जब ऋणावेशित चालक को पृथ्वी से जोड़ते हैं,
तो पृथ्वी का धनावेश चालक में चला जाता है जिससे चालक विद्युत् रूप से उदासीन हो जाता है।
अतः उसका विभव शून्य हो जाता है।
वास्तव में जब ऋणावेशित चालक को पृथ्वी से जोड़ते हैं,
तो चालक के मुक्त इलेक्ट्रॉन पृथ्वी में चले जाते हैं जिससे चालक आवेश रहित हो जाता है। ( पृथ्वी का विभव कितना होता है )
विभव की माप (Measurement of Potential )
मान लो मुक्त आकाश में किसी बिन्दु पर +q आवेश रखा है।
तब इस आवेश के कारण उसके चारों ओर विद्युत् क्षेत्र उत्पन्न हो जाएगा।
अब यदि एक स्वतंत्र धनावेश को अनंत से (विद्युत् क्षेत्र के बाहर से) विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लायें तो +q आवेश उस पर प्रतिकर्षण बल आरोपित करेगा।
अत: एकांक धनावेश को अनंत से विद्युत्-क्षेत्र के उस बिन्दु तक लाने में कार्य करना पड़ेगा।
किये गये कार्य को ही उस बिन्दु का विभव कहते हैं।
एकांक स्वतंत्र धनावेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में जितना कार्य करना पड़ता है,
उसे उस बिन्दु का विद्युत् विभव कहते हैं।
इसे V से प्रदर्शित करते हैं। विभव एक अदिश राशि है।
मान लो एक परीक्षण आवेश q0 को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में W कार्य करना पड़ता है।
तब उस बिन्दु का विभव
V=W/q0
अतः विद्युत्-क्षेत्र के किसी बिन्दु पर विभव, परीक्षण आवेश को अनंत से उस बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य और परीक्षण आवेश के परिमाण के अनुपात के बराबर होता है।
व्यापक रूप में,
V = W/q
मात्रक (Units)-
समीकरण (1) से-
V=W/q0
V का मात्रक = W का मात्रक/q0 का मात्रक
(i) S.I. पद्धति में विभव का मात्रक वोल्ट (Volt) है। इसे V से प्रदर्शित करते हैं।
इस प्रकार 1 वोल्ट =1 जूल /1 कूलॉम =1 जूल प्रति कूलॉम (JC-1)
अतः यदि 1 कूलॉम धन आवेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में 1 जूल का कार्य करना पड़े तो उस बिन्दु का विभव 1 वोल्ट होता है।
[स्पष्ट है कि वोल्ट = 1 जूल प्रति कूलॉम =1 न्यूटन मीटर प्रति कूलॉम
या 1 V =1 JC -1 = 1 NmC-1. ]
(ii). (a) C.G.S. पद्धति में विभव का स्थिर वैद्युत मात्रक (esu) स्थैत वोल्ट (State volt) है।
1 स्थैत वोल्ट =1 अर्ग /1 स्थैत कूलॉम
इस प्रकार यदि 1 स्थैत कूलॉम धन आवेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में 1अर्ग का कार्य करना पड़े तो उस बिन्दु का विभव 1 स्थैत वोल्ट होता है।
(b) C.G.S. पद्धति में विभव का विद्युत् चुम्बकीय मात्रक (emu) ऐब-वोल्ट (ab-volt) हैं।
1 ऐब-वोल्ट =1 अर्ग /1 ऐब-कूलॉम
इस प्रकार यदि 1 ऐब-कूलॉम धन आवेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में 1 अर्ग का कार्य करना पड़े तो उस बिन्दु का विभव 1 ऐब-वोल्ट होता है।
विभव के S.I. और C.G.S. मात्रकों में सम्बन्ध –
(i) सूत्र- V= W/ q0 से,
1 वोल्ट = 1 जूल/ 1 कूलॉम = 107 अर्ग / 3×109 स्थैत-कूलॉम
= 1/300 स्थैत वोल्ट या स्थिर वैद्युत मात्रक विभव
(ii) सूत्र-V=W/q0 से,
1 वोल्ट = 1 जूल/ 1 कूलॉम
= 107 अर्ग / १/१० ऐब-कूलॉम
= 108 ऐब-कूलॉम
(iii) 1 वोल्ट = 1/300 स्थैत-वोल्ट =108 ऐब-वोल्ट
∴ 1 स्थैत-वोल्ट = 3x 1010 ऐब-वोल्ट
विभव का विमीय सूत्र (Dimensional formula of potential)-
सूत्र
V=W/q0 से,
[V] = [ML2T-2]/ [AT] = [ML2T-3A-1 ]
विभव के प्रकार (Types of potential)-
विभव दो प्रकार के होते हैं-
धनात्मक विभव और ऋणात्मक विभव।
धनात्मक विभव (Positive potential) –
