क्वाण्टम संख्याएँ
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क्वाण्टम संख्याएँ –
आॅर्बिटल, नाभिक के चारों ओर अंतरिक्ष का वह क्षेत्र है जिसमें इलेक्ट्रॉन पाये जाने की संभावना अधिकतम होती हैं।
अतः इलेक्ट्रॉन – आॅर्बिटल की बहुत अधिक संख्या संभावित है जो कि एक दूसरे से साइज, आकार व अंतरिक्ष में दिशा के आधार पर विभेदित होते हैं।
आॅर्बिटल के ये अभिलक्षण तीन संख्याओं के रूप में व्यक्त किये जातें हैं जिन्हें मुख्य,दिगंशी व चुम्बकीय क्वाण्टम संख्याएँँ कहा जाता है।
इन्हें n, l & m से व्यक्त किया जाता है।
इन तीन क्वाण्टम संख्याओं के अतिरिक्त एक अन्य क्वाण्टम संख्या की आवश्यकता होती है जो इलेक्ट्रॉन के चक्रण को व्यक्त करती है।
इस प्रकार क्वाण्टम संख्याओं को निम्नानुसार परिभाषित किया जा सकता है-
चार संख्याओं का सेट जिनकी सहायता से किसी परमाणु के सभी इलेक्ट्रॉनो से सम्बन्धित सभी सूचनाएं प्राप्त हो सकती है।
जैसे कि स्थति, ऊर्जा, आॅर्बिटल का प्रकार, आकार व दिशा आदि, उन्हें क्वाण्टम संख्याएँँ कहते हैं।
इन क्वाण्टम संख्याओं की सहायता से ही परमाणु के इलेक्ट्रॉनो को पता सहित पूर्णतया परिभाषित किया जा सकता है।
ये क्वाण्टम संख्याएँँ निम्न चार प्रकार की होती है –
1. मुख्य क्वाण्टम संख्या ( Principal quantum number)
इस क्वाण्टम संख्या से मुख्य ऊर्जा-कोश या ऊर्जा स्तर व्यक्त होता है जिसमें इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहते हैं।
इसे n के द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यह क्वाण्टम संख्या स्पेक्ट्रम की मुख्य रेखाओं को स्पष्ट करती है जो विभिन्न कोशो या कक्षा में इलेक्ट्रॉन के कूदने से प्राप्त होता है।
n के मान से मुख्य ऊर्जा स्तर या कक्षा का ज्ञान होता है जिसमें इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर घूमते हैं।
इन कोशो को K, L, M, N ……. आदि से व्यक्त किया जाता है।
जैसे – n = 1, K कोश ( नाभिक से प्रथम )
n = 2, L कोश ( नाभिक से द्वितीय)
.n = 3, M कोश ( नाभिक से तृतीय)
n = 4, N कोश ( नाभिक से चतुर्थ)
…………
…………
मुख्य क्वाण्टम संख्या n से इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी प्रकट होती है तथा इससे इलेक्ट्रॉन अभ्र का आकार भी प्रर्दशित होता है।
किसी कोश में उपस्थित कुल इलेक्ट्रॉनो की संख्या का भी ज्ञान होता हैं –
किसी कोश में कुल इलेक्ट्रॉनो की संख्या = 2(n) the power 2
प्रथम कोश में , n = 1, 2×(1)2 = 2 इलेक्ट्रान
द्वितीय कोश में ,n =2,2×(2)2 = 8 electron
तृतीय कोश में, n = 3,2×(3)2 =18 electron
चतुर्थ कोश में, n= 4, 2×(4)2=32 electron
2. दिगंशी क्वाण्टम संख्या ( Azimuthal or Angular momentum or subsidiary quantum number) –
जब हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम को अच्छे स्पेक्ट्रोस्कोप से ध्यानपूर्वक देखा जाता है तो प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा, कई कई महीन रेखाओं से मिलकर बनी दिखाई पड़ती है।
यह सुझाव आया कि किसी मुख्य कोश में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉनो की ऊर्जा समान नहीं होती।
यह इसलिए होता है कि ये सब अलग-अलग पथ व कोणीय संवेग के अलग-अलग मानों के साथ घूर्णन करते हैं
इस प्रकार एक ही मुख्य कोश में कई उपकोश या उप-ऊर्जा स्तर उपस्थित होते हैं।
इसी कारण स्पेक्ट्रम में इलेक्ट्रॉनो के कूदने से अधिक रेखाये प्राप्त होता है।
इन उपकोशो को अभिव्यक्त करने हेतु दिगंशी क्वाण्टम संख्या की आवश्यकता होती हैं।
इसे l के द्वारा व्यक्त किया जाता है।
l के कुल मान मुख्य क्वाण्टम संख्या n पर निर्भर करता है।
n के किसी मान के लिए l के कुल उतनें ही मान 0 से (n-1) तक हों सकते हैं। l के संभावित मान 0 ,1 ,2, 3 …. है।
