अमीटर और वोल्टमीटर में अंतर
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अमीटर और वोल्टमीटर में अंतर
पहले अमीटर के बारे में जानते है –
अमीटर :-
1.इसकी सहायता से विद्युत परिपथ में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की प्रबलता ज्ञात करते हैं।
2. इसकी कुंडली के साथ समान्तर क्रम में कम प्रतिरोध का तार लगा होता है।
3. इसे किसी विद्युत परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में जोड़ते हैं।
4. इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है। एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होता है।
वोल्टमीटर :-
1. इसकी सहायता से विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर ज्ञात करते हैं।
2. इसकी कुंडली के साथ श्रेणी क्रम में उच्च मान का प्रतिरोध लगा रहता है।
3. इसे किसी विद्युत परिपथ में सदैव समान्तर क्रम में जोड़ते हैं।
4. इसका प्रतिरोध अधिक होता है। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होता है।
प्रतिरोध और प्रतिरोधकता (विशिष्ट प्रतिरोध) में अन्तर
प्रतिरोध :-
1.किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है।
2. इसका मात्रक ओम है।
3. प्रतिरोध चालक का एक गुण होता है।
प्रतिरोधकता :-
1. किसी चालक की प्रतिरोधकता एक नियत राशि है जो उसकी लम्बाई या अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता है।
2. इसका मात्रक ओम – मीटर है।
3. विशिष्ट प्रतिरोध चालक के पदार्थ का गुण होता है।
अवरक्त किरणें (Infrared rays) किसे कहते हैं ?
अवरक्त किरणें
इन किरणों की खोज सन् 1800 में विलियम हरशैल ने की थी।
इन किरणों का तरंगदैर्घ्य 7.8 × 10⁻⁷ मीटर से लेकर 10⁻³ मीटर तक ( 7800 A° से लेकर 10⁷ A तक) होता है।
पदार्थों को उच्च ताप तक गर्म करने पर ये किरणें उत्पन्न होती हैं। अतः इन्हें ऊष्मीय किरणें भी कहते हैं।
गुण :-
इनका ऊष्मीय प्रभाव अधिक होता है। अधिक तरंगदैर्घ्य होने के कारण इनका प्रकीर्णन (Scattering) बहुत कम होता है।
अतः इनकी वेधन क्षमता अधिक होती है। फलस्वरूप ये किरणें कुहरे और धुन्ध में भी अधिक दूरी तक जा सकती हैं।
उपयोग :-
इन किरणों का उपयोग अन्धेरे में फोटोग्राफी के लिए , रोगियों की सिकाई के लिए तथा कुहरे इत्यादि में वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है।
काँच इन किरणों के अधिकांश भाग को अवशोषित कर लेता है।
अतः इनके अध्ययन के लिए रॉक साल्ट (साधारण नमक) के प्रिज्मों का उपयोग किया जाता है।