जब एकांक धनावेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में वैद्युत बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है,
तो उस बिन्दु का विभव धनात्मक कहलाता है।
स्पष्ट है कि धनावेश के कारण विद्युत् विभव धनात्मक होता है।
ऋणात्मक विभव (Negative potential)-
जब एकांक धनावेश को अनंत से विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में वैद्युत बल द्वारा कार्य किया जाता है,
तो उस बिन्दु का विभव ऋणात्मक कहलाता है।
स्पष्ट है कि ऋणावेश के कारण विद्युत् विभव ऋणात्मक होता है।
नोट: (i) विद्युत् विभव का मात्रक वोल्ट इटली के वैज्ञानिक एलेस्सेंद्रो वोल्टा (Alessandro Volta) के नाम पर रखा गया है।
(ii) अनंत पर (विद्युत् क्षेत्र के बाहर) विद्युत् विभव शून्य होता है।
(iii) विद्युत् विभव का व्यवहार गुरुत्वीय विभव की भाँति होता है।
विभवान्तर (Potential difference) –
मानलो किसी बिन्दु 0 O पर एक आवेश +q रखा है। मानलो इसके विद्युत् क्षेत्र में A और B दो बिन्दु हैं ।
अब यदि एक स्वतंत्र एकांक धनावेश को विन्दु A पर रखा जाए तो उस पर +q आवेश के कारण एक प्रतिकर्षण बल कार्य करेगा जो उसे बिन्दु A से दूर ले जाने का प्रयास करेगा।
यदि इस प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध एकांक धनावेश को बिन्दु A से बिन्दु B तक लाया जाए तो उस पर कार्य करना पड़ेगा।
इस कार्य को उन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं।
एकांक धनावेश को विद्युत् क्षेत्र में एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में जो कार्य करना पड़ता है,
उसे उन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं।
यह एक अदिश राशि है।
मानलो एक परीक्षण आवेश q0 को विद्युत् क्षेत्र में बिन्दु A से विन्दु B तक ले जाने में W कार्य करना पड़ता है।
तब दोनों बिन्दुओं के बीच विभवान्तर
V = VB – VA = W/q0 …..(2)
जहाँ, VA और VB क्रमश: बिन्दु A और B के विभव हैं।
अतः विद्युत् क्षेत्र में स्थित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर परीक्षण आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य और परीक्षण आवेश के परिमाण के अनुपात के बराबर होता है।
विभवान्तर का S.I. मात्रक वोल्ट है।
समीकरण (2) से,
1 वोल्ट = 1 जूल /1 कूलॉम
इस प्रकार यदि 1 कूलॉम धनावेश को विद्युत् क्षेत्र में एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में 1 जूल का कार्य करना पड़े तो उन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर 1 वोल्ट होता है।
नोट- (i) विद्युत् क्षेत्र में किसी आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य आवेश को ले जाने के मार्ग पर निर्भर नहीं करता,
अपितु बिन्दुओं की स्थिति पर निर्भर करता है।
(ii) विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु पर विभव वास्तव में उस बिन्दु के विभव और अनंत पर स्थित किसी विन्दु के विभव के अन्तर के बराबर होता है।
अन्य जानकारी-
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विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता और विभवान्तर में सम्बन्ध (Relationship between Intensity of Electric-field and Potential Difference)
मानलो किसी विद्युत् क्षेत्र में A और B दो बिन्दु हैं।
विद्युत् क्षेत्र की दिशा A से B की ओर है।
यदि उनके बीच की दूरी dx अत्यन्त अल्प हो, तो A और B के बीच विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता E को एकसमान माना जा सकता है।