अतःl के कुल n मान होते हैं जो कि 0 से ( n-1) तक हों सकते हैं जैसे –
n = 1 के लिए l का केवल 1 मान=0,0 से (n-1) तक
n =2 के लिए l के 2 मान=0,1 0 से ( n-1) तक
n=3 के लिए l के 3 मान=0,1,2, से ( n-1) तक
विभिन्न उपकोशो को छोटे अक्षरों s,p,d,f से व्यक्त किया जाता है।
ये s,p,d,f क्रमशः sharp, Principal, Diffuse & Fundamental के प्रथम अक्षरों को व्यक्त करने है जो स्पेक्ट्रम रेखाओं से संबंधित है।
l के मान = 0, 1, 2, 3, ………..उपकोश = s, p, d, f,. ………l के मान से कोश के अंदर उपकोश के आकार व्यक्त होते हैं।
l का प्रत्येक मान एक निश्चित आकार को व्यक्त करता है।जैसे –
l = 0 वृत्ताकार (Spherical shape)
l =1 डमरू के समान ( Dumb-Bell shape)
l= 2 दोहरा डमरू के समान (Double Dumb-Bell shape)
3. चुम्बकीय क्वाण्टम संख्या (Magnetic quantum number) –
इस क्वाण्टम संख्या से इलेक्ट्रॉन को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर जीमन प्रभाव तथा विद्युत क्षेत्र में रखने पर स्टर्क प्रभाव की व्याख्या होती है।
किसी इलेक्ट्रॉन के नाभिक के चारों ओर आॅर्बिटल गति से विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है।
इस विद्युत क्षेत्र से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जो कि बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से अन्तः क्रिया करता है।
बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से किसी उपकोश में इलेक्ट्रॉन अपने को नाभिक के चारों ओर विशिष्ट क्षेत्रों में विन्यासित कर लेते हैं जिन्हें आॅर्बिटल कहते हैं।
चुम्बकीय क्वाण्टम संख्या, उपकोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनो को वरीय विन्यासो की संख्या को निर्धारित करते हैं।
इस प्रकार यह क्वाण्टम संख्या उपकोश में उपस्थित अॉर्बिटलो की संख्या को व्यक्त करता हैं।
इसे m से प्रर्दशित किया जाता है।
m के अन्य मान दिगंशी क्वाण्टम संख्या l पर निर्भर करते हैं।
l के किसी मान के लिए m के कुल मान -l से लेकर +l तक हों सकते हैं।
इस प्रकार l के प्रत्येक मान के लिए m के कुल ( 2l+1) मान हो सकते हैं।
अतः उपकोश l का मान कुल आॅर्बिटल की संख्या s. 0 1(0)
p. 1 3(-1,0,+1)
d. 2 5(-2,-1,0,+1,+2)
f. 3 7(-3,-2,-1,0,+1,+2,+3)
4. चक्रण क्वाण्टम संख्या( Spin quantum number) –
जब H,Li ,Na & K आदि की स्पेक्ट्रमी रेखाओं को उच्च क्वालिटी के उपकरणों की सहायता से देखा गया तो पाया गया कि स्पेक्ट्रल श्रृंखला की प्रत्येक रेखा 1 जोड़ी रेखाओं जिन्हें double & double line structure कहा जाता है, की बनी होती है।
यहां यह समझना आवश्यक है कि दोहरी रेखाऐं ( Doublet), अन्य महीन रेखाओं से अलग हैं जिनसे सामान्य स्पेक्ट्रमी रेखाऐं बनीं होती हैं।
इन दोहरी रेखाओं को स्पष्ट करने हेतु सुझाव दिया गया कि इलेक्ट्रॉन जिस समय नाभिक के चारों ओर कक्षा में चक्कर लगाता है,
उसी समय यह अपने अक्ष पर भी घूर्णन करता है या चक्रण करता है।
यह चक्रण या तो घड़ी की सुई के घूमने की दिशा वामावर्त (Clockwise) या इससे विपरीत दक्षिणावर्त (Anticlockwise) होता है।
इलेक्ट्रॉन का इस प्रकार अपने अक्ष पर घूमने, कोणीय संवेग को बढ़ा देता है।
अर्थात् कोणीय संवेग, इलेक्ट्रॉन के नाभिक के चारों ओर घूमने से ही नहीं उत्पन्न होता बल्कि इलेक्ट्रॉन के अपने अक्ष पर दक्षिणावर्त या वामावर्त घूमने से भी उत्पन्न होता है।
इस प्रकार के कोणीय संवेग को चक्रण कोणीय संवेग कहा जाता है।
s के मान्य मान -s के दो मान हैं +1/2 या 1/2।
परिपाटी अनुसार वामावर्त चक्रण में + 1/2 व दक्षिणावर्त चक्रण में -1/2 मान माना जाता है।
इसे तीर के निशान से भी प्रर्दशित करते हैं +1/2 को ऊपर की ओर व -1/2 को नीचे की ओर दर्शातें है।
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