यदि परीक्षण आवेश q0 को अनन्त से A या B तक लायें तो उसे A तक लाने में B की अपेक्षा अधिक कार्य करना पड़ेगा।
अतः A का विभव B की तुलना में अधिक होगा। मानलो A का विभव V +dv तथा B का विभव V है।
तब परीक्षण आवेश q0 को B से A तक लाने में किया गया कार्य
dw = q0dw ……..(1)
विद्युत् क्षेत्र E द्वारा परीक्षण आवेश q0 पर आरोपित बल F = q0 E
इस बल के विरुद्ध परीक्षण आवेश को B से A तक लाने में किया गया कार्य
dw = -q0 E. dx, [ कार्य = बल विस्थापन ]….( 2)
ऋणात्मक चिह्न इस बात का द्योतक है कि विस्थापन dx और क्षेत्र E की दिशायें विपरीत हैं।
समीकरण (1) और (2) से,
q0 dv=- q0 E.dx या dv= – E.dx
E = – dv /dx…….(3)
अतः विद्युत् क्षेत्र के किसी बिन्दु पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता उस बिन्दु पर दूरी के साथ विभव परिवर्तन की दर के ऋणात्मक मान के बराबर होती है।
विभव-प्रवणता (Potential Gradient)-
समीकरण (3) में dv/dx को विभव प्रवणता कहते हैं।
अर्थात् विद्युत् क्षेत्र में दूरी के साथ विभव परिवर्तन की दर को विभव-प्रवणता कहते हैं। यह एक सदिश राशि है।
इसकी दिशा निम्न विभव से उच्च विभव को ओर होती है।
समीकरण (3) से विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता के मात्रक को वोल्ट/मीटर भी लिखा जा सकता है। इस प्रकार न्यूटन/ कूलॉम (NC-1) और वोल्ट/मीटर (Vm -1) विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता के मात्रक हैं।
नोट: समीकरण (3) से,dv = -Edx, अतः V=-∫Edx
यदि विद्युत् क्षेत्र E और विस्थापन dx के मध्य कोण θ हो, तो
V=- ∫E.cos θdx
सदिश रूप में,
V -∫E→. dx→
यदि θ= 90° हो, तो समीकरण (5) से,
V=-∫ Ecos90°dx =0
अतः यदि किसी आवेश को विद्युत् क्षेत्र के लम्बवत् ले जायें तो किया गया कार्य शून्य होता है।
चालक के विभव को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Potential) –
किसी चालक का विभव निम्न कारकों से प्रभावित होता है –
(i) आवेश की मात्रा-
किसी चालक को जितना अधिक आवेश दिया जाता है उसका विभव उतना ही अधिक होता है।
इसका कारण यह है कि ज्यों-ज्यों किसी चालक को आवेश दिया जाता है, त्यों-त्यों उसके चारों ओर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता बढ़ती जाती है।
अतः एकांक धनावेश को अनन्त से चालक तक लाने में अधिक कार्य करना पड़ता है।
(ii) चालक का क्षेत्रफल-
आवेश स्थिर रहने पर चालक का विभव उसके तल के क्षेत्रफल के व्यत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् क्षेत्रफल बढ़ा देने पर उसका विभव कम हो जाता है।
इसका कारण यह है कि क्षेत्रफल अधिक होने से प्रति इकाई क्षेत्रफल पर आवेश की मात्रा कम होती है।
(iii) आवेशित चालक के समीप अन्य चालक की उपस्थिति-
आवेशित चालक के समीप अन्य चालक लाने पर आवेशित चालक का विभव कम हो जाता है।
इसका कारण यह है कि आवेशित चालक A के समीप अन्य चालक B को लाने पर A के पास वाले B के तल पर विपरीत आवेश प्रेरित हो जाता है।
अत: A का विभव कम हो जाता है।
(iv) चालक के परितः माध्यम-
चालक के परितः K परावैद्युतांक का माध्यम होने पर उसका विभव V/K हो जाता है, जहाँ V आवेशित चालक का वायु में विभव है।
स्पष्ट है कि विभव कम हो जाता है।
इसका कारण यह है कि माध्यम बदलने पर एकांक धनावेश को अनन्त से चालक तक लाने में किये ग्रे कार्य का मान बदल जाता है क्योंकि विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता [E = 1/4πε0K . Q/d ] कम हो जाता है।
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